विष्णु अवतार ----

        साथियों, क्या आप जानते हैं भगवान विष्णु जी ने समय-समय पर अवतार का रुप धारण किया है। अगर नहीं जानते हो तो आज के इस लेख से आपको जानकारी मिल जाएगी।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सतयुग में विष्णु भगवान को धरती पर पहली बार अवतार के रूप में अवतरित होना पड़ा था।
लेकिन क्यों?
विष्णु जी को आखिर क्यों अवतार का रुप धारण करना पड़ा ...? 
कब-कब अवतार के रुप में आए?
कितनी बार वे अवतरित हुए?
क्या कलियुग में भी उन्हें अवतरित होना पड़ा या होना पड़ेगा?
पहली बार उन्हें कौन सा रुप धारण करना पड़ा? 
          तो आईए दोस्तों, इन्हीं सारी जिज्ञासाओं को दूर करने के लिए इस लेख के साथ आगे बढ़ते हैं ...। और जान लेते हैं .....।
       जैसा कि हम जानते हैं जगत के पालनहार "प्रभु विष्णु" है। वे ही सृष्टि के 'पालनहार' है। वे ही जगत की रक्षा करते है। 
यही कारण है कि उन्हें ही अवतार का रुप धारण करना पड़ा था। और एक बार नहीं कई बार अवतरित होना पड़ा।
       देवी, देवता और धरती के प्राणियों के कल्याण हेतु उन्हें बार-बार अवतार के रूप में अवतरित होना पड़ा। वे कई बार, कई रूपों में अवतरित हुए।
वे उनकी सहायता के लिए, उन्हें बचाने के लिए अवतार बने।
धरती पर जब-जब पाप, अत्याचार, जुल्म, अहंकार बड़े तब-तब, उससे मुक्ति दिलाने के लिए विष्णु भगवान को अवतरित होना पड़ा।
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार वे सतयुग में 'मत्स्य अवतार' और अब कलियुग में 'कल्कि अवतार' के रूप में अवतरित हुए हैं। 
लेकिन आज के इस लेख में हम भगवान विष्णु जी के प्रथम 'मत्स्य अवतार' की मूल कथा को जानेंगे।

सतयुग में कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने "मत्स्य अवतार" का रुप लिया था। अर्थात मीन (मछली) रुप में अवतरित हुए थे। विष्णु जी के विभिन्न अवतरित रुपों में यह मत्स्य रुप उनका पहला रुप था। जो सतयुग की घटना है ......।
 
'मछली' रूप में अवतरित होने के उनके मूलतः दो कारण थे- *पहला जगत के जीवों का पुनः निर्माण करना और *दूसरा धरती को पापों तथा अराजकता से बचना। 
इन दोनों विषयों का विष्लेषण हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथों व काव्यों में उल्लेख किया हुआ है। उसी के आधार पर यह लेख है ....।
        पौराणिक कथा अनुसार एक बार सतयुग काल के समय धरती पर भयंकर जल प्रवाह होने लगा। चारों ओर बाढ़ का जल भरने लगा। समस्त प्राणी, जीव-जंतु के प्राण नाश होने लगे। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। प्राणियों के जीवन में संकट आ पड़ा। उनके प्राण जाने लगे। 
        ऐसे में जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने एक ऋषि मुनि से कहा- आप एक नाव में समस्त जीवों को एकत्रित करें। उन्होंने प्रभु की आज्ञा का पालन करते हुए वैसा ही किया। परंतु जल प्रवाह इतना तीव्र था कि नाव संभाले संभल नहीं रहा था। जल प्रवाह और जल की धार बहुत तीव्र थी। अतः जल के प्रवाह से नाव डगमगाने लगा।
यह देख जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी ने 'मत्स्य अवतार' का रुप धारण किया और जल में डगमगाते प्राणियों के नाव को संभालें रखा। जब तक प्रलय समाप्त नहीं हुआ। 
प्रलय रुकने के बाद, जल प्रवाह कम होने पर समस्त जीवों को राहत मिली। उनके प्राण बच गए। विष्णु रूपी मत्स्य अवतार ने पुनः जीवन निर्माण कराया।
दूसरी ओर इसी सतयुग में धर्मग्रंथों के अनुसार एक बहुत बड़े दैत्य ने छलवश दो वेदों को चुरा लिया और जल की गहराई में जाकर उसे छिपा दिया।
         कहते है ब्रह्मा जी के अंजाने में भूल की वजह से दैत्य ने वेदों को चुरा लिया था।
वेदों के चोरी हो जाने से धरती पर चारों ओर अराजकता फैलने लगी। धरती से ज्ञान लुप्त होने लगा। जिससे पाप, अधर्म बढ़ने लगे। चारों ओर भयंकर संकट आने लगा। धरती पर सुख-शांति समाप्त होने लगी। धीरे-धीरे भयंकर संकट ने घेर लिया।
          ऐसे में विष्णु जी के वही 'मत्स्य अवतार' जिन्होंने पहले सतयुग में जल प्रवाह से प्राणियों की रक्षा कर पुनः जीवन निर्माण किया अब उन्हीं अवतार रुपी मीन (मछली) ने जल की गहराई में छिपे दैत्य से युद्ध कर दोनों वेदों को प्राप्त किया। और ब्रह्मा जी को सौंपा। उन्हीं के भूल से दैत्य ने दोनों वेदों को चुरा लिया था।
वेदों के पुनः प्राप्त होने पर धीरे-धीरे धरती से अराजकता समाप्त होने लगे।
दोस्तों, अतः  के अनुसार अगर धरती पर कोई भी प्राणी किसी भी संकट में पड़े तो उसे स्वयं विष्णु भगवान की आराधना करनी चाहिए। खासकर 'गुरुवार' के दिन ....। ऐसा करने से जगत के पालनहार भगवान विष्णु उसके समस्त संकट दूर कर देते हैं। धर्मग्रंथों में ऐसी ही मान्यता है ......।
          इस लेख के जरिए हमें जानकारी मिली कि भगवान विष्णु पहली बार "मत्स्य अवतार" के रूप में "सतयुग" में अवतरित हुए और क्यों हुए......।
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