यूं इतिहास रचा------

🙏 दोस्तों, 

                       

 According to report आज का आर्टिकल हमें बतलाने की कोशिश करेगा कि  इतिहास कैसे रचा जा सकता है.......। लेकिन पहले एक खास बात- आर्टिकल के अंत में दिए गए एक सवाल का जवाब हमारे Comment Box पर लिख भेजिएगा ......।

दुनिया में इतिहास रचना मामूली बात नहीं है। आप किसी की तैयार, बनी बनाई चीज को तोड़-मरोड़कर, नाम बदलकर, डेकोरेशन व प्रचार कर इतिहास नहीं रच सकते। सच है- यूं इतिहास नहीं रचा जा सकता। अपनी कैपीबीलैटी (Capability) होनी चाहिए, शायद तब इतिहास रचा जा सकता है।अपने क्षमता तथा हुनर पर यह निर्भर करता हैं। 

दोस्तों! खबरों के अनुसार पिछले सप्ताह हमारे देश की सबसे बड़ी अदालत "सुप्रीम कोर्ट" में पहली बार एक आश्चर्यजनक घटना घटी..... घटना ने इतिहास रच डाला। 

घटना एक पर कैपीबीलैटी अनेक.....।           

अगर आप घटना की गहराई तक जाकर इसका अनुमान लगाएंगे तो आपको दांतों तले उंगली दबानी पड़ेगा। घटना को साधारण तरीके से नहीं लेना है....।

      सुप्रीम कोर्ट में पहली बार घटी इतिहास रचने की घटना "भाषा" से संबंधीत है.....।

हम "भाषा दिवस" मनाते है। जिससे पता चलता है कि भाषा हमारे जीवन में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भाषा हमें एक-दूसरे के करीब लाती हैं तो वहीं दूसरी ओर यही भाषा हमें एक-दूसरे से दूर भी करती हैं। 

अभी हाल ही की बात है अमेरिका की राजदूत महिला ने हिन्दी भाषा सीख जी-20 में शामिल हो हिन्दी में इंटरव्यू दिया था। हर सुनने वाला भारतीय उनसे काफी प्रभावित हुआ...

दुनिया में ही नहीं हमारे देश में भी अनेक  प्रकार की भाषाएं बोली जाती हैं। अनेक ऐसे लोग हैं जो कई भाषाओं को जानते हैं। फिर देश की ही कई ऐसी भाषाएं भी हैं जिसे हम समझ या बोल नहीं पाते। दिक्कत तब होती हैं जब हम ऐसे क्षेत्रों में जाते हैं जहां भाषा रुकावट पैदा करती हैं। जैसे- कहीं इलाज, पढ़ाई, नौकरी, व्यापार या राजनीति तौर पर भाषण देने गये तो वहां भाषा समझने और समझाने में परेशानी का समाना करना पड़ता हैं। ऐसे में कई बार लोगों को दोभाषिये की जरूर पड़ जाती है। जो करीबी भी हो सकते हैं या पेशे गत.....।

दुनिया के विभिन्न कोने में जाएंगे तो भी भाषा को समझने के लिए अनुवादक की जरूरत होती है।

          साथियों, आम तौर पर भाषा को दो प्रकार में बांटा जा सकता हैं- बोलचाल वाली भाषा और सांकेतिक भाषा.....।

इस लेख में अब तक हमने बोलचाल वाली भाषा का जिक्र किया अब हम दुनिया की दूसरी भाषा का जिक्र करते है। यह भाषा है "सांकेतिक भाषा'.... यानी इशारों से समझाने वाली भाषा.....। 

साधारणतः सांकेतिक भाषा "मूक-बधिर समुदाय" के लोग की भाषा होती हैं। जिसे वे ही समझ पाते हैं या जो लोग हमेशा उनके संपर्क में रहते हैं वे समझ पाते हैं। हम साधारण लोग इस सांकेतिक भाषा से या तो आश्चर्य होते हैं या फिर इसे मजाकिया तौर पर लेते हैं। 

           मूक-बधिर समाज के लोगों को अब तक हमने उनके सांकेतिक भाषा के जरिए न्यूज, नृत्य, बुलेटिन, खिलाड़ी, मूक-बधि शिक्षक, विभिन्न पदों की नौकरियों जैसे पेशों से जुड़ा पाया। लेकिन आज एक ऐसे नये पेशे से जुड़ा पाएंगे जहां सांकेतिक भाषा की कोई जगह नहीं। जिस पेशे में आपको अनर्गल बोलते रहना है तभी उस पेशे में कामयाब हो पाएंगे।

