आरक्षण ------

 🙏 दोस्तों, 

                      

 According to report आज के आर्टिकल में "आरक्षण" से संबंधी जानकारियां लेंगे। पर पहले एक सूचना- लेख के अंत में हमारी ओर से एक छोटा सा सवाल रहेगा जिसका जवाब हमारे Comment Box पर भेज सकते है......।

यहां आपको बताते चलें कि आरक्षण क्या है और इसकी आवश्यकता क्यों हैं .......?

आरक्षण का सीधा और सरल अर्थ होता है- अपनी जगह सुरक्षित रखना। हमारे देश के संविधान में आरक्षण कानून लागू करने की व्यवस्था इसलिए की गई ताकि सामाजिक संतुलन बना रहे। किसी पर अन्याय नहीं हो। पिछड़ी जाति और कमजोर वर्गों के बीच की समानता बनी रहे।

लेख में बात "महिला आरक्षण" की करेंगे। महिलाओं को कमजोर वर्गों में गिना जाता है अतः उनके लिए  1996 में पहली बार आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। 

खबरों के मुताबिक 1996 में लाया गया "महिला आरक्षण बिल" विभिन्न कारणों से पिछले 27 वर्षों से लटका हुआ था। प्रयास जारी रहा लेकिन लागू नहीं हो पाया। अफसोस नये संसद (2023) में भी लागू नहीं हो पाया। 

हमें  याद रखना होगा पारित करना और लागू करना अलग बात है।    

यहां बात महिलाओं के राजनीतिक स्तर में सशक्ति प्रतिनिधित्व देने की है। राजनैतिक क्षेत्र में महिलाओं को आगे लाने की कोशिश के रूप में "महिला आरक्षण बिल" लागू करना है। ताकि हर वर्ग की महिलाएं राजनीतिक क्षेत्र में भाग ले, प्रतिनिधित्व कर सके।

खबरों के अनुसार नये संसद में महिला आरक्षण बिल पारित कर दिया गया है। जिसका सबों ने खुशी-खुशी समर्थन किया। संसद के भीतर-बाहर सबों ने खुशियां मनाई। खास कर महिलाएं काफी खुश हैं। लेकिन क्या यह बिल सही मायने में लागू हो पाया है? इसके  लिए खुशी जताने वाली कोई बात है? 

ठीक से ध्यान दिया जाए तो फिलहाल यह बिल दो शर्तों के बीच फस कर रह गया हैं....           (1)परिसीमन  (2) जनगणना।

इन दो शर्तों से उभरने में शायद और भी 27 साल लग सकते हैं। कारण प्रक्रिया लम्बा व पेंचिदा हैं ......।

           सूत्रों के आधार पर जाना जा रहा है- "महिला आरक्षण बिल" करीब 15सालों की मियाद में बनेगा, 33 फीसदी महिला आरक्षण के प्रावधान से, इस बिल में देश की मुस्लिम महिलाओं की गिनती नहीं तथा दो शर्तों के साथ राष्ट्रपति के मंजूरी होने  के बाद ही बिल लागू होने की संभावना है। इससे पहले यह आरक्षण बिल देश में लागू न हो पाएगा...... अर्थात अभी इस साल (2023) लागू नहीं हुआ है। अतः खुशी मनाने वाली कोई बात समझ नहीं आती। बल्कि लटकता दिख रहा है। खैर, अपनी-अपनी समझ है .......।

    वैसे आरक्षण का महत्व हमारे बीच नहीं के बराबर है। चाहे समाजिक स्तर में हो या राजनीति क्षेत्र में नहीं के बराबर ही हैं। सूत्रों के अनुसार कुछ ऐसी-ऐसी घटनाएं हमारे समक्ष हैं जो इस बात का प्रमाण है.....।

