क्रिसमस डे......

 🙏 दोस्तों,

                          

 देश-दुनिया में कई प्रकार के दिवस मनाये जाते हैं। और न जाने कितने तरह के पर्व भी मानाए जाते हैं। इन्हीं सबों के बीच "क्रिसमस डे" को पर्व के रूप में दुनिया के हर जाति-धर्म वाले मनाते हैं। शायद ही कोई ऐसा दिवस या पर्व होगा जिसे पूरी दुनिया मनातीं होगी।

जैसा कि हमें मालूम है "क्रिसमस डे" (दिवस) ईसाई धर्म को मानने वालों का एक पवित्र त्यौहार है। इस धर्म के लोगों का मानना हैं- अपने प्रभु यीशु अर्थात प्रभु के पुत्र का जन्म इस दिन यानी क्रिसमस डे (दिवस) को हुआ था। इस दिन को वे पवित्र पर्व के रूप में अपने भगवान को प्यार के तौर पर मनाते हैं। और यह दिन 25 दिसंबर का होता है।

इस पर्व के साथ सैंट, उनकी पोटली, ट्री और केक का अनोखा संबंध हैं....आज के इस लेख में हम इन्हीं अनोखे संबंधों के बारे में कुछ जानेंगे।

आज 2023 का 25 दिसंबर है। हर साल के 25 दिसंबर के दिन को हम  "क्रिसमस डे"या "बड़ा दिन" के नाम से जानते आए हैं।

दोस्तों, पहले जान लेते हैं "यीशु मसीह" के जन्मदिन को "क्रिसमस डे" या "बड़ा दिन" क्यों कहा जाता है....? 

✓असल में ईश्वर के पुत्र को क्रिसमस ईसा मसीह के नाम से जाना जाता है। इसलिए ईसाई समुदाय के लोग इस दिन को क्रिसमस डे कहते हैं तथा इस दिन यानी 25 दिसंबर के दिन से ही साल का दिन धीरे-धीरे बड़ा होने लगता है। इसी कारण 25 दिसंबर के त्योहार को बड़ा दिन के नाम से भी हम जानते हैं।

          दोस्तों, बात करते हैं ईसाई धर्म के इस पर्व से जुड़े कुछ संबंधों के बारे में, जैसा कि पहले कहा गया है.....।

*सैंट-: 

       लाल-सफेद पोशाक में, टोपी पहनें, सफेद लम्बी दाढ़ी-मूंछों  वाला व्यक्ति "सैंट" के नाम से जाना जाता है। इन्हें सैंट, क्रिसमस फादर, सांटा क्लॉज  आदि नामों से भी जाना जाता हैं।

ईसाई धर्म के पौराणिक कथाओं के अनुसार ये एक व्यापारी थे। बचपन में इनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था। ये प्रभु यीशु को ही अपना सब कुछ मानते थे। सैंट बहुत दयालु और दानी थे। इन्हें बच्चों से बहुत लगाव था। इसलिए ये अपने प्रभु के जन्मदिन दिवस पर बच्चों को उपहार स्वरूप कई चीजें देते थे। जिसका पालन आज भी ईसाई धर्म में किया जाता हैं। और तो और सिर्फ यही धर्म के नहीं बल्कि दूसरे धर्मों के लोग भी इस दिन अपने हिसाब से एक-दूसरे को उपहार देते हैं। 

यही कारण है कि 25 दिसंबर के पर्व के दौरान हमें "सांटा क्लॉज' दिखाई देते हैं।

*सैंट निकोलस की पोटली-: 

       ऐसा कहा जाता है सांटा क्लॉज क्रिसमस डे (दिवस) के दिन रात के समय अपनी वेशभूषा बदलकर, पीठ पर एक बड़ा सी पोटली ले निकलते थे। और घर-घर जाकर जरुरतमंद बच्चों को पोटली से निकाल कर विभिन्न तरह के उपहार (Gift) देते थे। बच्चों को वे खिलौने, मिठाईयां, खाने-पीने की अलग-अलग चीजें दिया करते थे। जो चीजें बच्चे खरीद नहीं सकते थे...। खरीदने की क्षमता नहीं होती थी।

बच्चों को उनकी वेशभूषा और उपहार बहुत पसंद आते थे और वे उन्हें देख काफी खुश हो जाते। बच्चों को खुश दिख सैंट निकोलस खुद भी बहुत खुश होते थे। 

सैंट के उपहार देने की प्रथा धीरे-धीरे प्रचलित हो गई। और करीब सभी लोग इस प्रथा से जुड़ गए। लोग पैकेट, बैग या थैलों में उपहार ले बच्चों को देते हैं। आजकल इस दिन लोग एक-दूसरे को भी तरह-तरह के उपहार देते हैं।

दोस्तों, आप सोच रहे होंगे इस लेख में बताया गया है सांटा क्लॉज, क्रिसमस डे वाले दिन रात्रि को ही बच्चों को उपहार दिया करते थे। लेकिन क्यों ...? रात को ही गिफ्ट क्यों बांटते थे ...? असल में सांटा क्लॉज नहीं चाहते थे कि कोई उन्हें पहचान सके। वे नहीं चाहते थे उपहार देने वाले का पता किसी को भी लगे। इसी कारण वे अपनी पोशाक बदल रात को उपहार बांटते थे।

