धैर्य ------

           आज के इस दौड़-भाग की जिन्दगी में "धैर्य" कहीं लुप्त होता जा रहा है। और शायद यही कारण है कि करीब हर क्षेत्र में हम कठिन परिस्थितियों का सामना करते नजर आ रहे हैं। बच्चों से बुजुर्ग, छोटे से बड़े, महिलाओं से पुरुष सबों के साथ संयम की समस्या हैं। एक-दूसरे के प्रति हमारे व्यवहार में भी बदलाव आता जा रहा हैं।
धैर्य एक भाव है, जो शान्ति और स्थिरता का प्रतीक हैं। लेकिन जीवन में सफलता हासिल करने के लिए हम एक-दूसरे से आगे निकलने की ओढ़ में उसका साथ छोड़ते जा रहे हैं। धैर्य से काम लेना तथा समय का इंतजार करना जैसे हम भूल गये है। इस भाव की कमी से हमारे बनते काम कई बार बिगड़ जाते हैं। 
इस तरह की समस्याओं से निपटने के लिए महापुरुषों की बातें, उनके अनमोल वचन, विचार,  जीवनी से हम बहुत कुछ सीख और समझ सकते हैं। हो सकता है हममें कुछ बदलाव भी आए।            
         साथियों, यही सोच कर हम आपको एक प्रेरक कहानी सुनाना चाहेंगे .....
इस लेख की कहानी भगवान गौतमबुद्ध से संबंधित है। जो उनके जीवन की सच्ची घटनाओं में से एक है। तो आइए कहानी की ओर बढ़ते है .......
      एक समय की बात है जब महात्मा बुद्ध धर्म प्रचार के लिए अपने कुछ शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे। चलते हुए काफी समय हो गया था। अतः सबों को बड़ी तेज प्यास लगने लगी। महात्मा बुद्ध को भी प्यास लगने लगी। 
प्यास के मारे सब व्याकुल हो रहें थे। फिर भी चलाते जा रहे थे। अचानक बुद्ध की नजर अपने शिष्यों पर पड़ी। उन्होंने अपने शिष्यों को व्याकुल और अस्थिर देखा। ऐसा देख सबों को एक वृक्ष के नीचे बैठने को कहा। 
सभी शिष्य वृक्ष की छांव में शांत हो कर बैठ गए। महात्मा बुद्ध भी उनके साथ वृक्ष की छांव में बैठ गए।
वृक्ष की छांव का माहौल शांत था क्योंकि सब चूपचाप बैठे थे। प्यास के मारे किसी से कुछ कहा नहीं जा रहा था। परन्तु वास्तविकता यह थी कि सब व्याकुल थे। उनका मन अशांत था। बाहर का माहौल शांत था पर भीतर से मन अशांत था।
      कुछ देर बाद बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा आप सब खड़े हो जाएं और धीरे-धीरे वृक्ष की एक परिक्रमा लगाएं। ऐसी हालत में ना चाहते हुए भी शिष्यों ने ऐसा ही किया। अपने गुरु की आज्ञा अनुसार वे वृक्ष की एक परिक्रमा लगाकर वापस वहीं वृक्ष की छांव में गुरु जी के सामने आकर चुपचाप बैठ गए।
अब गुरु ने अपने शिष्यों से पूछा- परिक्रमा लगाते वक्त किस तरफ से ठंडी हवा आ रही थी? 
किसी ने कुछ नहीं कहा.....सब एक-दूसरे की ओर देखने लगे। और मन ही मन सोचने लगे गुरु जी ने ये कैसा सवाल पूछा? हमें तीव्र प्यास लग रही है और हम ठंडी हवा का आनंद उठाएं?.....पर किसी ने कुछ नहीं कहा।.... इतने में एक शिष्य ने बुझी आवाज में कहा -गुरु जी, उस तरफ़ से ठंडी हवा आने का आभास हुआ था।
यह सुन बुद्ध ने उस शिष्य को उस ओर भेजा। जिस ओर से ठंडी हवा आ रही थी। 
उन्होंने कहा - जरुर उस ओर पानी मिलेगा। आप जाएं और देखें।
अपनी गुरु की बात मानकर, प्यास का मारा शिष्य उस ओर चल दिए। कुछ देर चलने के पश्चात सही में  उसे एक तालाब दिखा। वो खुश हो गया। और सोचने लगा -पहले मैं पानी पी लूंगा और गुरु जी के लिए ले चलूंगा। फिर अपने साथ सबों को ले आऊंगा। वे भी अपनी प्यास बुझा लेंगे।
अपने मन में ऐसा विचार कर जैसे ही वह शिष्य तालाब में पानी पीने को झूका, वैसे ही तालाब में से एक भैंस निकल आया। पूरे पानी में धूल घूल गई। तालाब का पानी गंदा हो गया। जो अब पीने लायक न रहा।
शिष्य उदास हो गया। वह बिना पानी पिए ही वापस गुरु जी के पास वृक्ष की छांव के नीचे लौट आया और उन्हें सारी बात बताई। गुरु जी अपने शिष्य की सारी बात सुनकर बड़े शांत होकर उसे बैठ जाने को कहा। वह बैठ गया। फिर से सब चुपचाप प्यासे बैठे रहे।
कुछ समय पश्चात बुद्ध ने उस शिष्य को पुनः वहां भेजा।
इस बार तालाब के किनारे जाकर शिष्य ने देखा वहां का पानी बिल्कुल साफ व स्वच्छ हैं। जो पीने लायक दिख रहा था। 
शिष्य ने पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई और गुरु जी के लिए पानी लिया। वृक्ष के नीचे आकर उसने अपने गुरु जी को पानी पिलाया तथा दूसरे सभी शिष्यों को अपने साथ लेकर तालाब के किनारे ले चला। वहां जाकर सबों ने अपनी प्यास बुझाई।
       साथियों, महात्मा बुद्ध के सभी शिष्य धैर्य के साथ शांत होकर वृक्ष के नीचे बैठे रहे। तभी तो उन्हें वहीं गंदा पानी साफ और स्वच्छ पीने लायक मिला। अगर अस्थिरता दिखाते हुए कहीं और पानी की तलाश में गये होते तो शायद ज्यादा संकट (प्यास) में पड़ते। या उन्हें जल प्राप्त होने में और अधिक समय लगता। इसलिए हमें इस कहानी की अहमियत को समझते हुए, हो सके तो धैर्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए।
 वैसे यह ध्यान रखना भी अनिवार्य है कि हर परिस्थिति धैर्य दिखाने का परिचय नहीं देती। 
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