          दोस्तों, खबरों की जानकारी से हमें पता चलता है आए दिन पिछड़ी जाति पर सामाजिक अमानवीय अत्याचार और व्यवहार किया जाता हैं। महिलाओं पर भी कुछ ऐसा ही ज़ुल्म ढाया जाता हैं। चाहे ऑफिसियल हो या नौनऑफिशियल..... दुल्हा (पिछड़ी जाति)घोड़ी पर चढ़ नहीं सकता, लोग (छोटी जाति) मंदिरों में प्रवेश नहीं कर सकते, विद्यालय प्रांगण में घड़े से पानी पीने पर मारा जाता है आदि इस प्रकार की अनेक घटनाएं हैं जो संविधान को नहीं मानता।

        इसके अलावा बिना महिला आरक्षण के, केंद्र व राज्यों में अभी जब कुछ महिलाएं राजनीतिक उच्च स्थान पर बैठी हैं, बावजूद उसके देश की अनेक साधारण तथा खास महिलाओं को आए दिन असम्मानित होना पड़ रहा हैं। चाहें वे महिलाएं राजनीतिक क्षेत्र से जुड़ी हो या समाज के अन्य वर्ग से आती हो......उनकी सम्मान की रक्षा करने वाला/वाली कोई नहीं।

खबरों के अनुसार उदहारण के तौर पर हम हमारे देश की वर्तमान राष्ट्रपति जी का जिक्र करना चाहेंगे। जो एक महिला है। आज जब नये संसद में महिला संबंधित खास कार्यक्रम हो रहा है तब भारत की प्रथम नागरिक, वो भी संयोगवश महिला है, जो इस कार्यक्रम के दौरान कही भी नजर नहीं आईं। वो नज़र नहीं आई पुरानी संसद के अंतिम दिन के कार्यक्रम में भी....... यानी पुरानी संसद के अंतिम दिन और नये संसद के प्रथम दिन के कार्यक्रम में दिखाई नहीं पड़ी।......

दोस्तों, सिर्फ इतना ही नहीं सूत्रों के अनुसार यह भी  जानकारी मिली है कि देश की वर्तमान महिला राष्ट्रपति, नये संसद के शिलान्यास (10.12.2020) पर तथा नया संसद उद्घाटन समारोह (25.5.2023) पर भी उपस्थित नहीं मिली। अब नये संसद के प्रथम कार्यक्रम में भी शामिल नहीं थी। जबकि एक महिला व राष्ट्रपति के हैसियत से उनकी उपस्थिति और से ज्यादा जरूरी थी। ऐसे में महिलाओं को प्रेरणा और उत्साह मिलता। चूंकि सवाल महिला आरक्षण बिल का था।

महिला आरक्षण कार्यक्रम में उनकी अनुपस्थिति कहीं न कहीं महिला आरक्षण बिल पारित पर प्रश्नचिन्ह (?) लगा रहा है, ऐसा देश की अनेक महिलाओं का मानना हैं। उनका यह भी मानना है, सारे पड़ाव व शर्तों को पार करने के बाद भी क्या ऐसे में फायदे की कोई गुंजाइश रहेगी?

         इस दिन नये संसद में उपस्थित न रहने के पिछे का  करण "सेन्ट्रल हॉल" बताया जा रहा है। जिसकी व्यवस्था अभी नये संसद में नहीं है। तो क्या पुरानी संसद में भी नहीं थी? 

खैर, बात कुछ भी हो महिला आरक्षण कार्यक्रम में देश की प्रथम नागरिक महिला को दूर रखना अनुचित व महिलाओं के प्रति गैर जिम्मेदाराना व्यवहार हैं.....।

             खबरों से एक भयंकर अपमानित खबर उठकर आ रही है- राजनीतिक क्षेत्र मे चर्चा है वर्तमान भारत की महिला राष्ट्रपति को संसद में इसलिए नहीं बुलाया गया क्योंकि वो एक आदिवासी, व विधवा महिला है।

दोस्तों, इन तमाम बातों से मन में अनेक सवाल उथल-पुथल हो रहे हैं जो जुवान तक आने के लिए व्याकुल है। पर.........। अफसोस .......


(प्रश्न:- क्या आज भी हमारे समाज में विधवा को अशुभ माना जाता हैं?)

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