      यहां "वकालत" पेशे की बात कही जा रही है.... जी, हां! एक मूक बधिर का वकील बनना हैरत में डालने वाली बात है ..... क्योंकि वकालत पेशे में बहुत बोलना, बहस करना पड़ता हैं। जो कि इस समुदाय के लोगों के लिए असंभव हैं। क्योंकि ये न बोल पाते हैं और न ही सुन पाते हैं।

खबरों के अनुसार हमारे देश में शायद अब तक कोई मूक-बधिर इस पेशे से जुड़ा नजर नहीं आया। लेकिन अब पहली बार, वो भी देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में एक मूक-बधिर महिला वकील ने सांकेतिक भाषा के जरिए इतिहास रचा डाला.....साथ ही तारीफेकाबील वे भी हैं जो इस घटना से पूरी तरह जुड़े हैं। उनकी भी जितनी प्रसंशा की जाए कम हैं।

खैर, बात पिछले सप्ताह की है। सूत्रों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के अंदर एक "मूक बधिर महिला वकील" केस में "बहस" के  लिए सामने आई। सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में इस तरह की यह पहली घटना थी।

दोस्तों, जैसा कि हम जानते हैं वकालत का पेशा बोलने वाला पेशा होता हैं। इस पेशे में अधिक से अधिक बोलने तथा बहस करने की कला आनी चाहिए। तभी इस पेशे का वजन बढ़ता है। चूप रहने या कम बोलने वाला पेशा यह नहीं है....न ही इशारों से अदालत में काम चलता हैं। तब समझिए देश के सबसे बड़े अदालत में एक मूक बधिर वकील की उपस्थिति? चौंकाने वाली बात ही है.....।

CJI चन्द्रचूड़ जी को जब पता चला अदालत में एक मूक-बधिर वकील अपने मुवक्किल के लिए बहस (पैरवी) करेगी तो वे चौंके.... यह कैसे होगा? वो महिला वकील हो या पुरुष वकील, जो सुन-बोल नहीं सकता वो केस पर बहस कैसे कर सकता हैं? सिर्फ वे ही नहीं चौंके, अदालत में उपस्थित और सदस्यों का भी यही हाल था। सब स्तंभित.... आखिर यह कैसे हो सकता हैं?

इसी बीच अदालत के सामने दोभाषिये की बात आई।

इस पर अदालत में उपस्थित सभी गणमान्यजन और भी चकित हुए। केस की लड़ाई में दोभाषिय क्या कर सकता है? आखिर अदालत में होगा क्या? किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। हर कोई आश्चर्यचकित थे। 

बताया जाता है इसी बीच मूक-बधिर महिला वकील की सिनियर महिला वकील (बोलने में सक्षम) ने अदालत से प्रार्थना की कि उनके जूनियर मूक-बधिर महिला वकील को एक मौका दिया जाए। शारीरिक कमी आड़े नहीं आएगी। इस पर अदालत से जुड़े कुछ सदस्यों ने इसका विरोध किया लेकिन CJI चन्द्रचूड़ जी ने मौका दिया। कारण सूत्रों की जानकारी से मालूम होता है उनका हृदय कहीं न कहीं शारीरिक अक्षमता वालों के लिए दुखता हैं। 

दोभाषिये को भी अदालत के भीतर, मूक-बधिर महिला वकील के समक्ष अपने कार्य को करने की अनुमति दी गई। 

अदालत के भीतर सदस्यों के विरोध करने पर भी माननीय चन्द्रचूड़ जी ने दोनों (मूक-बधिर वकील और दोभाषिये) को अपने मुवक्किल के लिए बहस करने की अनुमति दी। 

अनुमति मिलने के बाद अदालत के भीतर का जो दृश्य था, चौंकाने वाला था। वहां जो भी कुछ हुआ, वो इतिहास बन गया ........हर एक तारीफ करते थक नहीं रहे थे। महिला वकील और दोभषिये ने सबों का दिल जीत लिया।

            दरअसल, काले कोट में मूक-बधिर महिला वकील सांकेतिक भाषा के जरिए लॉड के समक्ष अपने मुवक्किल के लिए बहस कर रही थीं और वहीं अदालत के भीतर दोभाषिये की अनुवादिक आवाज गूंज रही थी। आवाज़ पुरुष की थी लेकिन उपस्थित सबों को मूक-बधिर महिला वकील की बातें स्पष्ट समझ आ रही थी। उनका इशारा (भाषा) मानो बोल रहा था। जैसे वो ही बोल रहीं हों। दोभाषिये के बोलने का अंदाजा गजब का था। किसी को एक पल के लिए समझने में असुविधा नहीं हुई। 

