समान नागरिक संहिता (UCC)--

🙏 दोस्तों,
                       इन दिनों UCC यानी "समान नागरिक संहिता" की चर्चा पूरे देश भर में जोर-शोर से चल रहा है। 
क्या आप इसके बारे में कुछ जानते हैं? ये है क्या? आखिर इसकी इतनी चर्चा क्यों हो रही है?

तो चलिए हम भी ज़रा इसकी चर्चा कर लेते हैं। लेकिन एक नोटिस- इस लेख के अंत में हम आपसे एक सवाल जानना चाहेंगे। संभव हो तो उसका सही जवाब comment box पर लिख भेजें....।
              खैर, According to reports हम इस लेख में आपसे UCC (यूनिफॉर्म सिविल कोड) की कुछ मोटी-मोटी बातें करना चाहेंगे।
 UCC को हिन्दी में हम "समान नागरिक संहिता" कह सकते हैं ......।
UCC एक कानूनी व्यवस्था है। यह व्यवस्था अभी हमारे देश में नहीं है। देश के नागरिकों के लिए भारत की वर्तमान सरकार इस व्यवस्था को लागू करना चाहती है। इसी की चर्चा देश भर में हो रही है। कोई इस पर सहमति जता रहा है तो किसी को इस पर आपत्ति हैं।
हमारे देश में दो कानून हैं-(1) क्रिमिनल (2) सिविल
*क्रिमिनल- कानून के जानकारों के अनुसार इसके दायरे में चोरी, डकैती, लूटमार, हत्या अर्थात जीवन के लगभग हर क्षेत्र के आपराधिक मामले आते हैं। अपराधी चाहे किसी भी धर्म, जाति, लिंग आदि  क्षेणी में आता हो, उसे इन अपराधों की एक ही समान सजा मिलती है। देश के सभी अपराधी नागरिकों के लिए एक समान सजा का प्रवधान है।
*सिविल- इसके अंतर्गत विवाह, तलाक़, संपत्ति, गोद लेना आदि और भी मामले आते हैं। इस श्रेणी में आए अपराधियों को एक समान सजा सुनाई नहीं जाती।
अर्थात "क्रिमिनल कानून" समान नागरिक संहिता के अंतर्गत आता है पर "सिविल कानून" समान नागरिक संहिता के अधीन नहीं है। इसी कानून को यानी सिविल कानून को भारत सरकार समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करना चाहती है।
      यह एक सीधी और सरल बात है। हम साधारण लोग को यही लगेगा सरकार शायद सही कर रही  है। ऐसा ही होना चाहिए। परंतु सिविल कानून बड़ा गहरा और पेचीदा मामला है। कारण .....
       दोस्तों, दरअसल हमारा देश भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। यहां विभिन्न जाति धर्म के लोग रहते हैं। जिनकी अपनी-अपनी संस्कृति और धार्मिक नीतियां हैं। नियम हैं। जो एक -दूसरे से भिन्न हैं। और भारतीय सांविधानिक तौर पर अपने-अपने धर्मों के पालन का अधिकार सबों को दिया गया हैं।
यहीं बात पेचीदे की आती है। कोई भी धर्म अपना धार्मिक अधिकार छोड़ना या बदलना नहीं चाहेगा। खास तौर पर इन दिनों..जब देश में साम्प्रदायिकता हिंसा फैली हुई है।
"धर्म"....यह एक नाजूक मामला है।
संविधान के जनक डॉ. अंबेडकर साहब भी "एक कानून" के पक्ष में थे लेकिन भारत की आजादी के बाद क्रिमिनल कानून को देश मे समान नागरिक अधिकार मिला परंतु सिविल कानून को नहीं मिल पाया। संविधान सभा में काफी विचार-विमर्श किया गया पर बात नहीं बन पाई थी। इसे लागू करना संभव नहीं हो पाया था। क्योंकि जानकारों के मुताबिक सिविल कानून, धार्मिक समाज के संबंधों से तात्पर्य रखता हैं। अतः भारत में एक समान नागरिक संहिता लागू नहीं हो सकता।
         विभिन्न धर्मों के समाज के लोगों का अपना धार्मिक कानून अलग-अलग हैं। इस वजह से लगता है देश में समान नागरिक संहिता (UCC ) लागू करना मुश्किल है।
