शरणार्थी--------

     दूसरों के घर पर रहना कितना कष्टदायक है, यह वही जान सकता है जो किसी के शरण में रहता हो।
           शरणार्थी का सही अर्थ बेवसी और लाचारी हैं। ऐसा कष्ट व्यक्ति या समूह दोनों के साथ हो सकता हैं।
           पिछे मुड़कर देखें तो युग-युग से चलते आ रहे शरणार्थियों के पीड़ा को महसूस कर पाएंगे और  सामने देखेंगे तो युक्रेन युद्ध के दौरान हजारों शरणार्थियों के कष्ट नज़र आएंगे।
           युद्ध, महामारी, आकाल, प्राकृतिक आपदाओं जैसे समस्याओं से पीड़ित लोग मजबूरी, लाचारी, बेवशी में अपना घर, राज्य, देश छोड़ किसी नई जगह, नई दिशा में रहने को बाध्य होते हैं, तो उन्हें वहां का शरणार्थी कहा जाता है। अपनी जड़ से उखड़ जाते हैं। कई बार बलपूर्वक देश से हटा भी दिया जाता है।
           एक अकेला व्यक्ति भी शरणार्थी बन सकता है और समूह में भी बन सकता हैं। किसी भी रुप में क्यों न हो, वो असहाय तथा डरा होता है।
           इनके समूह में वृद्ध, महिला, बच्चे सब शामिल रहते हैं। पूरा का पूरा परिवार अपना मकान, संपत्ति, व्यापार, यहां तक की पहचान तक छोड़ दूसरे देश में शरण लेने को मजबूर होते हैं।
            असहाय लोग नई जगह पुनर्वास चाहते हैं। सुरक्षा चाहते हैं। वे चाहते हैं जीवन जीने के लिए बुनियादी कम से कम सुविधाएं....।
          विश्व का सबसे बड़ा शरणार्थी देश तुर्की को माना जाता है। वैसे विश्व में ऐसे अनेक देश है जो अपने पड़ोसी देश के लोगों को शरण देते हैं।
          शरण देने वाले देशों को ऐसा करने से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं। शरणार्थियों को बुनियादी सेवा प्रदान करने में, कई बार उनके अपने नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करना पड़ जाता हैं।
          रोटी, कपड़ा और मकान इनके पिछे अर्थ व्यवस्था चरमरा जाती है। जनसंख्या वृद्धि से भी उस देश पर इसका असर पड़ता है।
          लेकिन कानूनी तौर पर कहा जाता है, 1951 तक के शरणार्थिओं को नागरिकता, मानवाधिकार, रक्षा पूरी तरह प्रदान कर उन्हें मान्य माना जाए। इसके बाद से समय-समय पर कानूनी नियम, कानूनी दांव-पैंच के कारण शरणार्थियों को काफी कष्टों का सामना करना पड़ता हैं। जान तक गंवानी पड़ती हैं। अपनों से बिछड़ना भी पड़ जाता हैं। 
          विश्व के अनेक ऐसे देश हैं जो अपने नागरिकों की फ़िक्र कर उन्हें देश में घुसने नहीं देती। देश की सीमाओं पर पहरा लगाएं रखती हैं। ताकि कोई शरणार्थी उनके देश में शरण न ले सके।
          मजबूरी में अपना देश छोड़ दूसरे देश में शरण लेने की समस्या का हल आसान और सरल नहीं है। शरणार्थियों का दर्द युगों से चलाता आ रहा है। शायद आगे भी चलता रहेगा। इस पर पूर्ण विराम लगाना मुश्किल है......।
          तमाम असुविधाओं के वाबजूद संयुक्त राष्ट्र संस्था ने शरणार्थियों के साथ मानवता और सहानुभूति दर्शाने के लिए विश्व शरणार्थी दिवस को मानना शुरू किया है। 
          "विश्व शरणार्थी दिवस" 20जून को पूरे विश्व में मनाते हुए उनके मदद के लिए आग्रह करता है। यह दिन शरणार्थियों के प्रति मानवीय बोध को प्रेरित करता है।
                 _________________