ड्रेस कोड------

🙏 दोस्तों, 

                        

According to report आज के आर्टिकल में हम "ड्रेस कोड" की जानकारी देने वाले हैं। पर पहले एक सूचना- इस आर्टिकल के अंत में एक सवाल रहेगा जिसका जवाब आप हमारे Comment Box पर भेज सकते हैं ........।


"ड्रेस कोड" यानी अनिवार्य पोशाक......इसकी जरूरत क्यों है? इसकी जानकारी विभिन्न चर्चाओं के माध्यम लेंगे।

         साथियों, जैसा कि हम जानते हैं हिन्दू धर्म के अनुसार "चार धाम" हैं। सूत्रों से जानकारी मिली है  जिनमें से एक धाम के मंदिर प्रशासन, कुछ "दर्शनार्थियों के परिधान" से काफी "असंतोष" व्यक्त कर रहे हैं। वे कुछ लोगों के "अशोभनीय पोशाकों" से "क्षुब्द" है। इसी को ध्यान में रखते हुए आज का हमारा यह लेख है......।

मानव जीवन में परिधान अर्थात पोषक का काफी "महत्व" हैं। पोशाक व्यक्ति के रुचि (Test) को वयां करता है। ये व्यक्ति के "व्यक्तित्व" को निखारने में अहम भूमिका निभाता है। इसलिए हम इसका चयन सोच-समझकर ही करते हैं। लेकिन कई बार अनेकों से इस मामले में चूक हो जाती हैं।

इस प्रकार की चूक न हो इसी कारण यह आर्टिकल आपको सचेत करने की कोशिश करेगा......।

          पोशाक कई भागों में विभाजन किया जाता हैं। जिनमें सांगठनिक पोषक (अनिवार्य पोशाक)भी एक प्रमुख प्रकार है। इस प्रकार के परिधान का उपयोग विशेष-विशेष क्षेत्रों के लिए स्थापित किया गया है। 

सांगठनिक पोषक, संगठन के महत्व की रक्षा करता हैं। उसका परिचय देता है। जैसे कि विद्यार्थी, वकील, खिलाड़ी, सैनिक, तैराकी, संत, डाक्टर, नर्स आदि। इस तरह के ऐसे अनेक क्षेत्र है जिसकी अपनी "अनिवार्य पोशाक" होती हैं। वहीं पोषक उनकी पहचान हैं। इसे हम "ड्रेस कोड" कह सकते है। जो अपने-अपने क्षेत्र को  दर्शाता है।

            पुरुष या महिला सबों के लिए "ड्रेस कोड" होते हैं। ड्रेस कोड से व्यक्ति के विशेष क्षेत्र की पहचान हो जाती है। इसलिए विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग "ड्रेस कोड" बनाए गए हैं।

सांगठनिक पोषक का हम पूरी तरह से पालन करते हैं परन्तु बिना अनिवार्य पोशाक क्षेत्रों में कई बार हमसे जाने-अनजाने में चूक हो जाती हैं। जहां हम जगह के गरिमा को ध्यान न दे अशोभनीय परिधान में चले जाते हैं। जो अनुचित है।

सांगठनिक पोषक के अलावा स्थान के अनुरूप पोशाक पहनना भी उचित माना जाता हैं। अगर आप किसी शादी पार्टी में जा रहे हैं तो वहां वैसी पोशाक होनी चाहिए, किसी गमी (श्राद्ध) में अलग, पिकनिक, ऑफिस, अस्पताल, सफर इत्यादि जगहों पर अलग-अलग पोशाक पहनी जाती हैं। और पहननी भी चाहिए। 

ऐसे ही जब हम किसी पूजा-पाठ या मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो वहां पर भी हमें अपनी पोशाक का विशेष ध्यान रखना चाहिए। हर पुरुष-महिला को वहां के अनुरूप वस्त्र धारण करना चाहिए। लेकिन देखा गया है अनेक लोग इस बात का ध्यान नहीं रखते। कई महिला तथा पुरुषों इसका पालन  नहीं करते। न ही अपने किशोर बच्चों के पहनावे का ध्यान रखते हैं।

हम कहां जा रहे हैं इस बात का ध्यान रखना जरूरी है।

इंसान के मन पर पोशाक का बहुत असर पड़ता है। इसलिए पोशाक पहनने वाले व उसे देखने वाले दोनों के मन में इसका अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ सकता हैं। अनेक लोग इस बात को मानने को तैयार नहीं होते, उल्टे तर्क देते हैं। लेकिन समय और स्थान का ध्यान रखते हुए वस्त्रों का चयन करने चाहिए। वहां के लिए भी और अपने लिए भी..। 

       दोस्तो, महिला-पुरषों को "अनिवार्य परिधान" 

(ड्रेस कोड) पहनने चाहिए ताकि उस जगह की गरिमा भंग न हो। हमें हमेशा इसका ख्याल रखना चाहिए।

        सूत्रों ने जानकारी मिली है अनेक लोग मंदिर में अशोभनीय परिधान में पहुंच जाते हैं।

इस लेख में आगे हम ईश्वर के घर की बात करेंगे..... वहां हमें किस परिधान में जाना चाहिए.....? 

