विध्वंस संग सृष्टि-------

ईश्वर ने भी अजीब दुनिया बनाईं है। एक ओर विनाश, वहीं दूसरी ओर सृष्टि .....!
        पिछले कुछ दिनों से देखने और सुनने में आ रहा है- युद्ध। दो पड़ोसी देशों के बीच युद्ध ....।
         कौन सा देश शक्तिशाली है, और कौन कमजोर... बात यह नहीं है। न ही हार- जीत की है। 
              बात है, समस्त मानव समाज की.... उनके दुःख-दर्द की, खौफ-तबाह की ....।
  
 किसी सुन्दर चीज को कोई कैसे मिटा सकता है? सुन्दर जिंदगी, सुन्दर जगह, सुन्दर काम...। सब विध्वंस हो रहा हैं।
         युद्ध के दौरान तमाम जिंदगियां- जिंदगी और मौत के बीच लटकी हुई हैं।कुछ खत्म भी हो गई है।
         विभिन्न खबरों और समाचारों के अनुसार एक देश, दूसरे देश पर ताबड़तोड़ प्रहार पर प्रहार किये जा रहा है। भीड़भाड़ शहरी क्षेत्रों के अलग- अलग विभागों और हिस्सों में हमला कर रहा है।
         पर, हमला करने से पहले यह नहीं सोचा रहा- वर्तमान युग में पूरे विश्व के तमाम देशों के नागरिक विभिन्न देशों में आते-जाते हैं। जो कि आजकल आम बात हो गई है। 
         कोई घुमने जाते हैं, कोई नौकरी करने, कोई व्यापार करने तो कोई पढ़ने .....। ऐसे में हमलावर देश, किसी एक देश को बर्बाद करने मे नहीं तुला है। बल्कि दुनिया के अलग-अलग देशों के नागरिकों को भी क्षति पहुंचाने में लगा है। 
         पिछले कुछ दिनों के युद्ध परिस्थितियों को देखते हुए मेरे ज़हन में ख्याल आया-सृष्टि का... जी हां, विध्वंस के बीच सृष्टि का ....।
  
"8 मार्च'- दुनिया महिला दिवस के रूप में मनाती हैं। 
   इस साल 2022 का महिला दिवस सोचा तो मेरा ध्यान उस देश के अस्पताल के "प्रसूति विभाग" की ओर गया जहां जंग छिड़ी हुई हैं। बहुत ही सिरियस मैटर है।
        ईश्वर की ये कैसी रचना है? एक तरफ विध्वंस का मंजर वहीं दूसरी ओर सृष्टि...। ऐसी परिस्थिति में अस्पताल में गर्भवती महिलाएं बच्चों को जन्म दे रही होगी।  जो कि वातावरण के प्रतिकूल है।
        उस देश के भविष्य का निर्माण हो रहा है। कुदरत भी अजीब है....।
          बच्चे को जन्म देना यानी उस महिला को पुनः (दूसरा) जीवन मिलता है। कारण गर्भावस्था से बच्चे को जन्म देने तक, मां को कई शारीरिक मुश्किल परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। बच्चे के जन्म होने वाली प्रसव पीड़ा से गुजरना पड़ता है। यह पीड़ा कई हड्डियों के टूटने के दर्द समान होता है। जो असहनिय होता है।अतः यह प्रक्रिया उसकी (मां) जान पर बन आती है। ऐसे में मां को अनुकूल परिस्थिति की आवश्यकता पड़ती है। युद्ध जैसे माहौल की नहीं...। 
          वो (गर्भवती महिला)कौन सा दर्द उठाए..... विध्वंस का या सृष्टि का....?
         वैसे,आज का विज्ञान काफी उन्नत है। इसलिए कृत्रिम साधन के जरिए इस तरह की पीड़ाओं को काफी कम किया जा सकता हैं।       
         लेकिन देश में हो रहे युद्ध के दौरान वहां के अस्पताल का "प्रसव विभाग" जहां "तहखाने" में सिफ्ट हो जाता है। वहीं युद्ध से जख्मी लोगों का इलाज भी हो रहा होता हो तो बाकी साधनों का सोचना मुश्किल है।

     बम-गोलों की आवाज, सायरन की आवाज, चारों ओर बर्बादी का मंजर, मौतें, खाना-पानी खत्म, अपनों से दूर......ऐसी गंभीर परिस्थितियों के आगे शायद "प्रसव पीड़ा"कुछ बौना पड़ जा रहा होगा।
     थरथराती आवाज, कंपकंपाता शरीर और अजीबों-गरीब भावनाओं के साथ उस देश की महिलाएं भावी प्रजनन को जन्म दे रही होगीं। 
 मां अपने को संभाले या नवजात शिशु को....?
         
 जो महिलाएं बच्चों को जन्म दे चुकी, वो नवजात को अपने सीने से चिपकाए सोच रही होगीं- हमारे पड़ोसी दोस्त, पड़ोसी भाई क्यों हमें तबाह करने में तुले हैं....? कुछ मांऐं नवजात शिशु को गोद में थामें शायद यह सोच रहीं हैं- अगर मेरा बच्चा आज पड़ोसी के बारूद से बच गया तो आने वाले दिनों में हमारे देश के दुश्मनों के छक्के छुड़ा देगा।
     युक्रेन में युद्ध के दौरान तथा कुछ दिन पहले या बाद में जन्म लेने वाले बच्चे अपने मां-पिता से उनके जन्म परिस्थितियों की कहानी सुनकर बड़े होंगे। अतः उनका व्यक्तित्व उसी ढांचे का बनेगा।
     जो हमेशा दुश्मनों के आगे सीना तान कर खड़े रहने को तत्पर रहेंगे.....। जोश से भरे रहेंगे.....।
     
      2022 के महिला दिवस (8मार्च) पर युक्रेन की उन तमाम गर्ववति महिलाओं को "नमन" है- जो सृष्टि का हिस्सा बन रही हैं। अपने सृष्टि द्वारा विध्वंस को फिर से नया रुप देने की कोशिश में हैं...।
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