अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस------

🙏 दोस्तों,

                

 खबरों की जानकारी के अनुसार आपको याद दिलाना चाहते है कल यानी 19 नवंबर (2023) को "पुरुष दिवस" था। इसी विषय पर इस लेख में चर्चा करेंगे। लेकिन एक सवाल लेख के अंत में आपके लिए.... जिसका जवाब हमारे Comment Box पर भेज सकते हैं......।

जैसा कि 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है वैसे ही "19 नवम्बर" को "अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस" भी मनाया जाता है। कुछ विशेष कारणों की वजह से विश्व के करीब 60 से अधिक देशों में यह दिवस मनाया जाता है।

खबरों के अनुसार पुरुष दिवस के इतिहास की ओर झांकेंगे तो हम पाएंगे इसकी पहल 1960 में शुरू हुई थी। लेकिन 1999 से इस दिवस को सही मांइने में मान्यता मिली और मनाया जाने लगा। 

सूत्रों की जानकारी के अनुसार द्विपों से पूरी तरह घिरा देश "त्रिनिदाद एंड टोबैगो" से पुरुष दिवस की  हुई है। दरअसल, इस देश के "वेस्ट इंडीज विश्वविद्यालय" के डॉ टीलुकसिंघ नाम के एक प्रोफ़ेसर ने पुरुषों के सुविधा-असुविधाओं को मद्देनजर रखते हुए इस दिवस की शुरुआत की....।

      साथियों, विश्व में कुछ पुरुष अविवाहित हैं, कुछ वेऔलाद हैं, कुछ हिंसा के शिकार हैं, कुछ पीड़ित हैं, तो कुछ वेरोजगार है, वेघर हैं। वहीं कुछ पुरुष ऐसे भी हैं जो अपने दायित्व रखने वाले गुणी हैं। उन सबों के लिए एक खास दिन होना चाहिए.....सो पुरुष दिवस सोचा गया।

उन्होंने (प्रोफेसर) पुरुष दिवस को यादगार बनाने के लिए साल के 19 नवंम्बर को चुना। इस दिन को जश्न के साथ मनाया गया। कारण बताया जाता है  इस दिन अर्थात 19 नवंम्बर को उनके (प्रोफेसर) पिता की जयंती थी। इसलिए उनके पहल से यह दिन अंतरराष्ट्रीय (1999) पुरुष दिवस के रूप में पुरूषों के लिए मनाया जाने लगा। लेकिन भारत में पुरुष दिवस की शुरुआत 2007 में हुई.....।

2007 से भारत में पुरुष दिवस मनाया जाने लगा।

हम अक्सर महिला और बच्चों को ज्यादा महत्व देते हैं। इसके अलावा बुजुर्गों को भी अहमियत देते हैं। उनकी परेशानी, स्वास्थ्य, देखरेख, सुविधा-असुविधा आदि को पहले रखते आए हैं। मगर पुरुषों या लड़कों की ओर उतना ध्यान नहीं देते। जबकि भेदभाव न कर ऐसे मामलों में उन्हें समान अधिकार देना चाहिए।

      परिवार व समाज में पुरुषों का अहम रोल होता है। पुरुषों का योगदान चौतरफा, सर्वोपरि हैं। परिवार व समाज में वे चट्टानों की तरह खड़े रहते हैं। हर संभव, हर परेशानियों से मुक्त करवाते हैं। सरी परेशानी, जिम्मेदारी अपने सर ले लेते हैं। 

पिता, भाई, पति, बेटा के अलावा मामा, चाचा, दोस्त भी महिलाओं के प्रति वफादार होते हैं। समाज, परिवार, राष्ट्र के प्रति भी बखुबी अपने कर्तव्यों का पालन करते रहते हैं। जीवन की परवाह न कर सामाजिक, पारिवारिक दायित्व को पूरी तरह से निभाने की कोशिश करते हैं। ऐसे में उनके लिए एक दिवस (पुरुष दिवस) मनाना हमारा भी फर्ज बनता हैं। उनके सम्मान को  इस दिन के जरिए संबोधन करना हमारा कर्तव्य है.....।

पुरुष दिवस के जरिए हम उन्हें सम्मानित कर सकते हैं, उनके योगदान के लिए उन्हें और प्रेरित कर सकते हैं। इस दिवस के साथ उन्हें महसूस करवा सकते हैं, हमें हर क्षण हमारे जीवन में आपकी जरूरत है......। चाहे वे किसी भी रूप में हमसे जुड़ें हो.....।

हमारे देश में अनेक ऐसे परिवार हैं जो लड़कों को ज्यादा तवज्जो देते हैं। लाड़-प्यार देते हैं। लेकिन एक समय सीमा तक......। 

पुरुष दिवस मनाने के कुछ विशेष कारण माने गए हैं- 

*परिवार, समाज व अन्य स्थानों में पुरुषों के योगदान सराहनीय है। जिसे प्रोत्साहित करने के लिए इस दिवस को मनाया जाने लगा।

*इस दिन के माध्यम से उनके (पुरुषों) भौतिक, बुनियादी तथा मानवीय बोध को और उत्साहित करने के लिए यह दिन मनाना।

*पुरुषों के सामाजिक व पारिवारिक दायित्व के अहसास का स्वागत इस दिन के जरिए करना हैं।

*पुरुषों का रोजगार करना अनिवार्य ही हैं। लेकिन कई पुरुषों को देखा गया है बेरोजगारी की बजह से हीनता के शिकार हो जाते हैं, आत्महत्या की ओर रुख करते हैं या कोशिश करते हैं। यह दिवस उन्हें इस प्रकार के दुर्बलता से रोकने की सीख देता हैं।

*अनेक पुरुष ऐसे हैं जो शोषण, हिंसा, उत्पीड़न के शिकार हैं। उन्हें इससे बचाने की कोशिश है यह पुरुष दिवस.....।

*अपने जीवन में पुरुष की उपस्थिति, उनका जुड़े रहना कितना मायने रखता इस बात का अहसास दिलाता है पुरुष दिवस ....।

*पुरुष दिवस रिश्तों की गांठें मजबूत करने के लिए मनाया जाता है।

खैर, 8 मार्च की महिला दिवस से सब परिचित हैं..... रुचि के साथ मनाया भी जाता है परन्तु अफसोस, पुरुष दिवस से शायद ही सब परिचित हो?.....कम लोग ही पुरुष दिवस जानते व मनाते हैं ....।

दोस्तों, दूसरी बात आज की दुनिया की दशा देख, मिडिया तथा आसपास के अनुभवों से हम "पुरुष समाज" को मुख्य तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं- पहला- भले पुरुष जो परिवार, समाज तथा राष्ट्रीय के लिए योगदान करने वाले, दूसरे- खुद उत्पीड़न के शिकार वाले और तीसरे- ऐसे पुरुष हैं जिनके चलते परिवार, समाज तथा अन्य स्थान दूषित हो रहें हैं। क्षतिग्रस्त हो जाता है। ऐसे लोगों ने पूरे पुरुष वर्ग को अपमानित तथा कलंकित कर रखा हैं।

     

 खबरों की जानकारी के अनुसार समाज तथा देश के समस्त पुरुषों के लिए यह दिवस काफी महत्वपूर्ण है। इसलिए हर साल ससम्मान तथा जश्न के साथ हमें "पुरुष दिवस" मनाना चाहिए। महिला सशक्तीकरण है पर पुरुष के बिना सब व्यर्थ है। वे ही हमारी शक्ति है, आधार है, सुरक्षा कवच है......।


(प्रश्न:- क्या पीड़ित पुरषों के लिए भी कानून बनना चाहिए?)

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