वैसे तो सभी जानते हैं कि भगवान का घर अर्थात मंदिर में प्रवेश करने के क्या नियम हैं। वहां की मर्यादा क्या है, वगैरह....... वगैरह.........।

लेकिन खबरों के अनुसार जानकारी मिलती है कुछ लोग दूसरों के धार्मिक स्थल को मनोरंजन स्थल समझ बैठते हैं और वहां की गरिमा तथा मर्यादा का उल्लघंन करते हैं। जो उनके परिधान (पोशाक) से स्पष्ट तौर पर समझ आता हैं। वे दूसरों के धार्मिक स्थल को महत्व नहीं देते।

हमारे देश में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। अतः सबका अपना-अपना अलग ईश्वरीय (God)  स्थल यानी मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वार हैं। इन्हीं स्थलों में प्रवेश के अलग-अलग नियम बने हुए हैं...... कहीं पैर धोकर, सिर ढककर, मौन रहकर, खाली हाथ इत्यादि नियमों का पालन कर भक्तों व श्रद्धालुओं को दर्शन करने पड़ते हैं। लेकिन परिधान का कोई विशेष कोड नहीं है ये हम पर ही निर्भर करता हैं वहां की मर्यादा का पालन हम स्वयं करें।                   

       विभिन्न धार्मिक स्थलों पर एक-दूसरे धर्म के लोग भी जाते हैं। अतः सबों को दूसरे की धार्मिक भावनाओं की कदर करनी चाहिए। पर अफसोस ऐसा न करते हुए कुछ लोग वहां पहुंच जाते हैं। यही कारण है कि उड़ीसा के पुरी मंदिर ने "ड्रेस कोड" का फैसला लिया है।

साथियों, जैसा कि हम जानते हैं हिंदू के चार धामों में पुरी का "जगन्नाथ मंदिर" भी एक धाम है। 

ओडिशा राज्य के पुरी में "जगन्नाथ मंदिर' है। यहां कृष्ण और बलराम अपनी बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं। इसे भाई-बहनों का मंदिर भी कहा जा सकता है।        

        बारहबीं सदी का यह मंदिर काफी विख्यात है। यहां की पवित्र रथ यात्रा बड़ी धूमधाम से मनाई जाती हैं।

"वैदिक काल" के अनुसार सृष्टि के "पालनहार" "भगवान विष्णु" चारों धाम में घुमते हुए कही स्नान करते हैं, कहीं ध्यान करते हैं, कहीं भोजन करते है तो कहीं विश्राम करते हैं। जगन्नाथ मंदिर में भगवान विष्णु भोजन ग्रहण करते हैं। यह उनका भोजन गृह है। अतः यहां पवित्रता बनाए रखना हम सभी का कर्तव्य हैं। परंतु दुर्भाग्यवश यहां आने वाले कई लोग इसकी परवाह नहीं करते। ऐसा मंदिर प्रशासन का कहना है। इसलिए उन्होंने मंदिर की पवित्रता और गरिमा को बचाए रखने के लिए "स्वीकृत परिधान"  का सोचा है।

पुरी के विख्यात जगन्नाथ मंदिर प्रशासन की ओर से कहा गया है कि मंदिर मनोरंजन का स्थान नहीं है। यहां भगवान का बास हैं। मंदिर में भगवान रहते हैं अतः ड्रेस कोड अति आवश्यकता हैं।

देखा गया हैं कई लोग दूसरों की धार्मिक भावनाओं का उल्लघंन कर अपनी पोशाक का ध्यान नहीं रखते। मंदिर में हाफ पैंट, फटी जींस, बीना आस्तीन के पोशाक, स्कर्ट, तंग कपड़े पहन प्रवेश करते हैं। जो काफी अशोभनीय हैं। मंदिर प्रशासन का यह भी कहना है- यह कोई घुमाने की जगह नहीं है, समुद्र तट या बाग-बगीचा नहीं है। भगवान के घर शोभनीय तथा साफ वस्त्र धारण कर ही प्रवेश किया जाना चाहिए। 

इस मंदिर प्रशासन अधिकारियों ने अशोभनीय परिधानों को देखते हुए सिद्धांत लिए है- "1st जनवरी 2024" से श्रद्धालुओं के लिए "ड्रेस कोड" लागू हो जाएगा।

श्रद्धालुओं के ड्रेस कोड की जिम्मेदारी मंदिर के सुरक्षा कर्मियों और सेवकों को दी गई हैं। मंदिर प्रशासन की "नीति उपसमिति" ने यह अहम फैसला लिया है ताकि यहां की गरिमा तथा पवित्रता बनी रहे.....।


(प्रश्न:- क्या मंदिरों में "प्रवेश परिधान" जरूरी हैं?)

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