"इसरो" का चन्द्रयान----

दोस्तों 🙏......

                         According to report आज के आर्टिकल में हम "इसरो चन्द्रयान" की  संक्षिप्त चर्चा करेंगे....। लेकिन पहले एक सुचना- इस लेख के अंत में हम आपके समक्ष एक सवाल रखेंगे। हो सके तो उसका सही जवाब हमारे comment box पर लिख भेजें........।
इस लेख में हम देश के गौरव से जुड़ा "अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र" और उसके द्वारा विकास के पथ पर "मानव जीवन" को ले जाने वाले यान (सवारी) की बात करेंगे।
मिडिया के माध्यम लोगों ने "इसरो" तथा "चन्द्रयान" के बारे में सूना होगा लेकिन हम इस आर्टिकल के जरिए इसकी विशेष जानकारियां  देने की कोशिश करेंगे। आर्टिकल में पहले "इसरो" के बारे में जान लेते है .....
इसरो-: यह "अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र" का नाम है।इसकी स्थापना 15 अगस्त सन् 1967 में हुई थी। इसके संस्थापक जाने माने वैज्ञानिक डॉ विक्रम ए. साराभाई थे।
आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरू जी ने अपने समय के जाने-माने वैज्ञानिक डॉ विक्रम ए. साराभाई के उद्दोग में एक अंतरिक्ष औद्योगिक सेवा केन्द्र का गठन 1962 में किया था। जिसका नाम "इल्केस्पर" रखा गया था।
             दरअसल, भारत 1947 को आजाद हुआ और उसने बाद कई साल बीत गए लेकिन हमारा देश अंतरिक्ष से जुड़े मामलों में अभी तक पिछे था। इस ओर ध्यान देते हुए, देश की तत्कालीन सरकार ने इस क्षेत्र में तरक्की के लिए अंतरिक्ष सेवा केन्द्र की ओर कदम उठाया और भारत सफल भी रहा। 
          उसके बाद"इल्केस्पर" को 1969 में ठीक से गठन कर स्थापित किया गया और तब उसका नाम "इसरो" रखा गया।
बड़े दुःख के साथ बताना पड़ रहा है जिनके उद्योग से अर्थात देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के उद्दोग से वैज्ञानिक डॉ विक्रम ए. साराभाई ने अंतरिक्ष सेवा केन्द्र बनाया, पर जब 1969 में यह अंतरिक्ष सेवा केन्द्र "इसरो" के नाम से स्थापित हुआ तब हमने उन्हें खो दिया था। उनका देहांत इससे पहले 1964 में हो गया था। स्थापित दिवस पर वे हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन उनके इस योगदान (साथ)को देश हमेशा याद रखेगा।
जान लेते है आखिर इस अंतरिक्ष सेवा केन्द्र को गठित करने का उद्देश्य -: आजाद भारत को अंतरिक्ष मामलों में जोड़ने के उद्देश्य से ही वैज्ञानिक डॉ विक्रम ए. साराभाई और देश के प्रथम प्रधानमंत्री ने इसे बनवाया। इससे ग्रहों का संधान तथा अंतरिक्ष अनुसंधान करना व उसे आगे बढ़ाना था। वर्तमान में यह अंतरिक्ष सेवा केन्द्र "बैंगलूरू" में है। "इसरो" अंतरिक्ष केंद्र का विकास संचार, दुरदर्शन, मौसम सेवाएं आदि की जानकारी के लिए  हैं।
           समय के साथ-साथ अंतरिक्ष औद्योगिक सेवा केन्द्र टेक्नोलॉजी तौर पर विकास करता रहा। और इसके फलस्वरूप भारत के अंतरिक्ष सदस्य "राकेश शर्मा" 1984 में पहली बार विदेशी दो और अंतरिक्ष सदस्यों के साथ "चांद" की सतह पर पहुंचे। किसी  भारतीय ने पहली बार चांद पर कदम रखा। वे चांद पर 7 दिन 2 घंटे रहे। जो हम देशवासियों के लिए बहुत ही गर्व की बात रही।
     दोस्तों, अब बात करेंगे "चन्द्रयान" की ......चन्द्र यानी चांद और यान यानी सवारी अर्थात चांद पर जाने वाली सवारी- "चन्द्रयान"। 
चन्द्रयान-: अब तक हमारे देश से चांद पर पहुंचने की तैयारी, तीन बार हुई.....
जो कि, चन्द्रयान-1, चन्द्रयान-2, और चन्द्रयान-3 के नाम से जाना जाता हैं।
इनमें पहला, चन्द्रयान-1 आंशिक सफल रहा। दूसरा चन्द्रयान-2 पूरी तरह से असफल रहा। लेकिन हमारे देश के वैज्ञानिकों ने हार नहीं मानी और वे लगातार एक्सपेरिमेंट के जरिए प्रयास करते रहे। अब 2023 में एक बार फिर चन्द्रयान-3 के रूप में उसे रवाना किया गया है।
चन्द्रयान-1 की सफलता से हमारे वैज्ञानिकों को पता चला चांद की सतह पर "बर्फ़" है। अतः वहां पानी की पुष्टि भी की जाती है। जिससे अनुमान लगाया जा सकता है वहां जीवन जी सकता हैं। लेकिन सिर्फ इतने से बात नहीं बनेगी। चांद के बारे में और भी कई पुष्टि होनी बाकी है तब वहां जीवन जीने की सोची जा सकती है।
