मिमिक्री.....

🙏 दोस्तों,

                      

 आज के लेख में हम मनुष्य के स्वभाव से जुड़े एक सहज प्रकरण की बात करेंगे। यह स्वभाव हमारे जीवन की गहराई से जुड़ा हुआ है।

पिछले दो-चार दिनों से इस सहज प्रकरण पर पूरा देश उलझा हुआ है। यानी मिमिक्री अर्थात नक़ल प्रकरण..... ।

अगर जरा ध्यान देंगे तो पाएंगे, एक छोटे बच्चे को लेटे अवस्था में ही सही पर जब हम उसे प्यार से दुलारते हैं तब कहीं न कहीं उसके और हमारे भाव एक दूसरे से मेल खाने लगते हैं। ये मिमिक्री का ही प्रभाव है। बच्चा चाहे किसी का भी क्यों न हो। 

हम उसकी आवाज की नकल करते हैं तो वहीं वो हमरे भावों को दर्शाने की कोशिश करता है। नकल करने की कोशिश करता है। इस प्रकार की नकल से खुशी मिलती हैं।

अक्सर यह भी देखा गया है हम घर, स्कूल, कार्य क्षेत्र, समारोह जैसी जगहों पर किसी-किसी की नकल उतारते हैं। आवाज़ की या आवभाव की.....। इस तरह की मिमिक्री से मनोरंजन होता हैं।

कई लोग हैं जो मिमिक्री सीखते हैं या अपनी प्रचेस्टा से इस आर्ट का इस्तेमाल पेशे के तौर पर करते हैं।  लोगों को आनंद देने के साथ ही इससे कमाई भी करते हैं। यह प्रकरण कईयों के कमाईं का जरिया भी बना हुआ हैं।

ग्रीक से "मिमिक्री" शब्द आया है। हिन्दी में हम इसे नकल, अनुहरण या अनुकरण भी कह सकते हैं।

जान लेते है असल में मिमिक्री क्या है?

         कहा जाता है यह एक रोमांचक विषय है। इसे हम आर्ट कह सकते है। यह एक प्रकार की कला है। इसमें एक व्यक्ति, कलाकार के रूप में अपने द्वारा दूसरे के आव-भाव या आवाज को दर्शाता है। सीधे शब्दों में कहा जा सकता है मिमिक्री दूसरे की नकल उतारने को कहते है।

जानेंगे यह प्रकरण कब शुरू हुआ?

          जानकारी के अनुसार मिमिक्री की खोज "हेनरी वाल्टर बेस्ट" नामक व्यक्ति ने 19वीं सदी में की थी। सन् 1862 के आसपास बताया जाता है। मिमिक्री विभिन्न प्रकार के होते है।

इसका क्या उपयोग है?

          इस कला का उपयोग प्राणी जग के जीवन के लिए किया जाता हैं। मानव की बात करें तो अपने या दूसरों को मनोरंजन (आनंद) देने के लिए या चिढ़ाने के लिए किया जाता हैं।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार हाल के शोध से पता चला है नकल (मिमिक्री) हमें कई तरह से प्रभावित करती हैं। जैसे - सहानुभूति, प्रशंसा, तालमेल, बुराई बगैरें.....।

मिमिक्री का उपयोग हम सभी अपने जीवन में करते रहते हैं। कभी जानबूझ कर तो कभी अंजाने में.....पर अक्सर हम एक-दूसरे की नकल उतारते हैं। क्योंकि यह प्रकरण हमारे जीवन का एक छोटा हिस्सा है। 

इस आर्ट द्वारा मनुष्य को लाभ, हानी, गुस्सा व मनोरंजन मिलते देखा गया हैं.....। 

दोस्तों, यह कला मनुष्य के जीवन से जुड़ा है। लेकिन इस दिनों इसका भरपूर इस्तेमाल राजनीतिक क्षेत्र में किया जा रहा है। इस क्षेत्र के कई लोग ऐसे हैं जो दूसरे दलों के व्यक्ति विशेषों को निशाना बना, इसके माध्यम जनता (पब्लिक) के एक वर्ग को मनोरंजन देना चाहते हैं। साथ ही अपनी रोटी भी सेक लेते हैं। इस कला के  माध्यम मजाक उड़ाया जा रहा हैं।

कभी सत्ता पक्ष की ओर से 'मिमिक्री मनोरंजन खेल' खेला जा रहा है तो कभी विपक्ष की ओर से कला को दर्शाया जा रहा है। आव-भाव तथा आवाज दोनों आजमाएं जा रहें हैं।

मिमिक्री मनोरंजन खेला राजनीतिक दल खेल रही हैं और हम आम जनता इसमें उलझ कर अपना भूत, भविष्य और वर्तमान नष्ट कर रहे हैं। हम कभी मजा ले रहे हैं तो कभी गुस्से में अपनी क्षति कर बैठ रहे हैं।

अतः सोच-समझकर ही इस प्रकरण के मनोरंजन का हिस्सा बने।

     खैर दोस्तों, ऐसा कहा जाता है मिमिक्री करने वाले अधिकतर सामाजिक बनते हैं। ऐसा शोध में कहा गया है। लेकिन इस मामले में समय, काल, पात्र का ध्यान रखना उचित होगा। खास कर सार्वजनिक स्थानों पर ....। 

किसी को इसके जरिए जलील न किया जाए तो मिमिक्री बहुत ही उपयोगी प्रकरण है। पल भर के लिए ही सही, पर जीवन आनंदमय हो जाता है.....।

                      

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