मकरसंक्रांति....

🙏 दोस्तों,

                     हिन्दू धर्म के अनुसार- "सारे तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार"। यह कहावत तो हम सभी ने सुनी हैं। लेकिन यह सिर्फ एक कहावत ही नहीं है। इसके पिछे छुपी एक सत्य और एक पौराणिक कहानी भी है। जिसके बारे में हम आगे जानते है...।

    पहले जमाने में गंगासागर तीर्थ यात्रा बहुत कठिन यात्रा होती थी। यातायात की सुविधा नहीं के बराबर थी। जल व स्थल मार्ग काफी  मुश्किल भरे होते थे। देश के विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालुओं का वहां पहुंच पाना मुश्किल होता था। सिर्फ यात्रा ही कठिन नहीं थी बल्कि पहुंचने में अनेक दिन लग जाते थे। एक बार यह यात्रा कर लेना बहुत ही बड़ी बात हुआ करती थी। अतः इस कहावत का यही सत्यापन है।

दूसरे गंगासागर तीर्थ यात्रा से जुड़ी पौराणिक तत्थों को अब जानेंगे। जो इस प्रकार हैं...।

यह यात्रा पूण्य स्नान से संबंध रखता है। मकरसंक्रांति के दिन गंगासागर में डूबकी लगा स्नान करने का महत्व माना जाता है। क्योंकि इस दिन पवित्र गंगा नदी की धारा सागर में आ मिली थी।

कहा जाता है, कई तीर्थो के अनेक बार यात्रा करने से जो पुण्य मिलता है, वो सारे पुण्य एक बार मकरसंक्रांति के दिन यहां स्नान करने से प्राप्त होते हैं।

पश्चिम बंगाल राज्य के दक्षिण प्रांत में पवित्र गंगा यहां सागर से मिली है। यह स्थान सागर और गंगा नदी का मिलन स्थल है इसलिए इसे गंगासागर (गंगा+सागर) कहा जाता है।

      यहां ओंकारनाथ का बहुत ही पावन मंदिर है। इसके अलावा कपिल मुनि जी का मंदिर भी है।  जानकारों के अनुसार पहले यहां कपिल मुनि जी का आश्रम हुआ करता था। बाद में मंदिर बनाया गया। 

गंगासागर में स्नान कर कपिल मुनि मंदिर में पूजा अर्चना की जाती है। पूजा अर्चना के बाद दान देने का महत्व भी माना जाता है। इसके साथ एक कथा जुड़ी हुई है। जिसका जिक्र हम आगे करेंगे।

मकरसंक्रांति के दिन ही स्नान की मान्यता है, पर क्यों? हमारे मन में ऐसे सवाल पैदा हो ही सकतें हैं। तो आपको बता दें कि पौराणिक कथा अनुसार इस दिन पवित्र गंगा नदी शिव की जटा से निकल यहां सागर में आ मिली थी। इस कारण इसी दिन अर्थात मकरसंक्रांति के दिन ही गंगासागर स्नान का महत्व माना जाता है।        

इसके अलावा दूसरी ओर यह भी माना जाता है इस दिन कपिल मुनि जी का जन्म हुआ था। जो विष्णु के 24 अवतारों में एक थे।

अब तक लेख में हमने जाना- गंगासागर किस राज्य में है, सारे तीरथ बार-बार, गंगासागर एक बार कहावत के मायने, इस स्थल पर कौन-से मंदिर है, मकरसंक्रांति के दिन ही गंगासागर में स्नान क्यों किया जाता है? आदि।

दोस्तों, अब जान लेते है कपिल मुनि जी का गंगासागर से क्या संबंध हैं...? क्यों इस दिन दान करने की प्रथा है....?

आध्यात्मिक कथाओं में प्राचीन काल के अनेक ऋषि-मुनियों के नाम और उनकी कथा हम सुनते आए हैं। उनमें कपिल मुनि जी का नाम भी हमने सुना है। 

बताया जाता है कपिल मुनि, भगवान विष्णु के अवतार थे। दुष्टों का दमन और मोक्ष दिलवाने के लिए भगवान को अवगत के रूप में पृथ्वी पर आना पड़ा था। वे कई रुपों में आए थे।

कथा- जानकारों के अनुसार कपिल मुनि का आश्रम सागर किनारे था। उस समय के जो राजा (सागर नामक) थे उनके "अश्वमेध यज्ञ" का घोड़ा खो गया था। उसे ढुढ़ते हुए उनके साठ पुत्र कपिल मुनि के आश्रम तक पहुंच गये थे। और वहां उन्हें घोड़ा मिला। 

