According to report आज के लेख में राजस्थान के कोटा शहर के कोचिंग संस्थानों से संबंधित चर्चित चर्चा करेंगे। लेकिन पहले आप सबों को बतलाना चाहेंगे एक जरूरी बात....इस आर्टिकल के अंत में एक सवाल रहेगा, अगर चाहे तो उसका जवाब हमारे Comment Box पर भेज सकते है।
खैर, खबरों के अनुसार कुछ सालों से कोटा शहर में रह कर पढ़ाई कर रहे बच्चों के आत्महत्या की जानकारी मिल रही हैं। इसी बारे में आगे चर्चा करेंगे। आखिर आत्महत्या की वजह क्या है और इस पर रोक कैसे लगे?
पिंक सीटी राजस्थान राज्य का कोटा शहर बहुत चर्चित शहरों में से एक है। इस शहर में अनेक ऐसी संस्थाएं हैं जहां से डाक्टर और इंजीनियर बना जा सकता हैं। कोटा शहर में अच्छी-खासी संख्या में कोचिंग सेंटर हैं, जहां बच्चे पढ़कर अपना भविष्य उज्जवल करते हैं। यहां से पढ़कर डाक्टर और इंजीनियर बनाते हैं। वे अपना तथा अपने अभिभावकों की इच्छापूर्ति करते हैं।
कोटा के कोचिंग संस्थानें देश में अपना खास स्थान बनाएं हुए हैं। इसलिए यहां दूसरे शहरों और राज्यों से बहुत संख्या में विद्यार्थी डाक्टर और इंजीनियर की पढ़ाई पढ़ने आते हैं। वैसे स्थानीय बच्चे भी यहां पढ़ते हैं।
दूसरे राज्यों से आने वाले बच्चों के लिए यहां अनेक P.G. खुले हुए हैं। प्राइवेट मकान भी किराए पर दिया जाता हैं। अपने घर-परिवार से दूर हो पढ़ाई के लिए उन्हें वहां रहना पड़ता हैं। और वे रहते भी हैं। कोटा शहर में भावी डाक्टर, इंजीनियर के माध्यम एक अच्छा खासा व्यापारिक केंद्र बना हुआ हैं। छात्र-छात्राओं के जरिए अनेकों की कमाई होती हैं, बदले में छात्र-छात्राओं को अपने भविष्य बनाने का सुअवसर मिलता हैं।
माता-पिता अपने बच्चों के अच्छे भविष्य और अपनी इच्छा या शान के लिए उन्हें कोटा पढ़ाई के लिए भेज देते हैं। अपने सपनों को पूरा करने के लिए घर से दूर बच्चों को भेजते हैं।
सूत्रों के अनुसार पिछले पांच सालों में राजस्थान के कोटा राज्य में पढ़ाई क्षेत्रों (कोचिंग सेंटर) का माहौल बदल सा गया है। खास तौर पर कोविड-19 के बाद से यह नोटिस किया जा रहा हैं। बदलते माहौल का असर यहां के कोचिंग संस्थानों से जुड़े बच्चों पर बखूब पढ़ रहा है। खबरों के अनुसार बिगत पांच सालों में यहां करीब 75 विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर ली हैं।
आत्महत्या के पीछे का कारण कोचिंग सेंटरों का माहौल बतलाया जा रहा हैं। लेकिन ये कैसा माहौल बन गया है, जहां बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ रही हैं? क्योंकि पिछले कई दशकों से यह शहर डाक्टर, इंजीनियर की पढ़ाई का हब बना हैं जो पूरे देश में खास स्थान बनाएं रखता हैं। फिर ऐसी क्या बात हो गई कि कोटा कोचिंग संस्थानों का माहौल कुछ सालों से बिगड़ गया जिसके चलते बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ रही हैं?
