साफ और स्पष्ट तौर पर कहा जाए तो यह रोग चेचक (स्मोल पॉक्स / माता) वर्ग से संबंधित है। इसके वायरस बंदरों और चूहों में पाए जाते हैं।
जानकारों के मुताबिक 1958 में मंकीपॉक्स वायरस का पता चला था। लेकिन इंसानों के शरीर में 1970 के दौरान इस संक्रमित रोग को दर्ज किया गया था। अब अर्थात 2022 में मंकीपॉक्स वायरस इंसान के शरीर में पुनः पाया गया।
पिछले कुछ दिनों से यह बात सामने आ रही है कि सबसे पहले साऊथ अफ्रीका में यह रोग देखा गया। जो संक्रमित होते हुए बहुत जल्द करीब 15 से अधिक देशों में फैल गया।
विश्व के तमाम देश, विभिन्न क्षेत्रों के माध्यम एक दूसरे से जुड़े हैं। अतः एक दूसरे के देशों में आना जाना स्वाभाविक है। इसलिए संक्रमित होने का खतरा बराबर बना रहता हैं।
हाल ही में विश्व ने कोरोना वायरस जैसे संक्रमित बिमारी में काफी कुछ खोया है। कई लोग इस बिमारी से अभी तक उभर नहीं पाए हैं। अब उन्हीं के सामने "मंकीपॉक्स" आ खड़ा हुआ है। घबराना स्वाभाविक है।
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार मंकीपॉक्स वायरस जानवरों में पाया जाता हैं। खासतौर पर बन्दर,चूसें, गिलहरी आदि से यह रोग फैलता है।
जैसा कि हम जानते हैं जीव-जन्तुओं के काटने, चाटने, खरोंच, लार या उनके शरीर के रोओं से कई चर्मरोग हो जाते हैं। कभी ये सामान्य तौर पर समाप्त हो जाते हैं तो कभी भयंकर रूप धारण कर लेते हैं। अतः हमेशा इनसे सावधान रहना चाहिए।
हम यह भी जानते हैं गर्मियों के दिनों में खाज-खुजली, फोड़ा-फूंसी, घमोरियां, लाल चकत्ते आदि चर्मरोग अधिक होते हैं। विशेष कर छोटे बच्चें इनसे ज्यादा परेशान रहते हैं। परंतु इसके साथ मंकीपॉक्स की बराबरी करना गलत होगा। क्योंकि इस रोग के कुछ विशेष लक्षण बताए गए हैं......।
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार यह बिमारी खास कर छोटे बच्चों को अधिक होते हैं। उन्हें पहले बुखार, थकान, सिरदर्द, कमर दर्द, कपकपी आदि महसूस होता हैं। कुछ दिनों बाद पहले चेहरे पर लाल चकत्ते दिखाई देते हैं। फिर धिरे-धिरे शरीर के दूसरे हिस्सों में हो जाते हैं। इसके बाद फफोले जैसे बन जाते हैं और उनमें मवाद भर जाता हैं। पन्द्रह -बीस दिन बाद या कुछ और दिनों अपने आप ये सुखकर झड़ने लगते हैं।
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार इस रोग में जान का कोई खतरा नहीं है तथा मंकीपॉक्स वायरस कोरोना वायरस जैसा हानिकारक भी नहीं है।
चिकित्सकों के मुताबिक मंकीपॉक्स बिमारी का कोई खास इलाज नहीं है। इस बिमारी में सिर्फ जानवरों और संक्रमित रोगियों से दूरी बनाए रखना अति आवश्यक हैं। क्योंकि यह छूआछूत की बिमारी है। तभी इससे बचा जा सकता है।
स्वस्थ इंसान के आंख, नाक, मुंह के माध्यम मंकीपॉक्स वायरस प्रवेश कर उन्हें संक्रमित कर सकता है। इस वायरस से ग्रसीत रोगियों को छूने से भी इस बिमारी के होने का खतरा है।
अतः हर एक को सावधानी बरतनी होगी। खासतौर पर विदेशों से आए अपने-पराए लोगों से दूरी बनाए रखना जरूरी हैं। क्या पता भीतर ही भीतर उनके अंदर मंकीपॉक्स वायरस के (रोग) लक्षण पनप रहे हो .....?
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