दोभाषिये ने ऐसा प्रोक्सी दिया कि सब हैरान रह गये। भाषा, शब्दों के उतार चढ़ाव, धीमी गति,तेज रफ़्तार, प्रश्न वाचक, ब्रेक, हल्की मुस्कान, क्रोधित आवाज हर एक चीज को बढ़े सुन्दर ढंग से, वकील के सांकेतिक भाषा के साथ-साथ वो बोलता चला गया। उसकी पेशी में कोई कमी नहीं थी। धन्यवाद, थैंक्यू, शुक्रिया जैसे इशारे भी उन्होंने बोलचाल के शब्दों में पेश किया। वहीं साथ-साथ दूसरी ओर वो जरूरत पड़ने पर सांकेतिक भाषा के जरिए मूक-बधिर महिला वकील को अदालत की बातों को समझाता रहा। उन्हें अवगत करवाता रहा कि अदालत तथा जज की तरफ से उन्हें क्या कहा जा रहा हैं।। कारण उन्हें (मूक-बधिर वकील) लोगों की सुनाई भी तो नहीं देती। 

दूभाषिये ने वकील की मदद करते हुए जज तथा अदालत के भीतर के सभी सदस्यों को भी समझाने में सहायता की.....।

मूक-बधिर वकील अपने संकेत के जरिए जो भी कुछ बोलतीं रहीं, तुरंत दोभाषिये ने अदालत में बिना समय गंवाए वहीं बोलता चला गया। एक ओर इशारे की भाषा वहीं दूसरी ओर साथ-साथ बोलचाल की भाषा....। मानो इन्होंने अदालत में उपस्थित लोगों को ही बधिर बना दिया हो.....। सब स्तब्ध हो उन्हें सुन रहे थे।

खैर, सुप्रीम कोर्ट में पहली बार ऐसी घटना ने इतिहास रच दिया।

इस घटना के तारीफ के लिस्ट में - महिला मूक-बधिर वकील, दोभाषिये, मूक-बधिर वकील की सिनियर महिला वकील तथा CJI चन्द्रचूड़ जी शामिल हैं।

          दोस्तों, दोभाषिये भी एक पेशा है। लेकिन दूसरे क्षेत्र में सामने वाला बोलकर रुकता है फिर उसे अनुवाद कर वो बोलता है। फिर दोभाषिये रुकता है तो सामने वाला अपनी बात रखता है। इस प्रकार पहला बोलता है, दूसरा चूप रहता है। फिर दूसरा बोलता है तो पहला चूप रहता है। इन क्षेत्रों में वहीं (स्थान ) पर रुक-रुक कर बोलने की प्रक्रिया हैं।

         परंतु वकालत के पेशे से जुड़ा दोभाषिये को हमने पाया यहां रुकने की कोई प्रक्रिया नहीं है। बल्कि साथ-साथ दो काम बिना रुके करते रहना पड़ता हैं। वो वकील (मूक-बधिर ) के सांकेतिक भाषा को बोलकर उन्हीं के अंदाज में जज को या अदालत को बतलाता है वहीं दूसरी ओर तुरंत के तुरंत मूक-बधिर वकील को भी अदालत या जज की ओर से कहीं बातों को सांकेतिक भाषा में बताता हैं। जो आसान नहीं। बहुत ही मेहनत और कठीन कार्य हैं। सम्पूर्ण केस दोभाषिये पर निर्भर करता है। इस क्षेत्र में दोभाषिये को अपनी बोलचाल की भाषा, अदालती भाषा, सांकेतिक भाषा का पूर्ण ज्ञान होना बहुत ही जरूरी होता हैं। खबरों के रिपोर्ट से मुताबिक ऐसा अंदाजा लगाया जाता हैं।

सुप्रीम कोर्ट का अद्भुत नजारा देश के सामने आया तो  साधारण लोगों के साथ-साथ कानूनी दुनिया के लोग भी झूम उठे..... देश के कई लोगों को प्रेरणा और नया रास्ता नजर आने लगा। वहीं मूक-बधिर समुदाय वाले अपने लिए काफी खुश हैं.....।


(प्रश्न:- सुप्रीम कोर्ट में रची गई इतिहास आगे मूक-बधिर समुदाय को मदद कर सकता हैं?)

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