लंगोट या डायपर------?

       प्राचीनतम आइटम लंगोट है जबकि डायपर आधुनिक आइटम है।
जैसा कि हम जानते हैं बेवी गर्लस और बेवी बॉयस के मल-मूत्र से उनके कपड़ों और बिस्तरों को गंदा होने से रोकने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता हैं। लेकिन दोनों में से किस आइटम का इस्तेमाल करना हमारे बेवी के लिए सही होगा.....? कौन सा उनके लिए सुरक्षित हैं......?

क्या इस बारे में हम जानते हैं...? हमने कभी यह सोचा है....? या फिर दोनों में से कौन सा Use में ले, यह तय करना जरा मुश्किल सा है।

तो दोस्तों आज के लेख में हम इस बारे में चर्चा करेंगे ....।
    दरअसल, दोनों की तुलना करें तो चयन करना मुश्किल होगा कि कौन सा आइटम बेवी के लिए सही होगा ....। कौन सा उनके लिए चुने .....?
       असल में देखा जाए तो लंगोट और डायपर दोनों के प्रयोग में कुछ-कुछ सुविधाएं और कुछ -कुछ असुविधाएं हैं। अतः हमें अपने बेवी की कोमल त्वचा और उसकी सुरक्षा पर ध्यान देते हुए इनका इस्तेमाल करना होगा, साथ ही परिस्थितियों को भी टाला नहीं जा सकता। जिस पर भी विशेष ख्याल रखना उचित है। इसके अलावा समय और पैसा दोनों का ध्यान रखना भी जरूरी हैं।
           जब बाजार में डायपर उपलब्ध नहीं थे तब लंगोट से ही काम चलाना पड़ता था। बेवी के लिए इन्हें ही आरामदायक और सुरक्षित समझते थे। परंतु युग के हिसाब से नये-नये आविष्कार होने लगे। सुख-सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए चीजें बनने लगी। इसलिए नये ज़माने में लोग डायपर का उपयोग करने लगे।
 इस लेख के जरिए लंगोट और डायपर के बारे में अलग-अलग जानकारी लेंगे तथा उनके बाद तय करना होगा कौन सा आइटम किसको (परिवार) कितना suit (उपयुक्त) करेगा।
 
लंगोट:- पहले हर घर-परिवार में बेवी के लिए लंगोट का इस्तेमाल होता था। यह सूती कपड़े या फनानेल का बनाया जाता था तथा नरम, मुलायम होता था। जिसे घर पर आसानी से बनाया भी जाता था।
           आज भी अनेक परिवारों में कपड़ों से बनाए लंगोट Use में लेते हैं। खास कर गांवों और सामान्य परिवारों में लंगोट का प्रयोग होता हैं।
           लंगोट पहनाए रखने से बेवी को आराम महसूस होता हैं, क्योंकि यह हल्का व खुला-खुला होता है।
            पहने अवस्था में देखने से पता चल जाता है कि लंगोट मूत्र से गिला हो गया है या मल से गंदा हो गया है.... जिससे माताएं अपने बेवी के लंगोट को तुरंत बदल देने का अवकाश पातीं हैं। बेवी को ज्यादा देर गिलापन सहन नहीं करना पड़ता। लेकिन इसके लिए माताओं को बार-बार ध्यान रखना जरूरी होता हैं।
             लंगोट पहनाने पर यह जरा खुला-खुला सा रहता है। जिससे बेवी के उस हिस्से (नितंब) में हवा पास होता रहता है। किसी तरह की एलर्जी या दानें निकलने की संभावना नहीं के बराबर रहती हैं। इसे धोकर, साफ कर कई बार Use में लिया जा सकता हैं। जिससे पैसों की बचत होती हैं।
      कई सुविधाएं होने के साथ ही इससे कुछ असुविधाएं भी झेलनी पड़ती हैं। असुविधाओं की बात करें तो लंगोट मोटे लेयरों का बना नहीं होता। अतः गिला व गंदा होने से तुरंत बदलना पड़ता है। इसे धोना तथा साफ करना भी पड़ता हैं। जिसके लिए समय की जरूरत होती है। अधिक समय तक इसे पहनाए रखा नहीं जा सकता। लंगोट के प्रयोग से इस प्रकार की कुछ असुविधाएं होती हैं।
      कुल मिलाकर लंगोट बेवी के लिए उपयोगी हैं परन्तु माता-बहनों को इसके कारण कुछ मुस्किलें झेलनी पड़ जाती हैं।
 
