जमीन-आसमान का खर्च......

दोस्तों 🙏
                   According to News आज के इस आर्टिकल से हमें अपने देश की "धरती" और देश के "स्पेश प्रोग्राम" पर हुए आनुमानिक खर्च का पता चल सकता है। लेकिन एक छोटी सी जानकारी.... लेख के अंत में एक सरल सवाल, जिसका सही जवाब हमारे Comment Box पर हमें लिख भेज सकते हैं....।
दोस्तों, आज लेख के जरिए हम जमीन-आसमान के खर्च को समझने की कोशिश करेंगे। कोशिश करेंगे खर्च के अंतर को जानने की....। 
हमारा देश जो की धरती पर है और चांद जो आसमा पर है,जानेंगे उन्हीं पर हुए खर्च(हाल में) का लेखा-जोखा..... कैसा और कितना है? धरती और आसमान के खर्च का अंतर कितना हो सकता हैं? 
कहीं यह फर्क जमीन-आसमान का तो नहीं? वरना चांद पर रहने का हम कैसे सोचेंगे?
पहले चन्द्रमा का खर्च जान लेते हैं.....।
जैसा कि सूत्रों की जानकारी से हमें पता है, दुनिया के कई देशों के साथ भारत भी चांद पर कदम रख चूका है। भारत के "राकेश शर्मा" के कदमों ने चांद की सतह को बहुत पहले छू लिया था। इसके अलावा हमारे देश के वैज्ञानिकों ने दो बार अपने ज्ञान व मेहनत से चन्द्रयान-1 और 2 को चांद की सतह पर भेजा था। पहले यान से कुछ सफलता मिली पर दूसरा असफल रहा। लेकिन वैज्ञानिकों ने हिम्मत नहीं हारी और वे कोशिश करते रहे।
खबरों के अनुसार 2023 जुलाई माह में वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की कड़ी मेहनत से भारत का तीसरा चन्द्रयान चांद की ओर रवाना किया गया। और वो चन्द्रयान-3 सकुशल चांद की सतह पर उतर (लैंडिंग) चूका है।
इस "स्पेस प्रोग्राम" में भारत के करीब 16 हजार वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने महान काम कर दिखाया। उनकी शिक्षा, ज्ञान, रिसर्च, मेहनत के चलते पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन हुआ। इन्होंने अपने देश भारत की पहचान अंतरिक्ष ताकत के साथ दी।
भारत की पहचान को "इसरो" के वैज्ञानिकों तथा इंजिनियरों ने चन्द्रयान-3 के जरिए भारत को गर्वित किया।
यह बात सही है कि पहले भी कई देश चांद पर पहुंच चुकी हैं परन्तु चांद के "दक्षिणी ध्रुव' हिस्से में जो छायामान है वहां अब तक कोई देश नहीं पहुंचा था। 2023 में हमारा देश भारत पहली बार वहां पहुंचा। चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला भारत दुनिया का पहला देश है।
दुनिया में भारत की शान, गर्व, पहचान "इसरो" के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के मेहनत का फल हैं।
जिसकी कोई कीमत नहीं हो सकती पर मेहनत के साथ भौतिक चीजों की भी जरूरत होती हैं। जो आर्थिक बलबूते से पूर्ण होता है। इसलिए आगे बात करते हैं चन्द्रयान में अर्थात आसमान पर जाने के के लिए कितने खर्च हुए?
खबरों की जानकारी के मुताबिक अब तक भारत चांद पर तीन बार तीन चन्द्रयान भेजा हैं .....
जिन पर खर्च आया करीबन......
1) चन्द्रयान-1 (386 करोड़ के करीब)
2) चन्द्रयान-2 (978 करोड़ के करीब)
3) चन्द्रयान-3 (615 करोड़ के करीब) 

चन्द्रयान-1 चांद पर भेजा गया था 2008 में तब के महंगाई के मुताबिक यह खर्च था, दूसरी बार 2019 में भेजा गया। नई तकनीक के साथ इसलिए इतना खर्च आया पर तीसरी बार चन्द्रयान-3 को काफी सोच-विचार कर, सस्ता पर मजबूत तकनीकियों पर ध्यान देते हुए बनाया और भेजा गया। जो दुनिया के अन्य देशों के खर्च की तुलना में कम माना जा रहा है। और यह सफलता पूर्वक लैंडिंग हुआ। दूसरे देशों की तुलना में भारत का चन्द्रयान-3 अधिक समय लेने का यह भी एक कारण माना जाता है। लेकिन "इसरो" में कम खर्च और सॉफ्ट लैंडिंग को विशेष ध्यान रखा गया।
दोस्तों, अब चर्चा करते हैं देश के जमीन में हो रहे खर्चों के बारे में ..... हमारे देश में फिल्में, मूर्तियां, धर्म स्थल, भवन, पुल, सड़कें, योजनाएं, राजनीतिक स्तर पर खर्चें, V.I.P.खर्चे, V.I.P. निवास स्थान, V.I.P. सुरक्षाऐं आदि के आर्थिक खर्चों पर ठीक से गौर करें या विशेष सूत्रों का अध्ययन करें तो पाएंगे इनमें होने वाले अलग-अलग या एकांकी तौर पर भी खर्च देखें तो पायेंगे देश की धरती महंगी है, आसमान की तुलना में....।
देश में हो रहे इन खर्चों में और भी कई चन्द्रयान भेजे जा सकते थे। अंतरिक्ष में अनेक ग्रह-नक्षत्र है जिनसे निरीक्षण किये जा सकतें हैं।
देश की धरती पर हो रहे कई अनावश्यक खर्च से न खास फायदा हो रहा हैं और न ही दुनिया में हम अपनी शान दिखा पा रहे हैं।
खबरों के अनुसार कई खास व्यक्तित्व का मानना है अनावश्यक खर्च रोक कर, अगर वो खर्च शिक्षा क्षेत्र में किये जाएं तो देश शिक्षित व सभ्य बनेगा। शिक्षित व्यक्ति देश व समाज को आगे ले जा सकता (जैसा कि "मिशन मून" 2023....) हैं।समाज में हो रहे अनैतिक कार्य बंद हो सकते हैं। इसके अलावा व्यर्थ के खर्च रोक कर "स्पेस प्रोग्राम" में भी खर्च करने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत Top पर जुड़ सकता है। परीक्षणों के माध्यम आर्थिक परिस्थिती उच्च स्तरीय हो सकती है।
चंद दिनों में ही विशेष सूत्रों से जानकारी मिली है- चन्द्रयान-3 के चन्द्रमा पर सफल 'सॉफ्ट लैंडिंग' से उन कंपनियों की वैल्यू बड़ी हैं, जिन कंपनियों ने 'इसरो' के इस प्रोग्राम में निवेश किया था। अर्थात हम मान सकते हैं "मिशन चांद" ने देश का मान बढ़ाया और निवेशकों की वैल्यू ......।
देश की जमीन में जो खर्च हो रहे हैं उनकी जितनी तथा जिस क्षेत्र में आवश्यकता है उतना ठीक है पर अत्यधिक व अनावश्यक खर्चों का फायदा देश तथा देशवासियों को (सबों को) नहीं मिल पा रहा हैं।
           खबरों के अनुसार देखा जाए तो आसमान का खर्चा ज़मीन से बहुत कम है लेकिन कामयाबी बहुत ज्यादा है।
(प्रश्न:- क्या कामयाबी के लिए प्रचार की आवश्यकता होती हैं?)
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