दरअसल, इसके पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं-
1) कोविड-19 के बाद यहां, पढ़ाई व्यापार का केंद्र बन गया है। सालाना मोटी रकम से डाक्टर, इंजीनियरिंग की पढ़ाई में बच्चे यहां के कोचिनों में भर्ती होते हैं। एक बार ड्राप हो जाए तो अधिकांश बच्चे दूसरी बार ट्राई करते हैं। दोबारा उतने ही खर्च कर ..... कोचिंग की तरफ से उन पर पढ़ाई का अत्यधिक दबाव बनाया जाता हैं। जिस कारण पहली बार छोड़ दूसरी बार ट्राई करते हैं और यही सेन्टरों (संस्थाओं) की दोबारा मोटी कमाई होती हैं।
2) सुनने में आता है यहां कोचिंग संस्थानों में बच्चों के ग्रुप बना दिए जाते हैं। हर ग्रुप में करीब 200 से 300 बच्चे शामिल किए जाते हैं। एक समय सीमा के बाद जिनका हर सप्ताह "मोक टेस्ट" लिया जाता हैं। जानकारी के अनुसार कुल नम्बर में से 500 नम्बर के ऊपर पाने वाले को अच्छा माना जाता हैं। और 500 के नीचे पाने वाले की रैंकिंग अच्छी नहीं मानी जाती हैं। कोचिंग संस्थानों के क्लासों में अच्छे रैंकिंग वाले बच्चों पर ध्यान दिया जाता हैं जबकि खराब रैंकिंग वाले बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता। जिससे बच्चे तनाव में आ जाते हैं और हो सकता है वे हीनता के शिकार हो जाते हैं।
3) ऐसा भी सुनने में आया है इन दिनों डाक्टर और इंजीनियरिंग पढ़ाई के बीच धर्म-जाति भी आड़े आ गई हैं। आपसी माहौल बिगड़ने और तनाव में आ जाने से भी बच्चों का मन पढ़ाई से भटक कर उनका रुख आत्मग्लानि की ओर जा रहा हैं। इनसे भी माहौल खराब हो रहा हैं।
4) घर से दूर खाने-पीने, सोने, दैनिक अपने कार्य, मनोरंजन, अपनापन आदि मौलिक अधिकारों से इस उम्र के बच्चे बंचित रह जातें हैं। जबकि एक विद्यार्थी के लिए इन सबों की खास जरूरत होती हैं। तभी उसका मनयोग पढ़ाई में लगता है। यहां भी कमी नजर आती हैं।
5) डाक्टर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले कम उम्र के बच्चों पर माता-पिता का भी दबाव बना रहता हैं। जो उन्हें भीतर से मानसिक पीड़ा देते रहते हैं।
कमजोर व स्वाभिमानी बच्चे उपयुक्त कारणवश माहौलों से अक्सर डिप्रेशन में आ जाते हैं। इसलिए बच्चों और उनके उम्र की ओर ध्यान देते हुए अभिवावक पर इसकी पूरी जिम्मेदारी बनती हैं।
आत्महत्या के पीछे हो सकता हैं कई कारण हो, कई लोग ऑनसिक जिम्मेदार भी हो परन्तु समस्त सूत्रों की जानकारी लेने के बाद लगता है एक बच्चे के जान देने के पीछे कहीं न कहीं माता-पिता सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। क्योंकि वे ही सबसे ज्यादा जानते हैं कि उनके बच्चे का दिमाग, स्वास्थ्य, स्वभाव, इच्छा क्या हैं?
माता-पिता को चाहिए घर पर रहे या घर से बाहर कहीं जाकर पढ़ाई कर रहे हो, उनके टच में रह कर उनके मन तक झांकें। पल-पल की खबर लेते रहे। संस्थानों, जहां रह रहा है बच्चा वहां भी सम्पर्क बनाए रखें , वहां आते-जाते रहना चाहिए। उन्हें कहां क्या परेशानी हो रही है उस पर अमल करना चाहिए। उन पर सिर्फ पैसे खर्च करने से नहीं होगा, कदम-कदम पर उनके साथ रहना है। ताकि वे अपने को असहाय या टूटा महसूस न करे। अपने मन की हिम्मत कर आपसे शेयर कर सके।
अनेक परिवार में बच्चे अपनी मां से ज्यादा घुले-मिले रहते हैं तो किसी परिवार में देखा गया है बच्चे अपने पिता के ज्यादा करीब होते हैं। ऐसे में उन्हें अपने हिसाब से बच्चों को ज्यादा समय देना चाहिए।
अभिवावक को चाहिए बच्चे पर उतना ही बोझ डाले , जितना वो ढो पाएं .....।
शायद तभी इस तरह असमय जान जाने से बचाया जा सकता हैं। कहते हैं जान है तो जहान है ....।
अतः कहीं पर ऐसा लगे बच्चा परेशान हैं तो डाक्टर इंजीनियर की जरूरत नहीं, उसे अपने सीने से चिपकाए रखें। और घर पर रखकर ही उज्वल भविष्य को संवारने की कोशिश करें .....।
खबरों के अनुसार अगर कोटा शिक्षा संस्थानों में जाति-धर्म की बात आ गई है तो कोटा कोचिंग सेंटर का माहौल बाकई में खराब हो गया हैं।डाक्टर किसी की जाति-धर्म देख इलाज नहीं करता। अतः अभिवावक को अपने बच्चों के प्रति गंभीर हो जाना चाहिए।
(प्रश्न:- बच्चों के आत्महत्या के पीछे कोचिंग सेंटर जिम्मेदार हैं? आपको क्या लगता हैं?)
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