डायपर:- दोस्तों, अब बात करते हैं डायपर की.....यह एक प्रकार का डिस्पोजेबल अंडरवियर है। जो बेवी के ऊपरी कपड़ों को साफ रखने में मदद करता हैं। 
 इसे एक बार ही Use किया जाता है। गिला या गंदा होने पर फेंक दिया जाता हैं। धोकर दोबारा Use नहीं कर सकते। इसलिए इसके पीछे अच्छा खासा खर्च भी होता है। लेकिन अधिक समय तक इसे पहनाए रखा जा सकता है यानी तीन-चार घंटों के लिए बेवी को डायपर में छोड़ा जा सकता है।
              डायपर को पहनाने पर बेवी का नितंब व उसके आसपास का हिस्सा इससे घिरा रहता है। जिससे उसके कपड़े गंदे नहीं होते।
 डाइपर को Use में लेने पर कुछ सावधानियां बरतनी पड़ती हैं ......। ये सावधानियां बेवी त्वचा के लिए बेहद जरूरी हैं।
 गर्मियों में डायपर न पहनाना या कम पहनाना ठीक रहता है। क्योंकि इससे रैशेज होने का डर नहीं रहता हैं।
           गंदे डायपर को बदलने के बाद बेवी के उस (नितंब) हिस्से को पोछ कर साफ़ करने के बाद क्रिम, जेल, तेल या पावडर लगाकर कुछ देर छोड़ देना चाहिए। उसके बाद पुनः डायपर पहनाए। ऐसा करने से बेवी के त्वचा में एलर्जी, लाल या गुलाबी चक्ते, रैशेज आदि होने की संभावना नहीं रहती। खुली हवा में कुछ समय रखने से बेवी के कोमल त्वचा और अंग सुरक्षित रहते हैं। वरना, लम्बे समय तक पहनाए रखने से त्वचा पर प्रभाव पड़ सकता है।
         डाइपर कई लेयरों (परत) का बना होता हैं। इसके ऊपरी व निचला सतह, गिलेपन को सोखने वाली सामग्री का बना होता है। ताकि बेवी गिलेपन को महसूस न करे।
           बेवी अगर डायपर में हो तब उसे आराम से तीन-चार घंटे छोड़ सकते हैं। बिस्तर और कपड़े गंदे होने की चिंता नहीं होती तथा बेवी गिलापन को भी महसूस नहीं करते। डाइपर पहनाकर कहीं बाहर भी ले जाया जा सकता हैं। बेवी को गोद में लेने वाले व्यक्ति को किसी तरह की परेशानी नहीं होती है, न ही वहां का माहौल खराब होता है।
 कुल मिलाकर देखा जाए तो डायपर का Use लम्बे समय के लिए निश्चिंतता दिलाती है लेकिन बेवी के कोमल त्वचा के बारे में सोच कर कम इस्तेमाल करना उचित है। 
लंगोट और डायपर की सुविधा तथा असुविधाओं को ध्यान में रखते हुए हम बड़े लोग अपनी सुविधा हेतु डायपर के Use को सही समझते हैं। इससे समय और मेहनत की बचत होती हैं। पर बेवी की बात की जाए तो उसके लिए लंगोट ही आरामदायक आइटम है। 
लंगोट और डायपर का Use कुछ परिस्थितियों पर निर्भर करता हैं। वैसे हमारी व्यक्तिगत राय की बात करें तो घर पर दिन के समय बेवी के लिए लंगोट Use करवाना सही है। और रात को सोते समय तथा घर के बाहर कहीं जाने पर डाइपर Use करना ही उचित है। ऐसा करने से पैसों की बचत होगी और बेवी के कोमल त्वचा भी सुरक्षित रहेंगे। 
            दोस्तों, इस लेख के जरिए हमने लंगोट और डायपर, दोनों की छोटी-बड़ी कुछेक सुविधा एवं असुविधाओं को बतलाने की कोशिश की हैं। अतः इन्हें ध्यान में रखते हुए निर्णय ले सकते है, 
 हमारे बेवी को लंगोट या डायपर कौन सा, कब Use करवाएं। उसके लिए क्या ठीक रहेगा......।
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