उपहार ------

          ईश्वर का दिया मानव शरीर सृष्टि का एक अनमोल उपहार है। पांच इंन्द्रियां, चार हाथ-पांव, तेज दिमाग, सुडोल शरीर के साथ मिला मानव जीवन ईश्वर का वरदान है। यह हमारे लिए बड़े सौभाग्य की बात है। लेकिन दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इससे बंचित है। उन्हें मानव शरीर तो मिला है पर उपहार सहित नहीं। अर्थात शारीरिक कमियों के साथ जीवन यापन करने को मजबूर हैं। अंतहीन दुःख-दर्द के साथ जीना पड़ रहा हैं।
महात्मा बुद्ध के कहे अनुसार जो इस संसार में स्वस्थ शरीर के अधिकारी हैं उन्हें दो बातें ध्यान रखनी चाहिए......पहला-: सृष्टि से मिले उपहार (स्वस्थ शरीर) पर अहंकार ना करे। और दूसरा-: जब तब ईश्वर का दिया हुआ स्वस्थ शरीर हमारे साथ है उसका सही इस्तेमाल करें। अर्थात इसे अच्छे व सत कर्मों में लगाएं।
प्यारे दोस्तों, इसी बात को समझने के लिए गौतमबुद्ध की एक प्रेरक प्रसंग को जानेंगे।
         एक समय की बात थी। महात्मा बुद्ध अपने कुछ भिक्षुओं (शिष्यों) के साथ एक वृक्ष की छांव के नीचे बैठे थे। शिष्यगण, वहां बैठे-बैठे अपने जिज्ञासा भरे सवाल गुरु बुद्ध से पूछ रहे थे।
 बुद्ध बड़ी सरलता से उन्हें समझाते हुए उनका जबाव दे रहे थे। अधिकतर शिष्य उनके जबाव से तृप्त हो रहे थे। लेकिन सबों के साथ यह बात नहीं थी। क्योंकि उनकी इस मंडली में कुछ नये भिक्षुक  शामिल हुए थे। सो हर सवाल के जवाब में छिपा अर्थ उन्हें समझ नहीं आ रहा था।
ऐसी स्थिति में गौतमबुद्ध की नज़र एक शिष्य पर पड़ी। जो वृक्ष की छांव के नीचे बैठ कर हस रहा था।
दरअसल, उस वृक्ष के समीप से एक वृद्ध व्यक्ति लाठी के सहारे धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की ओर जा रहा था। बुढ़ापे के कारण उसकी कमर झूक गई थी, शरीर कमजोर हो गया था। सहारे के लिए उसने एक डंडे का इस्तेमाल किया हुआ था। वृद्ध व्यक्ति अपने शरीर से लाचार और अस्वस्थ था।इसी
बुढ़े व्यक्ति के शरीर व चाल को देख वह शिष्य हस रहा था।
महात्मा बुद्ध ने अपने उस शिष्य से पूछा- क्या तुम इस असाधारण व्यक्ति को देख हस रहे हो?.... इसे देख हसो मत। इस लाचार और अस्वस्थ बुढ़े व्यक्ति से कुछ सीखो। कुछ समझने की कोशिश करो। यह तुम्हें कुछ संदेश दे रहा हैं।
शिष्य ने हसी रोकते हुए नम्रता से पूछा -गुरु जी, ये बुढ़ा, लाचार, अस्वस्थ व्यक्ति मुझे क्या संदेश देगा? इसने तो खुद एक बेजवान डंडे का सहारा ले रखा है।
बुद्ध- प्रिय, मैंने भी यही गलती की थी। इसलिए आज "मैं बुद्ध हूं"। इस वृद्ध व्यक्ति में तुम्हें अपना साया नजर नहीं आता? तुम्हें नहीं लगता कि यह भी इस दुनिया में स्वस्थ शरीर का अधिकार लेकर आया था? तुम्हारी तरह ही यह भी एक दिन स्वस्थ और जवान था?
तुम इन्हें ठीक से देखो.... तुम्हें इनमें अपना स्वरूप नज़र आएगा..... इससे सीखो, एक दिन तुम भी ऐसे ही दिखोगे...... हमेशा स्वस्थ और जवान नहीं रहोगे..... हम सबों को एक दिन वृद्ध होना है..... अतः अपने शरीर पर गर्व करना बंद करो.....। क्योंकि हम सभी को इसी (वृद्धावस्था) अवस्था में आना है...... यही जीवन की सच्चाई है.....।
 प्रिय, बल्कि कोशिश करो स्वास्थ्य और जवान शरीर वृद्ध अवस्था तक पहुंचने से पहले इस शरीर का सत उपयोग करना.....इसे अच्छे कर्मों में लगाओ...... दूसरों की सेवा और मदद में लगाओ।
       इतनी देर से वृक्ष की छांव में बैठे जिन भिक्षुओं को बुद्ध के विभिन्न सवालों के जबावों का सार अर्थ समझ नहीं आ रहा था, अब सभी नए-पुराने भिक्षुओं को जीवन का सच्चा अर्थ समझ आया। वे समझ गए ईश्वर का दिया मानव शरीर एक दिन कमजोर, लाचार व अस्वस्थ हो जाएगा। उससे पहले इसका सही उपयोग, सत कर्मो में लगाकर करना चाहिए और इस सुडोल जवान शरीर पर गर्व नहीं करना चाहिए।
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