नारद ------

      हिन्दू धर्म को मानने वाले सभी लोग, "नारद" यानी "नारद मुनि" से परिचित हैं।
आज के इस लेख में हम उनके नाम और जन्म कथा के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। कई लोगों को इस बारे में जानकारी हैं पर कईओं को नहीं भी हो सकता हैं। जिन्हें नारद जन्म कथा और नाम की जानकारी नहीं है अथवा आधी-अधूरी है, उन्हें इस लेख के जरिए जानकारी मिल जाएगी।
दोस्तों, पहले हम नारद मुनि जी के नाम की जानकारी ले लेते है। इनके कई नाम हैं। ये अनेकों नाम से जानें जातें हैं.......
*एक कहावत के अनुसार हम कभी-कभी कुछ लोगों को नारद नाम की उपाधि दे बैठते हैं। नारद मुनि की तुलना उनसे कर देते हैं। कारण ऐसे लोग लगाई-बुझाई का काम कर एक- दूसरे को आपस में लड़वा देते हैं। इधर की बात उधर करते रहते हैं। अतः कहने में आता है, नारद मुनि को ऐसा व्यक्तित्व वाला कहा जाता है।
*अपनी यात्रा के दौरान जो व्यक्ति घुम-घुम कर "गाते- बजाते" हुए चलते जाते हैं उनकी भी तुलना अक्सर नारद जी से की जाती है। अर्थात नारद जी  संगीतकार के तौर पर भी जाने जाते है।
*नारद मुनि का एक नाम "ऋषिराज" भी है। क्योंकि ऐसा कहा जाता है ये ऋषियों के देवता है।
*ये तीनों लोकों में घुमघुम कर वहां की खबरें देवी-देवताओं को सूचित करते हैं इसलिए इनको "सूचना धारक" या "सूचना बाहक" के नाम से भी जाना जाता है। 
*इसके अलावा गंधर्व, ब्रह्मा पुत्र, विष्णु भक्त, ख़बरी आदि नामों से भी ये जाने जाते हैं।
अब तक हमने नारद मुनि जी के संबंधित घटनाओं से उनके विभिन्न नामों को जाना। 
दोस्तों, अब हम उनके "जन्म कथा" के बारे में जान लेते हैं ......
इनका जन्म कब कब, क्यों , कैसे हुआ हर बात जान लेंगे ......
नारद जी के बारे में अधिकतर लोग जानते हैं कि वे ब्रह्मा-पुत्र है। यह बात काफी हद तक सही है लेकिन इस सच्चाई के पिछे छिपे कुछ कारण है.....
        पौराणिक कथानुसार नारद जी पहले "गंधर्व" थे। गंधर्व एक छोटी जाति होती है जो स्वर्ग में देवी-देवताओं को नाच-गाकर मनोरंजन करवाते हैं। इस जाति के पुरुष गाते हैं और स्त्रियां नाचती हैं। इनका संबंध कुछ वैश्यावृत्ति से भी की जाती हैं। नारद जी इसी प्रजाति के अर्थात गंधर्व थे। 
        चूंकि नारद जी ने गंधर्व जाति में जन्म लिया था इसलिए जाति के नियमानुसार स्वर्ग में वे नाच-गाने किया करते थे। ऐसे में उन्हें विभिन्न स्त्रियों के साथ, संग बिताना अत्यंत अच्छा लगता था। वे स्त्रियों का साथ पसंद करते थे।
एक बार की बात है इन्द्रलोक में नारद जी विभिन्न अप्सराओं के साथ ब्रह्मा जी की आराधना कर रहे थे। आराधना के बीच वे अप्सराओं के साथ क्रीड़ा करने लगे। ब्रह्मा जी की आराधना को बीच में छोड़ अप्सराओं के साथ क्रीड़ा करते देख, ब्रह्मा जी क्रोधित हो गए। गुस्से में आकर उन्होंने नारद जी को शूद्र योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।
         ब्रह्मा जी के श्राप के चलते दूसरे जन्म में नारद जी का जन्म गंधर्व से शुद्र (नीच जाति) जाति की  एक दासी के यहां हुआ।
बचपन से ही उन्हें "ब्राह्मणों" की सेवा में लगा दिया गया। सच्चे दिल से, मन लगाकर वे ब्राह्मणों की सेवा करने लगे। ब्राह्मणों की सेवा करते हुए धीरे-धीरे उनके पूर्व जन्म के पाप-दोष खत्म होने लगे। उनका मन भगवान की भक्ति में लीन होने लगा। ऐसे में नारद जी भगवान विष्णु की भक्ति में वे डूबने लगे। और एक समय आया जब वे भगवान विष्णु के परम भक्त बन गये।
भगवान विष्णु अपने भक्त की भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया। भगवान ने ब्रह्मा पुत्र होने का वरदान दिया।
अगले जन्म में नारद जी ने ब्रह्मा पुत्र के रुप में जन्म लिया। उन्होंने ब्रह्म के मानस पुत्र के रुप में जन्म लिया। इस जन्म के बाद ही उनका नाम "नारद" पड़ा। इसलिए हम उनके इसी जन्म के अनुसार उन्हें "ब्रह्मा-पुत्र" व "नारद जी" के रुप में जानते व मानते हैं।
दोस्तों, नारद जी अपने पहले जन्म में गंधर्व थे, फिर दूसरे जन्म में उन्होंने नीच जाति (शुद्र) में जन्म लिया और अंत में ब्रह्मा-पुत्र के रुप में जन्मे .....।
यानी नारद जी को अपने कर्मों के कारण विभिन्न जन्म मिले।
नारद जी के जन्म वित्तांत से हमें हमेशा शरण रखना होगा -अपने सर्वज्ञान में अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि कर्म का भोग सबको भोगना पड़ता हैं। इसलिए जहां तक हो सके अच्छे कर्म करते रहने चाहिए।
नारद जी, भगवान विष्णु के परम भक्त होने के कारण तीनों लोकों में भ्रमण करते हुए उनका (विष्णु) गुणगान करने लगे, साथ ही पृथ्वी लोक में मनुष्य के दुःखों से दुखी होकर उसके निवारण का उपाय भी नारद जी ने भगवान विष्णु से पूछा। जिसका ज़िक्र सत्यनारायण व्रतकथा में उल्लेख है......।
इस लेख में नारद जी के विभिन्न नाम, विभिन्न जन्म तथा कर्मों के संक्षिप्त विवरण में मानव जाति के लिए कई सीख छिपी हैं। जिन्हें समझकर चाहे तो हम उन सीखों को अपना सकते हैं .......।
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