हरित क्रांति....

 🙏 दोस्तों,

                 क्या आप जानते है, "हरित क्रांति" क्या है...? शायद हर कोई नहीं जानता होगा...। 

उनकी जानकारी के लिए बता दे- यह कृषि क्षेत्र की एक "पहल" है। जो खाद्य फसलों को गुणवत्ता के साथ अधिक पैदावार को बढ़ावा देता है। इसके माध्यम नई तकनीक, अच्छे बीज, व अन्य बातों का ध्यान रख उच्चतम व अधिक उपज के नतीजे प्राप्त किये जाते हैं।

खबरों के अनुसार सर्व प्रथम 1968 में "हरित क्रांति" की पहल शुरू की गई थी। इस प्रयोग की सफल सफलता को देखते हुए सन् 1970-71 तक करोड़ों हेक्टेयर जमीनों पर इस प्रकार से खेती होने लगी। जो लगातार सफल रहे।

भारत में "खाद्य अकाल" समाप्त करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने "हरित क्रांति" शुरू की थी।

भारत के "हरित-क्रांति" के जनक डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन को माना जाता है। ये एक कृषि वैज्ञानिक थे। इनका जन्म 1925 और मृत्यु 2023 को 98 वर्ष की उम्र में हुआ।

डा.स्वामिनाथन के कृषि क्षेत्र में कई विशेष योगदान रहे हैं। कृषि उन्नति के लिए उन्होंने अनेक कार्य किए हैं। इसी वजह से उन्हें समय-समय पर कई पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया और अब मरणोपरांत  हाल ही में वर्तमान भारत सरकार द्वारा "भारत रत्न" से भी सम्मानित किया गया।

खबरों के अनुसार भारत में 1946 में "खाद्यअकाल" हुआ था। खाद्य के अभाव से लोग भूखे तड़प रहे थे। उस समय गांधी जी ने कहा था- जो लोग भूखे हैं, उनके लिए रोटी भगवान के समान है। तब की उस कथन की गहराई तथा किसानों और कृषि समस्या को समझते हुए कृषि वैज्ञानिक डॉ स्वामीनाथन जी ने 2004 में एक कमेटी गठित किया था। जिसमें किसान व कृषि क्षेत्र की ओर कुछ मदद और उन्नति करने की सिफारिश की गई थी। ताकि भविष्य में अन्न और अन्नदाताओं को परेशानी न हो।

2006 को इस कमेटी (MSP/ मिनिमम स्मोल प्राइस) ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। जिसका नाम उन्हीं के नाम से "स्वामीनाथन आयोग" रखा गया। इसमें मूल सिफारिश थी किसानों को उनके उत्पाद की लागत का 50% दिया जाना चाहिए...। यानी  छोटे व मध्य कृषकों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिल सके। इसके अलावा भूमि, सिंचाई, कृषि उन्नति, ऋण, बीमा, खाद्य सुरक्षा आदि प्रस्ताव का अनुरोध भी था।

रिपोर्ट के मुताबिक 2006 से 2013 तक MSP रिपोर्ट को विभिन्न सरकारों द्वारा लटकाया जाता रहा। सूत्रों से जानकारी है कि वर्तमान भारत सरकार जब केन्द्र पर नहीं थी तब उनकी ओर से 2011 में तत्कालीन सरकार से MSP रिपोर्ट कानूनी तौर पर लागू करवाने का अनुरोध किया गया था। पर ऐसा नहीं हो पाया। 

जब 2014 में वहीं सरकार केन्द्र में आई तो उन्होंने लागू करने की बात कही। मगर इस सरकार को भी करीब दस साल हो गए। लेकिन इन्होंने भी स्वामीनाथन रिपोर्ट को कानूनी जामा नहीं पहनाया।  उल्टे इस सरकार ने तीन कृषि कानून उन पर थोप दिए।

दोस्तों, पिछले करीब 19 साल से स्वामीनाथन रिपोर्ट लटका हुआ है। और किसान समय-समय पर इसे ही लेकर आंदोलन तथा प्रदर्शन करती आ रही हैं। लेकिन प्लस-माइनस (+/-) कर कोई सरकार किसी नतीजे पर नहीं आती....। 

हमारी वर्तमान सरकार ने तो कमाल ही कर दिया। खबरों के अनुसार अपनी सरकार ने पहले इस मामले में रुचि दिखाई, इसे सही करार दिया, आते से किसानों से वादा भी  किया मगर वादा खिलाफी करते रहे। किसानों को तीन कानून के जरिए कठिन परिस्थितियों में लाकर खड़ा कर दिया। 700 से ज्यादा किसानों की जान चली गई। और तो और जले पर नमक छिड़कने के लिए कृषि वैज्ञानिक डॉ एम एस स्वामीनाथन जी को इसी बीच भारत रत्न से सम्मानित भी कर दिया।

हास्यप्रद बात है जिस व्यक्ति को पुरस्कृत किया जा रहा है उनके सुझावों पर अमल नहीं किया जा रहा। यही नहीं जो किसान MSP की कानून मांग कर रही हैं उन पर आरोप लगाएं जा रहे हैं, उनपर अत्याचार किया जा रहा हैं। उनके लिए अनाधिकार शब्दों का प्रयोग किया जा रहा हैं

मिडिया रिपोर्ट के अनुसार शंभू बोर्डर का ताजा दृश्य हमारे सामने हैं। पहले भी हमने देखा था।

अब जान लेते है, MSP रिपोर्ट को कानूनी जामा पहनाने की जिंद पर किसान अड़ी क्यों हैं...?

