अछूत------

       दोस्तों, बचपन से हम सुनते आ रहें हैं शिक्षा का महत्व हमारे जीवन में अहम है। शिक्षा से ज्ञान बढ़ता है तथा व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है।
आज हमारे समाज में अधिकतर लोग पढ़े लिखे हैं। जबकि पहले लोग कम पढ़े-लिखे या अनपढ़ होते थे। लेकिन तब की कमियां हमारे में आज भी करीब-करीब बरकरार हैं। 
आज भी अधिकांश क्षेत्र  अंधविश्वास, छूआछूत, जात-पात, धर्म जैसी बिमारियों से ग्रसित हैं। हमारी शिक्षा भी इस तरह के बिमारियों का इलाज नहीं कर पा रही हैं।
विज्ञान ने कितनी उन्नति की हैं, लोग चांद तक पहुंच गए। लेकिन हम उन बिमारियों का इलाज नहीं करवा पाए। उसी में जकड़े हुए हैं। 
इस तरह की बिमारियों से न जाने कितनों को जलील होना पड़ रहा हैं, अन्याय के आगे झूकना पड़ रहा हैं, सजा भोगना पड़ा रह हैं, हीनता का शिकार होना पड़ा रहा हैं, सामाजिक कार्यों से बंचित होना पड़ रहा हैं और तो और कितनों को अपनी जान भी देनी पड़ रही हैं। अफसोस इन मामलों में शिक्षा हमारे काम नहीं आ रही हैं। छूआछूत, जात-पात से हम बाहर निकाल ही नहीं पा रहे हैं।

पिछले कुछ सालों से घर बैठे ही मीडिया के माध्यम ऐसी-ऐसी घटनाएं देखने व जानने को मिल रहा हैं कि भीतर से रुह कांप जाता है। 
ऐसे में भगवान गौतमबुद्ध के जीवन से जुड़ी इस प्रकार की एक सच्ची घटना लेख के माध्यम सांझ करने का मन बना। दोस्तों, समय-समय पर इस प्रकार की घटनाओं (प्रेरक) को पढ़कर या सुनकर हमें अपने हृदय में पड़े मैले आवरण को साफ़ करने की कोशिश करनी चाहिए। ताकि तुच्छ चीजों से हम मुकाबला कर सके.......।

एक समय की बात है, महात्मा बुद्ध नगर से कहीं बाहर जा रहें थे। चलते-चलते अचानक उनकी नजर एक कन्या पर पड़ी। जो तेज दौड़ती हुई सामने के एक कुएं के पास आकर छिप गई।   कन्या काफी डरी, सहमी, घबराई व व्याकुल लग रही थी।
यह देख महात्मा बुद्ध, धीरे-धीरे उसके समीप गए। बुद्ध को देखते ही कन्या और डर गई, घबरा गई तथा कुएं के घेरे में और दुबक सी गई।
बुद्ध ने बड़े शांत और स्नेह भरे स्वर में उससे कहा- मुझे बहुत प्यास लग रही है। क्या तुम इस कुएं से पानी निकाल कर मुझे पिलाओगी?
यह सुन क्षणभर में कन्या के भाव बदल गए।
आश्चर्य से बुद्ध को देखते हुए कन्या बोली- मैं इस कुएं से पानी निकालूं? 
आदर से महात्मा बुद्ध ने पुनः कहा- हां! तुम भी पी लेना और मुझे भी पिलाना। बहुत तेज प्यास लग रही है।
एकाएक, कन्या बोली- मैं अछुत हूं।
इतने में वहां राजा के सैनिक आ पहुंचे। जो उस कन्या को बंदी बनाने के लिए उसका पीछा करते हुए वहां तक आ गए।
कन्या, राजा के सिपाहियों को देख फिर से घबरा गई। लेकिन कहीं न कहीं बुद्ध की बातों ने उसे साहस दिया था। इसलिए थोड़ी ही देर में हिम्मत कर वह बुद्ध से बोली- मुझे राजा के दरबार में गाने का मौका मिला था। मैं गई। मेरे कंठ और गीत राजा को बहुत पसंद आए। उन्होंने मुझे साबासी के साथ उपहार भी दिए लेकिन वहां उपस्थित किसी व्यक्ति ने कहा- राजन, यह बालिका अछूत है ....यह नीच जाति की है....।
        उस व्यक्ति की बात सुनकर उन्होंने (राजा) अपने सैनिकों को मुझे बन्दी बनाने को कहा। ऐसा सुनते ही मैं किसी तरह वहां से बचती-बचाती भागती हुई निकल आई। परंतु ये लोग......बात पूरी हुई भी नहीं थी कि दूसरी ओर से राजा स्वयं गुलाब जल लिए महात्मा बुद्ध के सामने उपस्थित हुए। राजा ने गौतम बुद्ध को प्रणाम किया और जल पान करने का आग्रह किया।
         परंतु बुद्ध ने जल पान करना अस्वीकार किया और कहा- तुम अछूत हो। मैं तुम्हारे हाथ का जल पान नहीं कर सकता। जिस कन्या ने तुम्हें अपने सुरीले, मीठे स्वर में गीत सुनाकर तुम्हें आनंद दिया, उसे ही तुम अछूत कह कर बंदी बनाने चले? व्यक्ति की पहचान उसके गुणों से हैं न कि जाति-धर्म से, ऊंच-नीच से ....? यह कन्या अछूत हो ही नहीं सकती। अछूत तो आप है। 
महात्मा बुद्ध की बात सुनकर राजा अत्यंत लज्जित हुए।
लेकिन दोस्तों, आज के आधुनिक युग में शिक्षित और समझ होने के बावजूद हम तनिक भी लज्जित नहीं होते। हम में से अधिकांश लोग छूआछूत, जात-पात, जाति-धर्म के पिछे अपना अमूल्य समय गवाते हैं। आज भी हम वहीं खड़े हैं। अपने को सुधारने की कोशिश नहीं करते। इन बातों से दूसरों को कितनी पीड़ा पहुंच सकती है इसका हमें जरा भी अंदाजा नहीं रहता ........।
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