अक्षय तृतीया तिथि------


         हिन्दू धर्म में इस तिथि को महादान पर्व के रूप में खास महत्व दिया जाता है। इस तिथि को "आखा तीज" के नाम से भी जाना जाता है। हर साल वैशाख मास (अप्रैल/मई) में यह तिथि आती है।
                  इस तिथि का नाम उसके अर्थ के साथ भलीभांति जुड़ा है। यानी संस्कृति में "अक्षय" का शाब्दिक अर्थ है- "खत्म न होने वाला" या "जिसका नाश न होए"......।
     पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस पवित्र तिथि में अगर कोई व्यक्ति अच्छा या बुरा जो भी कार्य (कर्म) करता है, उसका अच्छा या बुरा फल (परिणाम) जन्मों तक उसका साथ नहीं छोड़ता। उसे वह फल अवश्य ही प्राप्त होता हैं। कई जन्मों तक उसके कर्मफल का नाश नहीं होता।
     इसलिए मेरी राय है, हमें अच्छे या बुरे, जैसे भी फल चाहिए उस हिसाब से इस दिन वैसा कर्म करना चाहिए।
     कहा जाता है कि जिस तरह "गंगा सागर" के समान कोई तीर्थ यात्रा नहीं है, ठीक वैसे ही "अक्षय तृतीया तिथि" के समान कोई दूसरा "तिथि" नहीं है। इस तिथि का हर पल, मूहूर्त शुभ माना जाता हैं।

     इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों की चमक उच्च शबाव में रहता है। जो उत्साह का स्त्रोत है।

     अक्षय तृतीया तिथि का व्रत, दान, पूजा, स्नान और खरीदारी विशेष अहम माना जाता है। मनुष्य के इस तिथि के ऐसे कर्म अक्षय हो जाते हैं। घर-ग्रहस्थी में बरकत बनी रहती हैं। सुख-शान्ति से जीवन भरा रहता है। 
     मान्यता है कि अगर पूरे साल भर व्यक्ति कुछ भी दान न करें या उसे दान करने का कोई मौका न मिले, लेकिन अक्षय तृतीया के दिन अगर वह किसी जरूरतमंद को कुछ भी दान कर दे तो, उसे बहुत पुन्य प्राप्त होता है। और इस पून्य का फल उसको अनंतकाल तक मिलता है। साथ ही इस दिन भूले से भी किसी जरूरतमंद का उपहास न करें। वरना किये-कराए-पर-पानी (पून्य कर्म) फीर जाता है.....। उसे इसका पाप लगता है। यह फल उसे कई जन्मों तक मिलता है।

       हिन्दू ग्रन्थ के मुताबिक अक्षय तृतीया के तिथि को खास महत्व देने के पिछे अनेक महत्वपूर्ण मान्यताएं हैं-    1)इस पवित्र तिथि में भगवान विष्णु अपने आठवें अवतार के रूप में पृथ्वी लोक में जन्म ग्रहण किये थे।
2) इसी दिन वृंदावन में श्री बांके बिहारी जी के चरणों के दर्शन साल में एक बार होते है।
3) पुरी के जगन्नाथ मंदिर के रथ का निर्माण इसी    दिन से शुरू हुआ था।
4) अक्षय तृतीया के दिन ही धरती पर गंगा मां का आगमन हुआ था।
5) वेद व्यासजी द्वारा इसी दिन से "महाभारत" लिखना आरंभ हुआ था। आदि....।

    वैसे तो इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी या लक्ष्मी -गणेश जी की पूजा भी की जाती हैं परन्तु भारत में कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां "अक्षय तृतीया" के दिन "वैभव लक्ष्मी" की पूजा की जाती है.....। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भगवान कुबेर की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान महादेव ने उन्हें ऐश्वर्य प्रदान किया था। इसी दिन उन्हें लक्ष्मी की प्राप्ति हुई थी। इसलिए इस दिन "वैभव लक्ष्मी" की पूजा की जाती है। और घर पर लक्ष्मी को यानी सोना-चांदी खरीदकर लाया जाता हैं। 

    अक्षय तृतीया तिथि एक ऐसी तिथि है जिस तिथि में कई शुभ फलकारी कर्मों का शुभारंभ हुआ था। जो इस कलियुग में भी अक्षत हैं।
    अतः दोस्तों, इस युग में हम भी इस दिन कोई ऐसा अच्छा कार्य करें जो फलकारी हो और उसका नाश न हो। अक्षय रहे.......।
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