भगवान के द्वारा किए इस छल के बारे में कपिल मुनि को ज्ञात नहीं था। क्योंकि वे तपस्या कर रहे थे। वे उसी में लीन थे। लेकिन अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा वहां मिलने के तत् पश्चात, 60 पुत्रों ने कपिल मुनि  को बहुत भला-बुरा सुनाया। उन्हें अपमानित किया। ऐसा करने से उनकी तपस्या बाधित हुई।

तपस्या में बैठे कपिल मुनि के तपस्या में विघ्न घटने से वे क्रोधित हो उठे और जैसे ही उन्होंने अपनी आंखें खोली तो सारे पुत्र (60) भस्म हो गए।

राजा को खबर होते ही वे वहां आ पहुंचे और उन्होंने मुनि से क्षमा मांगी। अनेक बार क्षमायाचना मांगने पर कपिल मुनि ने गंगा को वहां लाने के लिए कहा, उसी जल के छीटों से राजा के पुत्रो का पुनः उद्धार किया जा सकता हैं। इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है। ऐसा उन्होंने बताया....।

ऐसे में राजा के वंशज भागीरथी के कठिन तपस्या से  पृथ्वी पर गंगा लाई गई। यह मकरसंक्रांति का ही दिन था। जब पवित्र गंगा यहां इसी दिन लाई गई थी। इसी कारण इस दिन स्नान का महत्व माना जाता है। 

गंगा के इसी दिन पृथ्वी पर आने से राजा के 60 पुत्रों को, गंगा जल के छींटों से जीवनदान मिला था। अतः इस दिन दान देने की प्रथा भी है। राजा के 60 पुत्रों को इसी दिन जीवन दान मिला था इसलिए दान की यह वजह बताई जाती है।

हिन्दू शास्त्रों के मुताबिक मकरसंक्रांति के दिन गंगासागर पुण्य स्नान और दान प्रथा के पिछे ऐसी मान्यता मानी जाती हैं। 

हिन्दू धर्म को मानने वाले इस दिन को पवित्र पर्व के रूप में भी मनाते है।

भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में मकरसंक्रांति के पर्व को विभिन्न तरह से मनाते हैं- अपने क्षेत्रों के अनुसार विभिन्न व्यंजन तैयार कर भगवान का भोग लगाते हैं, अपने हैसियत और श्रद्धा अनुसार दान करते हैं, पूजा-पाठ करते हैं... और जो वाकई भाग्यशाली होते हैं, वे गंगासागर स्नान यात्रा कर कपिल मुनि जी के मंदिर में पूजा अर्चना करने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। 

मकरसंक्रांति जाड़े के समय की यात्रा है। इस दिन बहुत जाड़ा और शीतलहर होती है ऐसे में वहां तक पहुंच तीथी अनुसार स्नान कर यात्रा सुसंपन्न करना आज भी सही मायने में बड़ी बात है। 

दोस्तों, कई यात्री (श्रद्धलू) ऐसे भी हैं जो वहां तक पहुंच कर अस्वस्थ हो जातें हैं, दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं, कई बाधाऐं आ जाती हैं ऐसे में उनकी गंगासागर यात्रा रह जाती है। वहां तक पहुंच कर भी स्नान नहीं कर पाते। बाधा आ जाती है। लेकिन जो भाग्यशाली होते हैं, वे लोग पुण्य (स्नान/दान) कमा कर ही सकुशल वहां से लौटते हैं।

हर साल लाखों लोग मकरसंक्रांति के दिन गंगासागर में स्नान और दान करने को तत्पर रहते हैं...। राज्य का प्रशासन पूरी तरह से यात्रियों का सहयोग करती है। उनकी हर सुविधाओं का ध्यान रखती हैं...।

कुछ दिन पहले की बात है मिडिया रिपोर्ट के अनुसार आकलन में कलकत्ते को भारत का सबसे सुरक्षित शहर बताया गया है। जो बिल्कुल सही है। कुछेक राजनीतिक घटनाओं को छोड़, वाकई यह भारत का सबसे सुरक्षित शहर है। 

यहां प्रशासन के अलावा कई निजी संस्थाएं हैं जो गंगासागर यात्रियों की सेवा में तत्पर रहती हैं। खास कर मकरसंक्रांति के मौके पर... अतः देश के विभिन्न कोनों से आए लोगों को सुरक्षा की चिंता न कर यात्रा पूर्ण करने पर ध्यान देते हुए यहां आना उचित होगा। 

आगे यात्रियों की किस्मत... ईश्वर जैसा चाहते है, वैसा ही होता है।

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