देश और राजनीति-----

🙏 दोस्तों
                           According to news आज का लेख देशभक्ति और राजनीति अंतर को समझाने की कोशिश करेगा। कुछ नई-पुरानी महत्वपूर्ण घटनाओं की ओर ध्यान देंगे तो शायद हमें यह बात समझने में आसानी होगी कि आज की देशभक्ति और राजनीति में क्या समस्या है? 
इन महत्वपूर्ण घटनाओं पर चर्चा करने से पहले हम आपको बताना चाहेंगे-लेख के अंत में आप सबों के लिए एक साधारण सा सवाल रहेगा.....हो सके तो हमारे Comment Box पर जवाब लिख भेजें......।
दोस्तों, तमाम खबरों के संग्रह से पता चलता है देशभक्ति और राजनीति तीन प्रकार से हमारे सामने हैं....
एक- आजादी से पहले की 
दूसरी- आजादी के बाद की 
तीसरा- अब...... की।

1) जब भारत पर ब्रिटिश शासन था अर्थात हमारे देश में अंग्रेजों का राज था तब लोग (भारतीय) देश की आजादी के लिए संग्राम (लड़ाई) करते थे। चाहे वो राजनीति स्तर पर हो, संगठनों के जरिए हो या फिर खुलेआम.... पर अपनी मातृभूमि के लिए देशवासी आगे आते थे। महिला-पुरुष, गांव-शहर, शिक्षित-अशिक्षत, अमीर-गरीब, नाबालिग-बुजुर्ग, हिन्दू-मुसलिम, जाति-धर्म हर वर्ग के भारतीय आगे आते थे। स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने। न जाने कितने अंजान नाम हैं जिन्होंने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं।
1857 की क्रांति, नील विद्रोह, जलियांवाला बाग हत्या कांड, भारत छोड़ो आन्दोलन आदि घटनाएं भारत को आजादी दिलाने की महत्वपूर्ण घटनाओं में से हैं।
देश की आजादी के लिए किसी ने कलम का इस्तेमाल किया तो किसी ने हथियार का..... किसी ने देश को स्वतंत्र करने के लिए अपना तन, मन, धन सब कुछ न्यौछावर कर दिया। सिर्फ एक मकसद "भारत की आजादी".....हमारी आजादी।
अंततः 1947 को हमारा देश आजाद हुआ। 
2023 के 15अगस्त को भारतियों ने 77वीं आजादी दिवस मनाई.....। परंतु हर किसी ने उन स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को ठीक से याद नहीं किया। बस उत्सव मनाया.....।