करीब हर धर्म में ही कहा जाता है दान देने वाली बात दाहिने हाथ की बांए हाथ को पता नहीं चलना चाहिए। किसी को बताकर कभी दान देना नहीं चाहिए वरना उसका पुण्य फलता नहीं है। शायद उनमें भी यही मान्यता होगी....। इसलिए सैंट ऐसा करते थे।

*क्रिसमस ट्री-:

          "क्रिसमस डे" के उत्सव में क्रिसमस ट्री का काफी महत्व माना जाता है। ईसाई धर्म के लोगों में क्रिसमस ट्री का बहुत महत्व है। 

ईसाई धर्म के पवित्र किताब बाइवल के अनुसार ऐसी मान्यता है कि यीशु की माता मरियम और पिता युसूफ कोआकाशवाणी हुईं थीं उनके यहां प्रभु के पुत्र का जन्म होगा। और वैसा ही हुआ। 

कई ईसा पूर्व फिलीस्तीन के बेथलहम नामक शहर में 25 दिसंबर के दिन उनके घर यीशु मसीह का जन्म हुआ था। कहा जाता है तब यीशु मसीह के माता-पिता को पुत्र जन्म की बधाई व शुभकामनाएं देने हेतु समस्त देवी-देवता वहां प्रकट हुए थे और इस खुशी के मौके पर उन्होंने स्वयं अपने हाथों से सदाबहार के एक वृक्ष को सितारों से सजाया भी था। इसी को क्रिसमस ट्री के नाम से जाना जाने लगा। 

यही कारण है कि ईसाई धर्म के लोगों में इसका (ट्री ) काफी महत्व माना जाता हैं।

 25 दिसंबर के पर्व पर आज भी लोग अपनी पसंद अनुसार क्रिसमस ट्री की सजावट करते हैं। इस युग में ये कृत्रिम तरीके से होने लगा है लेकिन क्रिसमस ट्री लगाने व उसे सजानें की प्रथा आज भी क़ायम है। समय के अनुसार इसमें बदलाव आए हैं पर इसका महत्व घटा नहीं है। 

आजकल तो बाजारों में एक से एक सुंदर-सुंदर ट्री पाएं जाने लगें हैं। कोई इसे अपने हाथों से सजाता है तो को सजावट वाली खरीदता है। परंतु इस अवसर पर ट्री जरुर लगाया जाता है।

*केक-:

        यह एक प्रकार का मीठा, स्वादभरा और पेट भरने वाला खाद्य व्यंजन है। उस युग में केक का मतलब रोटी पर शहद लगाकर एक दुर्लभ मिठाई के तौर पर बनता था। जिसे बच्चें-बडे खुशी-खुशी स्वीकारते थे।

उस युग में खुशियों को बांटने की यह एक महत्वपूर्ण परम्परा थी। अतः यीशु मसीह के जन्मदिन की खुशी में इस प्रकार का मीठा व्यंजन बांटना शुरू हुआ। धीरे धीरे समय के साथ इस व्यंजन को और अच्छे से पकाने तथा बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई।

दोस्तों, मीठा एक ऐसा स्वाद है जो मनुष्य के जीवन को प्रफुल्लित करता है। मिठे के साथ खुशी व जश्न मनाना दुनिया के हर जाति-धर्म में अहम परम्परा माना जाता है। मिठे के साथ खुशी का अदभुत मेल है।

यही वजह है 25 दिसंबर क्रिसमस डे (दिवस) को केक खाने का विशेष रिवाज है।

इसके अलावा आज बच्चों के जन्मदिन पर भी मोमबत्ती और गुब्बारों के साथ केक काट कर खुशी मनाई जाती है।

खैर, आज का दिन पूरी दुनिया में हर्लोउल्लास के साथ बच्चे-बडे-बुजुर्गु , नर-नारी सभी मनाते हैं। वैसे तो यह ईसाई धर्म का त्योहार है पर दुनिया के हर जाति-धर्म के लोग इसे मनाते हैं। स्कूल, कार्य क्षेत्रों में अवकाश घोषित किया जाता हैं। जाड़े वाले दिन, छुट्टी के साथ लोग खुशी मनाते हैं। हालांकि, ईसाई धर्म के लोग इस दिन प्रभु से प्रार्थना करते हुए अपने पर्व को मनाते हैं।

इस लेख के जरिए हमने क्रिसमस दिवस के भिन्न-भिन्न विषयों को जाना। लेकिन एक बात समझ नहीं आती जब हम दूसरों के पर्वों को मनाते या उसमें शामिल होते हैं, फिर आपस में कैसा भेदभाव...?                               

 यहां मणिपुर की याद दिलाना चाहूगी.....इस साल वहां के दंगे और महिलाओं को शर्मशार करने वाली घटना भूलाए नहीं भूल पा रही। खबरों के अनुसार वहां दो समुदायों के बीच की जघन्य घटना की शिकार दो महिलाएं हुई। शायद और भी महिलाएं शिकार हुई होगी... परंतु हमारे समक्ष दो महिलाएं जघन्य घटना की शिकार हुई,  बताया जाता हैं वे ईसाई धर्म से संबंध रखतीं थीं। 

ताज्जुब की बात है आज 25 दिसंबर का क्रिसमस दिवस हम मनाएंगे। हो सकता है वहां भी मनाया जाए ...... अगर दूसरों के त्योहार के अवसर पर हम सभी खुशी मनाते हैं, फिर दूसरों के साथ अमानवीय व्यवहार या अत्याचार क्यों करते हैं ....? समझ नहीं आता....? खैर ...,

             (हैप्पी क्रिसमस डे......2023.)

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