धुआं-धुआं----

 🙏 दोस्तों,

                       

भारतीय इतिहास के मुताबिक सन् 1929, जब भारत अंग्रेज़ों का गुलाम था तब की एक घटना 2023 में याद आ रही है। वहीं सन् 2001 आजाद भारत की भी एक घटना 2023 में याद आ रही है। दोनों घटनाएं देश के संसद भवन से जुड़ी हुई हैं। 1929 की घटना शायद ही आज लोगों को याद होगी पर 2001 की घटना करीब सभी देशवासियों को याद हैं.....।

रिपोर्ट के अनुसार 13 दिसंबर 2001 आजाद भारत के सबसे महत्वपूर्ण स्थान संसद भवन (पुरानी) में पड़ोसी मुल्क के द्वारा हमला हुआ था। जिससे पूरा देश कांप उठा था। उस अचानक घिनौने हमले से हमारे देश के संसद भवन के अनेक सुरक्षा कर्मियों की जान चली गई थी। फिर से वही 13 दिसंबर (2023) का दिन...., जब नई संसद में देश के तमाम सांसद 2001 में हुए हमले के दौरान शहिदों को श्रद्धांजलि दे, आगे की कार्यवाही शुरू कर ही रहे थे कि अचानक हमला हो गया।

खबरों के अनुसार हमला किसी पड़ोसी मुल्क के द्वारा नहीं बल्कि स्वदेशी कुछ उच्च शिक्षित बेरोजगारों द्वारा किया गया। शायद बात हताशे की रही होगी।

           कड़ी सुरक्षा के वावजूद संसद के अंदर-बाहर हमला होना अपने आप में डरावना और आश्चर्यजनक बात है। क्योंकि सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 2001 के हमले से सीख लेते हुए नई महंगी संसद की ज्यादा सुरक्षा व्यवस्था करवाईं गईं हैं। 

जैसा कि हम जानते हैं देश के किसी भी भवन में, खास कर केन्द्रीय भवनों में प्रवेश करने के लिए "प्रवेश पास" की आवश्यकता होती है। फिर सुरक्षा कर्मियों द्वारा दो-तीन जगह (स्टेप) चैकिंग भी की जाती हैं। प्रवेश कारण पूछते हुए फिर व्यक्ति को अंदर जाने की अनुमति मिलती है। ऐसे में धुआं कैंडल के साथ वे उच्च शिक्षित बेरोजगार दो युवा नये संसद के अंदर कैसे पहुंचे.....? 

बात संसद की करें तो अन्य भवनों से ज्यादा टाइट व्यवस्था होती हैं। फिर नये संसद में ऐसी घटना कैसे घटी? हालांकि कोई नुक्सान नहीं हुआ, किसी की भी जान नहीं गई। लेकिन देश व देशवासियों के सामने यह एक बड़ा सवाल है...सुरक्षा का....। क्यों इस तरह का अटैक हुआ? 

साधारण नागरिकों का यह भी कहना हैं अगर संसद तक पहुंचने वाले खास लोक सुरक्षित नहीं हैं तो देश के आम लोगों का क्या?

अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद की यह पहली घटना है जब देश के लोगों ने ही देश के संसद को हिला कर रख दिया। धुआं-धुआं---- कर दिया। संसद को अंदर-बाहर रंगीन (लाल, पीले) धुएं से भर गया। इससे पहले करीब 75 साल के आजाद भारत में कभी भी ऐसी घटना नहीं घटी....।

सन् 1929 के 8 अप्रैल को दिल्ली संसद असेम्बली में भगतसिंह और उनके एक मित्र द्वारा वहां कूद कर बंम फोड़ने की घटना घटित हुई थी। लेकिन तब हमारा देश आजाद नहीं था। हमारा देश व हम हिन्दुस्तानी अंग्रजों के गुलाम थे। उस समय हमारी बात सुनी नहीं जाती थी। हमें अनसुना कर दिया जाता था। हमारी कोई कद्र नहीं थी। यही कारण था कि शहिद भगत सिंह ने इस तरह का क़दम उठाया था। 

वैसे उनका कहना था- हम किसी प्रकार का, किसी को कोई नुक्सान पहुंचाना नहीं चाहते हैं। बम शक्तिशाली नहीं था। हम सिर्फ अपनी ओर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं .... अपनी बात उनके (अंग्रेजों) सामने रखना और मनाना चाहते हैं। हम चाहते हैं भारतीयों की भी सूनी जाए। इस कारण हैं कि हमने ये रास्ता अपनाया.....।