असल में 2008 के अक्टूबर माह में भारत से भारतीय वैज्ञानिकों ने पहली बार पहला चन्द्रयान-1 को चन्द्रमा की ओर रवाना किया था। जो अपने समय के अनुसार सकुशल चांद की सतह पर पहुंच गया। वैज्ञानिकों के अनुमान के हिसाब से चन्द्रयान-1, दो साल तक चन्द्रमा से जानकारी देता रहेगा। 
वो करीब साल भर तक वहां (चन्द्रमा) की जानकारी देता भी रहा। जिससे वैज्ञानिकों में उत्साह और जोश बड़ा। परंतु दुर्भाग्यवश तकनीकी गड़बड़ी के कारण दो साल से पहले ही चन्द्रयान-1 से सम्पर्क टूट गया। कुछ जानकारी मिली पर अभी बहुत कुछ जानना बाकी है। इसलिए हमारे देश के वैज्ञानिक "इसरो" अंतरिक्ष सेवा केन्द्र में रिसर्च करते रहे। 
"इसरो" में रिसर्च करते हुए वैज्ञानिकों ने दूसरी बार चन्द्रयान-2, 2019 को चांद की ओर रवाना किया था। लेकिन गड़बड़ी के कारण वह यान चन्द्रमा तक पहुंच ही नहीं पाया। दूसरी बार भी  हम असफल रहे। 
  हमारी वर्तमान सरकार ने वैज्ञानिकों को उत्साहित किया, मदद की, और फिर कोशिश करने को कहा .....इससे वैज्ञानिकों का पुनः उत्साह बढ़ा और फिर रिसर्च ..... काफी कड़ी मेहनत और तकनीकी क्षेत्र को विकसित कर तीसरी बार वैज्ञानिकों ने चन्द्रयान-3 को 2023 में पूरी तैयारी के साथ इस माह (July) चन्द्रमा की ओर रवाना किया।
"इसरो" अंतरिक्ष औद्योगिक सेवा केन्द्र से हमारे देश का तीसरा, चन्द्रयान-3 के चन्द्रमा पर भेजने से देश के हर वर्ग का नागरिक काफी उत्साहित हैं। 
         आज टेक्नोलॉजी, नेट, मिडिया आदि अत्याधुनिक सुविधाओं के कारण हमें घर बैठे देश-विदेश की हर जानकारी मिल जाती हैं। जिस वजह से लोग Intreste लेते हैं। देश वासियों को चन्द्रयान-1 का पता नहीं चला लेकिन चन्द्रयान-2-3 का पता घर बैठे चला। जिससे देश वासियों में काफी जोश हैं। 
यह सब संभव हो पाया हमारे पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी जी के योगदान के कारण.... वे ही भारत में दूरसंचार की क्रांति लाए, कंम्पयूटरीकरण पर जोर दिया। उन्हीं के बदौलत आज हम सामान्य लोग अपने घरों में बैठकर चन्द्रयान-3 को समझ पा रहे हैं।
      आज पूरे देश में "चन्द्रयान-3" की चर्चा है। 
यह सारी सुविधाएं हमें अपने पूर्व सरकार के बदौलत मिल रहा हैं। देश पिछड़ा न रहे, विभिन्न क्षेत्रों में विकास करता रहे इस पर ध्यान देते हुए ये कार्य किये गये।
          खैर, तीसरी "चन्द्रयान-3" के विषय में हमारे वैज्ञानिकों का कहना है कि यह यान रवाना करने के 42 दिन बाद चांद की सतह पर पहुंचेगा। अर्थात 14 जुलाई (2023) इसे रवाना किया गया और अनुमानिक 24अगस्त (2023) तक "तीसरे यान" की चांद पर पहुंचने की संभावना की जाती है।
         इस बार अत्यधिक विकसित टेक्नोलॉजी को अपना कर पूरी तैयारी के साथ चन्द्रयान-3 को चन्द्रमा पर भेजा गया है। अतः बताया जा रहा है सफलता की पूरी उम्मीद है।
दोस्तों, पृथ्वी से जब हम चांद को देखते हैं तो पाते है उसमें कुछ अंश काला नजर आता है जिसे हम अपनी भाषा में चांद के कलंक के नाम से जानते हैं। परंतु चांद का आंशिक क्षेत्र छायामान है। असल में चांद पर सूर्य की तिरछी किरण पड़ती है। इस कारण चांद पूरा उजाला नजर नहीं आता। उसके जिन अंश में सूर्य की किरण नहीं पड़ती वह हिस्सा छाया यानी काला नजर आता है और बाकी उज्वल दिखाई देता है। जहां पर सूर्य की किरण पड़ती है।
         आपको बतला दे कि चांद के छाया वाले हिस्से में अर्थात "दक्षिण ध्रुव" में इस तीसरे यान को वैज्ञानिकों ने भेजा है। खबरों के अनुसार इसके पीछे वैज्ञानिकों का तर्क है कि चांद के अंधेरे छाया वाले हिस्से में ठंडक बनी रहती है अतः वहां वर्फ और पानी के मिलने की पूरी या अधिक संभावना हो सकती है। 
          हमारे वैज्ञानिकों का कहना है अगर हम सफल होते हैं तो यह यान हमें चांद पर पानी के अलावा मिनरल, कार्बन डाइऑक्साइड, आक्सीजन, रसायनिक पदार्थ, मिट्टी, कण आदि अनेक जानकारी दे सकता हैं। जिससे संभवतः चांद में जीवन के रहने की उम्मीद की जाएगी। भारतीय वैज्ञानिकों के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। 
          अतः कह सकते है "इसरो" अंतरिक्ष सेवा केन्द्र के चलते 2023 में तीसरा चन्द्रयान-3 चांद में भेजना संभव हो सका। इसलिए हमें पूर्व सरकार का धन्यवाद मानना चाहिए।

(प्रश्न -: क्या आप बतला सकते हैं "इसरो" का पुराना नाम क्या था?)
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