मोह------

    ईश्वर का कहना है -अगर तुम्हारे पास कुछ हैं, तो उसका बखान नहीं करना चाहिए। उसे बटोर कर नहीं रखना चाहिए। अपितु उसका सही उपयोग करना चाहिए। जरुरत मंदों को देने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि अगर मनुष्य ऐसा नहीं करता हैं तो वह सिर्फ अपने ही बारे में सोचता हैं। जिससे उसके मन में मोह, घमंड आदि पैदा हो जाते हैं।
         मनुष्य के विशेष गुण या चीजें जैसे कि शारीरिक क्षमता, शक्ति, धन-दौलत, ज्ञान, घर-परिवार आदि उसके अच्छे कर्मों के आड़े आते हैं। इसलिए प्रभू के अनुसार इस तरह की चीजें अगर तुम्हारे पास है तो उसे अपने पास संचित न कर बांटते रहना चाहिए। नेक कार्यों में उपयोग करना चाहिए। जिससे जीवन किसी मोह- माया जाल में न फंसे। 
         हमें अपने जीवन काल में जो कुछ भी मिला है वो हमारा अपना नहीं है। वो तो सब ईश्वर का है।उनका दिया हुआ है। लेकिन उसे हम अपना समझ बैठते हैं। जो प्रभू को पसंद नहीं है। वे उसी का दंड देते हैं। यही कारण है कि हमें दुःख मिलता हैं।
        आज का आर्टिकल इसी विषय पर प्रेरणा देने की कोशिश करेगा।
अक्सर, दंड हमें सही राह पर लाता है ..... कदाचित यह सही है ....।
         भगवान विष्णु अपने प्रिय भक्त नारद को भी सही राह पर लाने के लिए दंडित किये। और उन्हें सही राह दिखाया। मोह, अहंकार से मुक्त करवाया।
          भगवान जानते है उनका प्रिय, परम भक्त "नारद" हमेशा उनके गुणगान करने में लगे रहते हैं परन्तु एक समय आया जब उनके परम भक्त के मन में मोह भाव ने जन्म लिया। 
प्रभु अंतर्यामी है। उन्हें अपने प्रिय भक्त के विकृत मन का पता चल गया। भगवान अपने भक्त को इस भाव से बाहर निकालना चाहते थे। उन्हें घमंड और मोह से बचाना चाहते थे। इसलिए प्रभु ने एक माया जाल बिछाया। जिसमें वे फंसे और विकृत मन से बाहर भी निकले।
लेकिन कैसे .....?
आइए हम जान लेते है .....।
पौराणिक कथा अनुसार एक दिन भगवान विष्णु अपने परम भक्त नारद को साथ लिए वन की ओर चल दिए। काफी दूर चलने के पश्चात वे थक गए और एक वृक्ष के नीचे बैठ गये। नारद जी भी प्रभु के साथ वहां बैठ गए। कुछ समय बाद प्रभु ने नारद से कहा- प्रिय! तीव्र प्यास लग रही है। कहीं से जल की व्यवस्था हो जाती .... तो हम अपनी प्यास बुझा लेते।
यह सुन नारद जी विचलित हो उठे। मेरे प्रभु को प्यास लग रही है? वे प्यासे है? .....
इतना क्या सुनना था, वे अपने प्रभु से कह कर जल की तलाश में निकल पड़े। कुछ दूर जाने के पश्चात उन्हें एक जलाशय नजर आया। नारद खुश हो गए और वे उस ओर चल दिए। जैसे ही वे जलाशय में पहुंचे, उनकी नजर एक सुंदर राजकुमारी पर पड़ी।
         राजकुमारी की सुन्दरता ने नारद का मन मोह लिया। वे सब भूलकर उनके पास पहुंच गए। और उनके इस घने वन में अकेले होने का कारण पूछा।

राजकुमार बोली - मैं अपने सहेली-साथियों के साथ वन में घुमने निकली थी। मगर मैं उनसे भटक गई। अब मैं अकेली क्या करु समझ नहीं आ रहा।
नारद जी ने कहा - मैं आपको अपके स्थान तक पहुंचा देता हूं।
और वे बड़े यत्न के साथ राजकुमारी को उनके स्थान (महल) तक पहुंचा दिये।
राजकुमारी ने अपने पिता के आगे नारद जी की काफी प्रशंसा की......यह सुन नारद जी बहुत गदगद हो गए। वे खुश हो गये कि राजकुमारी, मेरी प्रशंसा कर रहीं हैं।
अपनी बेटी राजकुमारी के मुख से उस व्यक्ति (नारद) की तारीफ सुन राजा के मन में ख्याल आया, वे अपनी बेटी का विवाह उस व्यक्ति से करवा दें। यह सोच नारद का बहुत आदर-सतकार किया गया और उनके आगे विवाह का प्रस्ताव रखा।
नारद जी भी यही चाहते थे अतः उन्होंने भी हां कह दी। कुछ ही दिनों में राजकुमारी का विवाह बड़ी धूमधाम से नारद जी के साथ करवा दिया गया।
        राजा ने अपने ही राज्य में उन्हें अलग से रहने की व्यवस्था करवा दी। 