दोस्तों, 13 दिसंबर (2023) के हमलावरों के ताजा कथन व नारों से भी यही बात समझ आती हैं। जैसा कि मिडिया रिपोर्ट बतला रही हैं।

नई संसद के अंदर दो युवक और बाहर एक महिला व एक युवक द्वारा घटित घटना को अंजाम देने की घटना शहिद भगत सिंह की घटना (1929) से प्रेरित होकर किया गया है या नहीं..... बात अभी सामने नहीं आई है, स्पष्ट नहीं हुआ हैं। फिर भी मामला शायद बहुत रिक्सी हो गया। उन्होंने नये संसद को भीतर और बाहर से रंगीन धुएं से भर दिया।

           सोशल मीडिया के माध्यम पता चल रहा हैं 13 दिसम्बर को नई संसद में रंगीन (लाल/पीला) धुएं हमले की घटना से मुख्य पांच तरह की बात उभर कर सामने आ रही हैं.... पहली बात *हमलाबरों की ओर से.... दूसरी बात *देश के आम नागरिकों की ओर से.... तीसरी बात *सत्ता पक्ष की ओर से....*चौथी बात विपक्ष की ओर से.... तथा *पांचवीं बात हमलाबरों के परिवार की ओर से आ रही हैं।

हमलावरों की ओर से आ रही बातें या नारे भी कह सकते है, जो इस प्रकार हैं -

भारत माता की जय, बंदे मातरम, जय भीम, इंकलाब जिंदाबाद, संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ, तानाशाह नहीं चलेगी, अधिकारों को खत्म करने नहीं देंगे, बेरोजगारी दूर करो, मणिपुर पर नाइंसाफी नहीं चलेगी आदि।

√देश के आम नागरिकों की ओर से कुछ बातें सामने आ रही हैं, जो इस प्रकार की हैं -

सुरक्षा में बहुत बड़ी कमी, जब देश के संसद असुरक्षित हैं तो हमारा क्या?,अगर हमलावर किसी विशेष जातियां धर्म से ताल्लुक रखता तो क्या होता? एक ही तारीख में एक ही सत्ता के समय कालीन ऐसी घटना घटी। मामला गंभीर है। घटना के आड़ में कहीं कुछ अनहोनी का इशारा तो नहीं.....?

√सत्ता पक्ष की ओर से कही जा रही कुछ बातें इस प्रकार से हैं -

हमारी सरकार का कहना है सामान्य व छोटी-मोटी बात को बड़े रुप में फैलाना अच्छी बात नहीं।, हमें हर मामले पर राजनीति नहीं करनी चाहिए।, लोकसभा में तुरंत घुसपैठियों को पकड़ लिया गया है।, संसदीय सुरक्षा सेवा के जांच के आदेश दे दिए गये हैं।, जिन सांसद द्वारा सदन के भीतर जाने का "पास" दिया गया उसमें उनका कोई दोष नहीं है। कारण क्षेत्रिय लोगों का "पास" प्रायः समय सांसद बनवा देते हैं। और उसके लिए सबों के मनोभाव को समझना संभव नहीं होता....। 

√विपक्ष की ओर से कही गई बातें कुछ इस प्रकार से हैं-  

यह कोई मामूली चूक नहीं है। अगर स्मोक कैंडल में कोई घातक रसायन होता तो?, क्या "पास" देने वाले को बहिष्कृत किया जाएगा?, हाई अलर्ट के बावजूद इस तरह की घटना डरावनी है।, यह हमला सरकार की नाकामी को दर्शाता है.......।

√हमलावरों के परिवार की ओर से कही बातें कुछ इस प्रकार से हैं-

हताशे के कारण ऐसा कदम उठाया।, बेटा अच्छा और सच्चा है।, युवक उच्च शिक्षित हैं। वे समाज के लिए अच्छा करना चाहतें हैं तथा समाज के लिए बलिदान भी देना चाहते हैं। इमानदार हैं...। इत्यादि। 

खैर दोस्तों, सुरक्षा चूक में अनेक बातें कही जाएगी। संसद घटना पर पकड़े गए चार-पांच जनों को कारवाई कर सजा भी दी जाएगी। लेकिन असली सजा के जो हकदार हैं क्या उन्हें सज़ा मिलेगी?  गोल-गोल बातों के जरिए, दूसरों कर इलाज लगाकर, दूसरी ओर ध्यान भटकाकर वे निर्दोष साबित हो जाएंगे। और फिर से......।

                       _____________