2) अब बात करते हैं आजाद भारत की......200 वर्ष बात देश आजाद हुआ था। सारी व्यवस्थाएं अस्त-व्यस्त हो रखी थी। 
200वर्ष कम नहीं होते इसमें कईयों की कई पीढ़ियां समा गई थी। उन्होंने सिर्फ गुलामी देखी। आजादी का स्वाद चखा ही नहीं। जाना ही नहीं कि आजादी क्या होती है।
अंग्रेज भारत छोड़कर चले तो गये लेकिन जाते-जाते, न बुझने वाली एक आग लगा गये। जो  आज भी नहीं बुझी। धार्मिक (हिन्दू -मुसलमान) मतभेद की आग.... 
वे देश को दो भागों में बांट गये। जिससे देश के हर क्षेत्र में तनाव फैल गया। आपसी फूट पैदा हो गई।दूसरी ओर अंग्रेज भारत को सामाजिक, आर्थिक जैसे कई चोटें भी दे गये।
ऐसे में देश के तत्कालीन दूरदर्शी व्यक्तियों ने देश को संभालने की कोशिश की और देश को विकास की ओर ले जाने का निःस्वार्थ बीड़ा उठाया। भारत को विकास के पथ पर अग्रसर किया। उनमें हैं-
सामाजिक भेदभाव दूर करना, कुरीतियों को मिटाने का कार्य, अशिक्षित लोगों को जागरूक करना, संविधान का गठन, आर्थिक व शिक्षा क्षेत्र में सुधार, अंतरिक्ष सेवा केन्द्र स्थापित, पंचशील, प्रांतों को उत्तरदायित्व देना, अध्यादेश, कंप्यूटर, दूरसंचार, एयरलाइंस, मनरेगा, अर्थ व्यवस्था को नई दिशा देना आदि कार्य कर भारत की अस्त-व्यस्त व्यवस्था को सुचारू रूप से आगे बढ़ाया गया।
भारतीय वीर सेनानियों ने देश को  अंग्रेजों के चूंगल  से निकाल आजादी दिलवाई और उसके बाद भारत के दूरदर्शी व्यक्तियों ने देश को संवारा और संभाला।
           ये ऐसा दौर रहा जब राजनीतिक व्यक्तिगण  आजाद देश की तथा समाजसेवा की तरक्की करते देखें जाते थे। यहीं उनकी कमाई हुआ करती थी।         स्वतंत्रता दिवस पर शहीदों को याद किये जाते थे। नेता-कार्यकर्ता अपने भाषणों में किसी न किसी सेनानी को स्थान देते थे। स्कूल-कालेजों में उन्हें याद किए जाते थे। सिर्फ उत्सव मनाने के लिए यह दिवस नहीं मनाया जाता था। बल्कि उनके बलिदान को याद किया जाता था। 
3) देशभक्ति और राजनीति का मतलब पिछले कुछ सालों से बदल गया है। पहले देश के लिए जान देते थे अब राजनीति दल के लिए खून बहाया जाता है।            राजनीति करने वालों में अब वो बातें न रही, जो पहले लोगों में हुआ करतीं थीं। अब ये प्लेटफार्म कमाई का जरिया बन गया है। 
राजनीति से जुड़ना नेता बनना और कुर्सी को हथियार बनाकर किसी भी तरीके से कमाना। अगर कुर्सी न मिली तो कुर्सी वालों की मदद कर कमाना। किसी भी प्रकार से कमाना मकसद हो गया है। राजनीतिक पावर का भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। जिस वज़ह से आपराधिक मामले दिन प्रतिदिन बढ़ते चले जा रहे हैं।
देश में कई ऐसे हैं जो देश के अंदर आर्थिक तंगी पैदा कर रहे हैं तो कई हैं जो विदेशों में, देश के आर्थिक अपराधों के साथ सपरिवार आराम फरमा रहे हैं।यह मौका राजनीति स्तर पर उन्हें मिलने की पूरी उम्मीद है, ऐसा सूत्रों से पता चलता है।
असामाजिक तत्व में काला धन, भ्रष्टाचार को खत्म करने वाले कानूनी चेष्टाएं भी फेल होती दिखाई देती हैं, कारण नेता, मंत्री और उनके पावर .....।
कुछ है जो कोशिश कर रहे हैं या उनकी कोशिशें जारी हैं पर अब वो जज्बा नहीं, जो हुआ करता था।
इसलिए खबरों के अनुसार राजनीति क्षेत्र के कारण देश का आर्थिक, सामाजिक, औद्योगिक विकास एक गंभीर समस्या बन गई हैं। शायद यह बात करीब-करीब अनेक देशों की है पर भारत देश की बात अलग है। क्योंकि 200सालों बाद आजाद पाने वाला देश, फिर से अस्त-व्यस्त हो गया है, फिर से जात-पात के भेदभाव के चुंगल से फस गया हैं। 200साल बाद मिले आजादी का स्वाद हम भारतीय 100साल भी न लें पाएं। लगता है हमारे पूर्वजों का बलिदान व्यर्थ गया।

(प्रश्न-: आज की राजनितिक व्यवस्था पर शिकंजा कसा जा सकता है?)
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