नारद जी अपनी पत्नी राजकुमारी के साथ सुखपूर्वक गृहस्थ जीवन बिताने लगे। कुछ वर्ष बीत गए। उन्हें दो पुत्र संतान की प्राप्ति हुई। 
पत्नी और संतानों के साथ नारद जी का जीवन अत्यंत खुशी से बीत रहा था। वे पिछली सारी बातें भूल गये थे। वे अपने परिवार के साथ ग्रहस्थ जीवन के मोह में फस गये थे। अपने गृहस्थ जीवन में इतने लीन हो गए थे कि उन्हें अपने प्रभू के बारे में भी ध्यान नहीं रहा।
एक दिन उस राज्य में बरसात होने लगी। कुछ ही समय में बरसात तेज धुंआधार हो गई। रुकने का नाम ही न ले। धीरे-धीरे पूरा राज्य पानी में डूबने लगा। पशु-पक्षी, लोग, लोगों के मकान सब बहने लगे। ऐसे में नारद जी अपने और अपने परिवार को बचाने के लिए एक नाव में कुछ सामान के साथ सपरिवार निकल पड़े।
    थोड़ी दूर नाव से चलने के पश्चात पानी का बहाव इतना बढ़ गया कि नाव में से एक-एक सामान, संतान और अंत में पत्नी राजकुमारी नाव से गिर कर पानी में बह गए। यह देख नारद जी अत्यंत दुखी हुए। वे उन्हें बचा न सके। वे रोने लगे और मन ही मन कहने लगे मेरा सब कुछ खत्म हो गया। मेरी गृहस्थी समाप्त हो गई। मेरी किस्मत में भगवान ने जानें क्या लिखा है? मैं वर्बाद हो गया.....।
अचानक नारद जी चौंके..... भगवान का नाम मुख से निकलते ही उनमें चेतना जगी।
भगवान .... ? मेरे प्रभू......? नारद जी को अपने पिछली बातों का ख्याल आया। उन्हें बीती सारी बातें याद आ गई। मन ही मन कहने लगे उस वृक्ष के नीचे मैं अपने प्रभू को बैठाकर जल की खोज में निकला था। और ये क्या हो गया? मैं गृहस्थ जीवन में लीन हो गया? जीवन का सुख भोगने लग गया? इस मोह में मैं अपने प्रभु को भूल गया और उधर मेरे प्रभु प्यासे तड़फते रहे? यही बातें सोचते हुए अचानक नारद जी ने महसूस किया बारिश, बाढ़ जैसा पानी कहीं गायब हो गया ....। चारों ओर का पानी कहीं बह गया .....।
नारद जल्दी-जल्दी दौड़ते हुए उस वृक्ष के समीप गए तो देखा कि व्याकुल अवस्था में प्रभू (भगवान विष्णु) वृक्ष के नीचे लेटे हैं।
अपने प्रिय भक्त नारद को देखते ही बोले - नारद जल लाए हो? मुझे तीव्र प्यास लग रही है? तुमने आने में देर कर दी।
नारद अपने आंखों में अश्रु भरकर प्रभू के चरणों में पड़कर बोलने लगे- प्रभू मुझे क्षमा कर दें। मैं भटक गया था।
इतने में प्रभु मंद मुस्कुराहट के साथ बोले- मैं तो मज़ाक कर रहा था। तुमने आने में देरी नहीं की.... थोड़ी ही देर में वापस आ गए हो.....।
नारद जी समझ गये, यह "मोह रचना" प्रभू जी की ही रची हुई थी। उन्होंने ही मुझे मोह और अहंकार से बाहर निकाला है। मैं घमंड और मोह जाल में इतना फंस गया था कि मुझे इस बारे में पता ही नहीं चला परंतु मेरे प्रभु को चल गया। इसलिए उन्होंने मुझे इस विकृत भाव से बाहर निकाला।
        यह सोचते हुए नारद, प्रभू के चरणों में पड़कर जोर-जोर से विलाप करने लगे और अपने मन के कू-प्रभाव के लिए क्षमा मांगने लगे। प्रभू ने अपने प्रिय भक्त को माफ किया और सहज जीवन जीने की सलाह दी।
साथियों, ईश्वर के दिए चीजों को अपना समझने से मन में अहंकार पैदा होता हैं और उन्हीं चीजों से गृहस्थ जीवन में लीन रहने से दुःख मिलता है। मनुष्य को दुःख-कष्ट घेर लेता हैं। इन सब चीजों को जितना हो सके बांटने की कोशिश करते हुए सहज जीवन जीना चाहिए। 
नारद जी के इस "मोह कथा" का सार हमें इसी की प्रेरणा देता है कि- ईश्वर की दी चीजों को अपना समझ, उसके मोह में फंसकर, मन में घमंड पैदा करना फिर छिंन जाने के बाद दुःख के भवसागर में खुद को पाना, अत्यंत कष्टदायक है। इसलिए प्रभू की चीजों को अपना न समझ, बल्कि उसका सही उपयोग कर सहज जीवन जीने की कोशिश करनी चाहिए। जिससे प्रभू भी खुश और हम मनुष्य भी खुश ......।
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