दोस्तों, आपने अपने अब तक के जीवन काल में अनेक वाहन (गाड़ी) देखें होंगें। कुछेक में सवारी की और कई में नहीं कर पाएं। कारण मौका नहीं मिला होगा।
अनेक माध्यम से हमें विभिन्न प्रकार के वाहन देखने को तो मिल जाते हैं लेकिन सबों में सफर करने का अवसर नहीं मिला पाता। जैसे- मैं अपनी बात बताना चाहूंगी, आसमान में न जाने कितनी बार जवाई जहाज आते-जाते, उड़ते देखा है लेकिन उस पर अभी तक सफर नहीं कर पाई। कारण मौका ही नहीं मिला।
सभी वाहनों पर चढ़ने का मौका न मिले, पर उसके बारे में जानकारी ले ही सकते है।
आज के लेख में एक अनोखे वाहन के बारे में जानकारी लेंगे......
अनोखे वाहन का नाम है "ट्राम"।
साथियों, पूरे भारत में कलकत्ता एक मात्र ऐसा शहर है जहां आज भी दो तरह के अनोखे वाहन चलते हैं। ये हमारे देश में और कहीं देखने को नहीं मिलेंगे......
1) ट्राम.....
2) हाथ रिक्शा.....
हाथ रिक्शा के बारे में अधिकांश लोगों की धारणा है कि यह वाहन मानवता के खिलाफ है। क्योंकि इस पर इंसान बैठता है और दूसरा इंसान इसे खिंचकर चलाता है।
लेकिन अगर आप"लिवर'स लो" के बारे में जानते हो तो यह कहेंगे, यह सवारी उतनी कष्टदायक नहीं है जितना कि हम समझते हैं।
खैर, कलकत्ता महानगरी के अनोखे वाहन ट्राम की बात करेंगे। कारण विशेष सूत्रों से जानकारी मिली है कि अब यह वाहन बंद कर दिया जाएगा।
इसके इतिहास का पन्ना बंद हो जाएगा। इसके पिछे दो कारण बताएं जा रहें हैं। एक तो, इसकी गति बहुत धीमी है। भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग इस वाहन में सवारी करना खास पसंद नहीं कर रहे हैं। यात्रियों की संख्या पहले से बहुत, बहुत कम हो गई हैं। तथा दूसरी बात शहर में ट्रैफिक सुरक्षा के लिए ऐसा सोचा जा रहा हैं।
वर्तमान भारत के एक मात्र शहर कोलकाता की सड़कों पर चलने वाला अनोखा वाहन इस शहर का गर्व है, इस शहर की विरासत है, इतिहास की छवि है। पर अब आगे यह वाहन देखने को नहीं मिलेंगा।
जो कलकत्ता शहर में रहते हैं या घुमनेआए होंगे, उन्होंने ट्राम का लुत्फ उठाया होगा। पर जिन्हें मौका नहीं मिला उनके लिए जानकारी....आगे की पिढी को हमारे जरिए इसके इतिहास की जानकारी देना जरूरी है। क्योंकि इतिहास से हम बहुत कुछ सीखते हैं, उससे प्रेरणा लेते है।
"ट्राम" अंग्रेजों के जमाने की एक अनोखी सवारी है। सन् 1873 में पहली बार कलकत्ता में ट्राम चलना शुरू हुआ। उस समय शुरू-शुरू में इसे घोड़े द्वारा चलाया जाता था। लेकिन बाद में सन् 1902 के करीब इसे बिजली से चलाया जाने लगे।
एशिया में चलने वाली पहली "इलैक्ट्रिक ट्राम"कलकत्ता में चली। जो अपने आप में बहुत बड़ी बात है। बहुत गर्व की बात है।
ट्राम को हम 'स्ट्रीट रेल" भी कह सकते है। क्योंकि इसमें दो डिब्बे होते हैं और यह सड़कों में पटरियों (टैक) पर चलती है।
शहर के विभिन्न जगहों पर इसके डिपो बने होते हैं। अर्थात टार्मिनल ..... यही से बनकर यह चलती है और दूसरे डिपो में जाकर रुकती है। शहर में जगह-जगह पर स्टोपीज है। वहीं से सवारी चढ़ती-उतरती हैं।
इसके दो डिब्बों के आगे छोटी सी जगह (स्पेस) होती है वहीं खड़े हो ड्राईवर इसे चलाता है। ड्राइवर के स्पेस में एक घंटी लगी होती है। उसमें एक रस्सी बंधी रहती है जो सीधे पीछे वाले डिब्बे तक बंधी रहती है। दो डिब्बों के दोनों कंटक्डर इसी रस्सी को खींच कर डाइबर को ट्राम रोकने और चलाने को सुचित करते है। ताकि यात्री चढ़-उतर सके।
ट्राम के अंदर सिंगल, डबल और बेंचनुमा लकड़ी की लम्बी सीट बनीं होती हैं। महिलाओं के लिए कुछ सीटें आरक्षित होती हैं। जिस पर सिर्फ महिलाएं ही बैठ सकती हैं। पुरूषों को वहां बैठने की इजाजत नहीं होती।
पहले डिब्बे में पंखे लगे होते है और आरामदायक सीटें, पर दूसरे डिब्बे में सिर्फ साधारण सीटें होती हैं। इसलिए पहले डिब्बे को फस्ट क्लास और दूसरे को सेकैड क्लास कहा जाता हैं। फस्ट क्लास का किराया ज्यादा होता है और सेकैंड क्लास का उससे कम ......। लेकिन शहर के दूसरी गाड़ियों की तुलना में ट्राम का किराया बहुत कम है।
ट्राम के डराईबर और दो कांटेक्टरों के खाकी रंग की पोशाक होती है। जिसे पहनकर डियुटी करना अनिवार्य होता है।
यह वाहन बहुत धीमी गति से चलती है इसलिए दुर्घटना की संभावना नहीं के बराबर होती है।
महानगर के सड़कों के किनारे से पटरियां (टैक) बिछी रहती उस पर से ट्राम चलता है।
पिछले कुछ सालों में इस वाहन की रुपरेखा बदल दी गई है। आधुनिक ढंग से ट्राम को सड़कों पर उतरा गया है। ए.सी.भी लगवाई गई है। और भी कई अत्याआधुनिक सुविधाओं के साथ इसमें बदलाव किया गया है।
शायद ही इस तरह की विशेषताओं वाली अनोखी सवारी दूसरी होगी। फिर भी यह सवारी भारत के एक मात्र शहर कलकत्ता से लुप्त होने वाली है।
इस तरह के अनोखे वाहन को आगे के लिए याद रखना चाहिए.......।
____________