चरित्रहीन स्त्री------

    मानव मन और उसके शरीर के सुक्ष्म प्रवृतियों का भाव चरित्र कहलाता है। अच्छे भाव वाले चरित्रवान और बुरे भाव वाले इंसान चरित्रहीन कहलाते हैं। 
चरित्र के अच्छे या बुरे प्रवृत्ति का भाव किसी भी स्त्री या पुरुष के रूप में हो सकता हैं। परंतु हमारा समाज हमेशा से ही चरित्र के बुरे प्रवृत्ति का भाव अर्थात चरित्रहीनता का इल्ज़ाम स्त्री पर ही थोपता है। उसे ही इसका शिकार बनाता आया है।
समाज के लोगों के अनुसार जैसे "चरित्रहीन शब्द" स्त्री जाति के लिए ही बना है। जैसे पुरुषों का इस शब्द से कोई लेना-देना ही नहीं है। इस मामले में कुछ महिलाएं भी शामिल हैं। 
प्राचीन काल से आधुनिक युग तक स्त्री को ही दोषी ठहराया जाता रहा है। उसे ही कठघरे में खड़ा किया जाता है। लेकिन महात्मा बुद्ध ने युगों पहले यह साबित कर दिया था कि यह ग़लत है। स्त्रियों को दोषी ठहराना ग़लत हैं।

दोस्तों, आइए इस लेख के साथ आगे बढ़ते हुए जान लेते हैं, किस तरह से गौतमबुद्ध ने साबित कर दिया था कि यह ग़लत है ...।
        गौतमबुद्ध के अनुसार जब वे युवा थे, तब किसी नगरी से होते हुए कहीं जा रहे थे। अचानक एक स्त्री उसके समीप आई और उन्हें देख बोली- आप अपनी इस युवा अवस्था में गेरुआ वस्त्र धारण क्यों किए है? आप देखने से तो कोई राजा परिवार से लगते है? 
गौतमबुद्ध ने बड़ी शालीनता से कहा- बहन, तीन सवालों के जबाव ढूंढने के लिए मैंने गेरुआ वस्त्र धारण किए हुए हैं। थोड़ा रुक कर वे आगे फिर बोले- आज़ हमारा शरीर जवान है, आकर्षक है। परंतु, कल यह वृद्ध हो जाएगा, फिर बीमार और अंत में मृत्यु हो जाएगी। मुझे वृद्धावस्था, बीमार और मृत्यु का ज्ञान प्राप्त करना हैं।इसी की खोज में मैंने यह वस्त्र धारण किए हैं। और इधर-उधर भटक रहा हूं।
गौतमबुद्ध की बातें सुनकर वह स्त्री उनसे प्रभावित हुई। उसे उनकी बातें अच्छी लगी। 
स्त्री ने बुद्ध को अपने घर खाने पर बुलाया। यह सोचकर कि शायद और भी अच्छी बातें सुनने का मौका मिलेगा। 
बुद्ध ने उस स्त्री का आमंत्रण स्वीकार किया।
उधर यह बात पूरे नगर में आग की तरह फैल गई कि उस स्त्री ने युवा गौतमबुद्ध को अपने घर पर बुलाया है। और वे भी जाने को तैयार हो गए। इस बात पर सारे नगर के लोग आश्चर्य और चिंतित हो गए। उन लोगों से बुद्ध को उस स्त्री के घर जाने से मना किया। 
नगर वासियों की बात सुन , उनकी दशा देखकर उन्होंने उनसे इसका कारण पूछा- 
पता चला वह स्त्री चरित्रहीन है। 
अतः बुद्ध को उसके घर नहीं जाना चाहिए।
गौतमबुद्ध ने जब यह बात सुनी तो वे उस नगर के सरपंच जी के पास गए और पूछा- गांव वाले कह रहे हैं जिस स्त्री ने मुझे अपने यहां खाने पर बुलाया है, वह चरित्रहीन है?
सरपंच जी बोले- आपने सही सुना है। वह स्त्री वाकई में चरित्रहीन है।
सरपंच जी के ऐसा कहने पर गौतमबुद्ध ने तुरंत उनका एक हाथ पकड़ लिया और बोले- आप ताली बजाएं।
सरपंच जी एक बार के लिए घबरा से गये फिर आश्चर्य हो बोले- भला एक हाथ से मैं ताली कैसे बजा सकता हूं? आपने तो मेरा एक हाथ पकड़ रखा है। क्या कभी एक हाथ से ताली बज सकती है? एक हाथ से ताली बजाना असंभव है।
बुद्ध बोले- ठीक इसी प्रकार कोई अकेले चरित्रहीन नहीं हो सकता। यदि पुरुष चरित्रहीन नहीं होते तो वह स्त्री भी चरित्रहीन नहीं होती। यानी नगर के पुरुष भी चरित्रहीन है।
बुद्ध की बात सुनकर सरपंच जी तथा वहां उपस्थित लोग बहुत लज्जित हुए। शर्म से उनका सिर झूक गया। 
एक अकेली स्त्री को चरित्रहीन कहना व उनके चरित्र पर दोष लगाने वालों को बुद्ध ने इस प्रकार उचित शिक्षा दी। उन्हें सबक सिखाना।
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