लीप डे.....

  🙏 दोस्तों,

                 आज 1st फरवरी है। नए साल 2024 का दूसरा महीना शुरू हो चला है।

यूं तो फरवरी का महीना 28 दिनों का होता है लेकिन इस साल का यह महीना 29 दिनों का होने वाला है। 

क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों होगा? इसकी वजह क्या है?

दोस्तों, यह लीप ईयर का महीना है...। "लीप ईयर" के फरवरी महीने के 29वें दिन को "लीप डे" कहा जाता है।

चलिए जान लेते हैं- इस विषय को... जो काफी महत्वपूर्ण तथ्य है।

जैसा कि हम सभी जानते हैं एक साल में 365 दिन होते हैं। साल के बारह महीने 30 और 31 दिनों का होता हैं और सिर्फ फरवरी अर्थात साल का दूसरा महीना 28 दिनों का होता है। लेकिन आप नोटिस करने तो पाएंगे हर चौथे साल का फरवरी महीना 28 दिनों के बदले 29 दिनों का होता हैं। बाकी  साल और महिनों के दिन वैसे ही रहते हैं वे बदलते नहीं हैं। 

जिस साल का दूसरा महीना 29 दिनों का होता है उस दिन को "लीप डे"और उस साल को "लीप ईयर" कहा जाता है। 

लीप ईयर को हिन्दी में "अधिवर्ष" कहते है...।

भूगोलीय अवलोकन के अनुसार "लीप ईयर" एक गणित पर आधारित है। आईए इस गणित के इतिहास को समझने की कोशिश करते हैं।

सूत्रों की जानकारी से लीप ईयर का इतिहास बताता है- यह प्रथा ईसा पूर्व से शुरू हुआ। 

दरसल, तत्कालीन ग्रीस के राजा ने रोमन कैलेण्डर में बदलाव लाकर अलग-अलग महीनों व दिनों को अपडेट कर साल में 365 दिन रखा। ताकि किसी के, किसी भी पर्व पर असर न पड़े। 

यह कैलेंडर "ग्रेगोरीयन कैलेंडर' के नाम से जाना जाने लगा। जिसका उपयोग हम आज तक कर रहे हैं।

इसी कैलेंडर के अनुसार लीप ईयर में साल का एक दिन बढ़ (365/366) जाता है.....।

जानकारों के अनुसार पहला लीप वर्ष 45 ईसा पूर्व से शुरू हुआ पर आधुनिक काल का लीप ईयर 1752 में शुरू हुआ। अंत का लीप ईयर 2020 को हुआ था। अब चार साल बाद 2024 का यह साल लीप वर्ष पड़ा है। इसके बाद का अगला लीप वर्ष 2028 में होगा।

लीप ईयर का हिसाब (गणना) कैसे किया जाता है...

आईए बहुत ही साधारण तरीके से जान लेते है....।

दोस्तों, जैसा कि हम जानते हैं पृथ्वी, सूर्य के  चारों ओर परिक्रमा (चक्कर) लगाती है। पृथ्वी, सूर्य का एक चक्कर लगाने में 365 दिन, 5 घंटे, कुछ मिनट और कुछ सेकंड लगाती है। 

यहां 5घंटे+मिनट+सेकंड को जोड़कर करीब 6 घंटे मानते हैं। यानी 365दिन और करीब 6 घंटे में पृथ्वी, सूर्य के एक चक्कर लगाती है ....।

कैलेंडर में वर्ष, महीनें व दिनों का सही हिसाब रखने के लिए हर साल 365 दिन को ही लिया जाता है और ऊपर के 6 घंटों को 4 सालों तक जमा कर रखा जाता हैं। 

अब हर साल के 6 घंटो को जमा करते हुए चौथे साल उसके 24 घंटे बनते हैं। चूंकि एक दिन में चौबीस घंटे होते हैं अतः यह 24 घंटे एक दिन का माना जाता है। चौथे साल (6×4=24 घंटे) अधिकतम एक दिन को सबसे छोटे माह अर्थात फरवरी के साथ जोड़ दिया जाता है। इसलिए हर चौथे साल का फरवरी महीना 28 दिन की जगह 29 दिन का हो जाता है। इस तरह लीप ईयर की गणना की जाती है। इसी बदलाव को लीप वर्ष कहा जाता है। 

दोस्तों, अगर लीप ईयर न हो तो क्या होगा.....?

अगर ऐसा न हो तो कैलेंडर के दिन , तारिखे बदल जाएंगे। कैलेंडर देख हम जो भी योजनाएं बनाते हैं वो नहीं बना पाएंगे। उत्सव, पर्व मनाने में सही समय तथा दिनों में दिक्कतें आएंगी। निश्चित समय को निर्धारित करने में, सालभर का समय और दिन विभाजन नहीं हो पाएगा। इसके अलावा मौसम की जानकारी में भी दिक्कत होगी। इन्हीं कारणों से लीप ईयर की प्रथा शुरू की गई। उसके गणित को माना गया।

दोस्तों, अब तक  आप समझ गए होंगे लीप ईयर के गणित और उसके इतिहास को... अब "लीप डे" संबंधित एक रोचक तथ्य की बात करते है- जैसा कि हमने जाना हर चौथे साल, साल में एक दिन के बढ़ने को लीप ईयर कहते है और यह बढ़ा हुआ दिन फरवरी माह के साथ जोड़ा जाता है। अब मान लिजिए लीप ईयर के फरवरी महीने के आखिरी तारीख यानी 29 फरवरी (लीप डे) के दिन किसी का जन्म होता है तो उसे अपना जन्मदिन हर साल मनाने का मौका नहीं मिलता। 

पूरी दुनिया में अनेक लोग हैं जिनका जन्म 29 फरवरी (लीप वर्ष) को हुआ है और वे अपने या अपने बच्चों के जन्म दिवस मनाने का लम्बा इंतजार करते हैं। चार साल का इंतजार...। है न अजीब बात...?

कहा जाता है इस दिन जन्में जातकों को "लीपलिंग्स" कहते हैं.....।

लीप ईयर एक स्मार्ट गणित है- लोगों की कई सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए इसकी गणना की गई है।

ध्यान रखिएगा यह महीना 29 दिनों का हैं...अगर किसी का जन्म दिवस हो तो खुशी-खुशी इसे मनाएं। भूल न जाएं ...।

दुनिया के तमाम "लीपलिंग्स" को ढेरों बधाइयां....

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