ईस्टर पर्व ------

बड़ा दिन ......25दिसम्बर...... क्रिसमस डे..... ईसाई समुदाय समाज का महत्वपूर्ण त्यौहार .......।
               ईसाई धर्म के इस त्योहार में गैर ईसाई समुदाय समाज के लोग बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। खासतौर पर भरपूर खुशियां मनाते हैं। 
अपने- अपने तरीके से इस दिन का आनंद उठाते हैं। हम सभी जानते हैं कि इस दिन ईसाई धर्म के भगवान, पुत्र 'यीशु' का जन्म हुआ था। जिसमें गैर ईसाई भी हिस्सा लेते हैं।
 बहुत ही अच्छी बात है- लेकिन क्या हम ईसाईयों के "ईस्टर पर्व" के बारे में जानकारी रखते हैं.....? इसमें हिस्सा लेते हैं....?
         नहीं.... हममें से अधिकतर लोग (गैर ईसाई) "ईस्टर" के बारे में जानते ही नहीं हैं।
         कोई बात नहीं.....इस लेख को पढ़ने के बाद ईसाई धर्म के ईस्टर पर्व के बारे में जानकारी मिल जाएंगी। आइए, ईस्टर के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी ले लेते हैं.....।
         दोस्तों, ईस्टर का अर्थ है- पुनसस्थान यानी वापस आना।
         ईसाई धर्म को मानने वाले लोगों का यह एक आध्यात्मिक ईश्वरीय त्यौहार है।
         यह पर्व मार्च-अप्रैल के बीच पड़ता है। इनके धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान पुत्र यीशु को सूली पर लटकाए जाने से उनकी मृत्यु हुई थी। वो दिन शुक्रवार का था। उस दिन उनको दफ़न कर दिया गया था। सब दुखी थे। 
         दफ़न करने के तीसरे दिन यानी रविवार को मारे गए यीशु, पुनः जीवित हो गये थे। अर्थात उनका पुनसस्थान हुआ था। जिससे सबों में खुशियों की लहर दौड़ पड़ी थी।
         इसलिए ईसाई धर्म के लोग इस दिन को "ईस्टर" या "ईस्टर दिवस" अर्थात खुशियों के त्योहार के रूप में मनाते हैं।
         यह त्योहार रविवार के दिन ही मनाया जाता है। क्योंकि रविवार के दिन ही यीशु पुनः जीवित हो गये थे। इस पर्व को वे "ईस्टर संडे" भी कहते है। इसके अलावा- खजूर इतवार, पास्का, जाटिक तथा पुनरुत्थान संडे भी कहा जाता हैं।
         इस पर्व से जुड़ी कुछ खास मान्यताएं हैं....। 
        * जानकारी के अनुसार भगवान पुत्र यीशु के पुनः जीवित होने को सबसे पहले एक महिला ने देखा था। फिर उसके बाद सबों को पता चला था। इसलिए यह त्योहार सुबह सबसे पहले महिलाओं द्वारा आरंभ किया जाता हैं। चर्च में सबसे पहले महिलाएं इकठ्ठा होती हैं। और प्रार्थना शुरू करतीं हैं। 
        * "ईस्टर संडे" को चर्चों (गिरीजाघर) में रात्रि से पहले परम्परागत तरीके से मोमबत्तियां जलाकर प्रभू यीशु के प्रति लोग अपना विश्वास प्रकट करते हैं- जो अहम माना जाता है। इसी कारण "ईस्टर" में ईसाई धर्म के लोग एक दूसरे को मोमबत्तियां बांटते हैं। चर्च के अलावा अपने-अपने घरों को रंगीन मोमबत्तियां जलाकर सजाते हैं।
         *ईसाई धर्म के लोग इस दिन सुबह- सुबह इक्ट्ठे होकर पहले चर्च में प्रार्थना करते हैं फिर अपनी पवित्र पुस्तक बाइबल पाठ करते हैं ।और अपने प्रभु के उपदेशों को याद करते हैं।
         इस तरह ईस्टर पर्व को मनाते हैं।
 
          दोस्तों! हर धर्म ग्रंथ में मानव जीवन के लिए एक विशेष संदेश रहता है.....। जो हमारे जीवन को स्वच्छ और प्रकाशित करने में मदद करता हैं। संदेश को हम माने या उसकी अवहेलना करें, ये और बात है लेकिन संदेश से जीवन को सीख मिलती है, नई दिशा मिलती है.....।
            ईसाई धर्म ग्रंथ में भी ऐसी ही एक सीख है। जो प्रकृति और आध्यात्मिक से जुड़ा है। 
            बीज और अंडा - जैसा कि हम जानते हैं, इनके माध्यम विकास और सृष्टि होता हैं। जीवन उत्पन्न होता हैं।
         यही कारण है कि ईस्टर त्यौहार, "अंडे" से जुड़ा है। जिसका खास महत्व माना जाता है। दरअसल, ईसाई धर्म को मानने वाले लोग प्रभू पुत्र यीशु के पुनः जीवित से खुश हो इस दिन मोमबत्तियां बांटने के साथ ही एक-दूसरे को अंड़े भी गिफ्ट के रूप में देते है। 
         अंडे चाकलेट, रंगीन कागज, लकड़ी, प्लास्टिक और भी इस तरह की चीजो से बनाकर सुन्दर से डेकोरेट कर एक दूसरे को गिफ्ट किया जाता हैं। 
   ऐसी मान्यता है कि यह गिफ्ट मानव जीवन को नई शुरुआत और विकास का संदेश देता हैं.....।
   क्योंकि अंडे फूटकर नये जीवन की उत्पत्ति होती है। वैसे ही जैसे प्रभू यीशु, दफ़न के बाद पुनः जीवित हुए थे।

           "ईसाई धर्म" का "ईस्टर पर्व" जीवन के विकास और आनंद का संदेश देता हैं.....जीवन की नई शुरुआत का संदेश देता है......।
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