अब हम यहां कुछ धर्मों के सिविल क्षेत्र की वर्तमान परिस्थितियों को जान लेते हैं .....
✓हिन्दू-: इस समाज में 18-21 आयु सीमा की शादी को मान्य माना जाता है। इससे कम आयु वाले विवाह को ग़ैर क़ानूनी माना जाता है। इनमें तलाक का प्रवधान है जो कोर्ट के माध्यम होता है। संप्रति (हाल में) पिता की जायदाद पर बेटे-बेटियों का समान अधिकार दिया गया हैं। लेकिन हर परिवार में इसे नहीं माना जाता। कहीं समाज, कहीं परिवार तो कहीं धर्म आडे आ जाता है।
✓मुसलिम-: इस समाज में और भी कम (न्यूनतम)
आयु में शादी को मान्य माना गया है। लगभग 15 की आयु को समाज उपयुक्त मानती हैं। इनमें एक से ज्यादा पत्नी रखने के नियम हैं। पिता के संपत्ति का अधिकार इनमें पहले से ही बेटे-बेटियों का है पर प्रतिशत के हिसाब से बंटवारे का प्रावधान है। यह सब समाज के उच्च पर बैठे लोग करते हैं। और उसी फैसले ही सब मानते हैं। लेकिन किसी को उनके फैसले से एतराज है तो वो कानून के दरवाजे खटखटा सकता है। पर आम तौर पर लोग ऐसा नहीं करते। वे बुजुर्ग तथा समाज के उच्च स्तर की बात पर सहमती देते हैं।
✓ सिक्ख-: इन धर्मों के लोगों में विवाह तो होता हैं परन्तु साधारणतः इनमें तलाक की नौबत नहीं आती। और अगर किसी कारण से पति-पत्नी को अलग होना पड़े तो तलाक की बात आती है ऐसे में इस धर्म के लोग "हिन्दू मैरिज एक्ट" को मानते हैं।
✓ईसाई-: इस धर्म में विवाह के बाद अगर उन्हें अलग होना है तो पहले दो साल अलग रहना पड़ता है फिर तलाक़ की बात आती है। इसके अलावा ईसाई धर्म में संपत्ति के उत्तराधिकारी की बात आए तो इनमें मृत बच्चे की संपत्ति का हक उसकी मां को नहीं है। उसका पूरा हक बच्चे के पिता को मिलता है।
अब अगर सिविल कानून लागू होता है तो अलग -अलग धर्मों के रीति रिवाज पर असर पड़ सकता हैं।
कानूनी जानकारों के अनुसार कानून और धर्म दोनों अलग चीज है। यहां बात सिर्फ धर्म की नहीं राज्यों के भी कुछ अलग नियम बंधे हैं। उन सबों की सहमति, तर्क-वितर्क की भी आवश्यकता है। 
       सिर्फ गोवा एक मात्र ऐसा राज्य है जहां  UCC लागू है। सूत्रों के अनुसार यह पुर्तगालियों द्वारा लागू किया गया था। आजादी से पहले करीब 450 सालों तक उनका गोवा में कब्जा था। तब उन्होंने ही यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू किया था जो आज भी गोवा सिविल कोड के नाम से लागू है।
दोस्तों, इस आर्टिकल की करीब हर जानकारी खबरों, सूत्रों और जानकारियों पर आधारित है लेकिन मेरी अपनी व्यक्तिगत राय भी है जो मैं इस लेख के जरिए आप सबों से साझा करना चाहूंगी...
मुझे ठीक से ध्यान नहीं, यह मैंने कहीं पढ़ा या सुना था-जो मेरी भी राय है। बात थी- देश के नागरिकों को शिक्षित बनना प्रथमिकता होनी चाहिए। शिक्षा पर खर्च करना, शिक्षा की सही व्यवस्था करना होगा। इस ओर सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए न कि कानून पर.....।
आप अगर ध्यान देंगे तो पाएंगे शिक्षित समाज में "सिविल कानून" के तहत आने वाले मामलों का शुन्य प्रतिशत प्रभाव पड़ता हैं। चाहे वो किसी भी धर्म से ताल्लुक रखता हो। 
शायद पाठक गण मेरी बात से सहमत होंगे......।

प्रश्न-: (क्या गोवा राज्य में UCC का समान हक 
           है?) 
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