अगर सीधे शब्दों में कहा जाए तो किसान अपने फसल की कीमतों से डरी हुई है। फसलों की किमत के उतार-चढ़ावों का सीधा असर उनकी  कमाई व मेहनत पर पड़ सकता हैं। इसलिए किसान MSP अर्थात स्वामीनाथन आयोग को कानून के दायरे में लाना चाहती है। 

कहा जा रहा है या किसानों का कहना हैं- अभी वे बिचौलियों (होल सेलर) और सरकार के बीच फंसे हैं। 

           दोस्तों आपको बता दें कि वर्तमान में सरकार करीब 20-25 प्रकार के फसलों को MSP के दायरे में रख रखी है और उनसे न्यूनतम दर से फसलें खरीद रही है। पर यह नियम कभी भी खत्म किया जा सकता है। यही डर किसानों को परेशान किये जा रही है। उन्हें सरकार से लिखित तौर पर चाहिए कि यह नियम खत्म न हो। क्योंकि मौजूदा सरकार के तीन कानून लाने पर उनका विश्वास और डगमगाने लगा है। 

किसानों का वर्तमान सरकार के विभिन्न रब्ब्ईयों के  कारण भरोसा न रहा। यही कारण है कि किसान संगठनों ने दिल्ली कूच का एलान (13फरवरी) कर दिया है।

अब जान लेते हैं सरकारों को कानूनी MSP से क्या परेशानी है। वे किसानों की मानते क्यों नहीं ...?

            दरअसल, स्वामीनाथन रिपोर्ट (MSp) को कानूनी मान्यता नहीं देने के पिछे सरकार की ओर से कुछ विशेष कारण बताएं जा रहें हैं। जैसे कि *हर फ़सल को MSP रेट पर खरीदने के लिए उतने पैसे नहीं हैं।  

*अगर किसी साल किसी फसल की उपज अत्यधिक हों तो उनके लिए अधिक पैसों की जरूरत होगी जो की सरकार के पास नहीं होंगे।

*तमाम राज्यों के तमाम फसल खरीद कर सरकार को स्टोर करने के लिए जितनी जगह चाहिए उतनी जगह उपलब्ध नहीं हैं। फिर उन फसलों को खरीद कर सरकार उसे कहा रखेगी? 

* रिपोर्ट के मुताबिक कहा जा रहा हैं अगर MSP को कानून से जोड़ा जाए तो तीन पक्ष इसमें जुड़ सकते हैं। किसान/ कानून/बिचौलिए। जो काफी जोखिम भरा हो सकता है। मामला पेचीदा होने की संभावना भी है।

शायद इन्हीं कारणों से सरकार बार-बार किसान संगठनों से बैठक कर उन्हें समझने की कोशिश कर रही है। दूसरी ओर किसान मानने को तैयार नहीं...। उनकी मुख्य MSP मांग के साथ-साथ अन्य मांगे भी शामिल है। और हम समझते हैं अन्य मांगे जायज़ हैं। 


खैर, किसानों की सारी मांगों को मान लेना शायद वर्तमान भारत सरकार के लिए ख़तरनाक हो सकता हैं। लेकिन किसानों की ओर से भी खतरनाक क़दम उठाए जा रहे हैं। जिसमें जान-माल के नुक़सान की संभावना हो सकती है और हो भी है।

दोस्तों, इन्हीं सबों के बीच मिडिया रिपोर्ट से दो बातें सामने आई हैं। जो खास व्यतित्व की बताई जा रही हैं...1) डा.एम एस स्वामीनाथन जी की बेटी की- उनकी बेटी ने एक सरकारी कार्यक्रम में कहा है- वर्तमान भारत सरकार अगर मेरे पिता का बाकई सम्मान (भारत रत्न द्वारा) करती है तो किसानों के साथ क्रिमिनलों (अपराधियों) जैसा व्यवहार करना बंद करें। वे किसान हैं, क्रिमिनल नहीं हैं। अपने देश के लोगों का सम्मान करें। उन पर आरोप लगाना बंद करें, उन्हें दोषी ठहराना बंद करें। वहीं दूसरी ओर...

2) श्री राहुल गांधी जी की- न्याय यात्रा के दौरान श्री राहुल गांधी जी को किसानों द्वारा दिल्ली कूच की और उस दौरान सरकार की ओर से उन पर हो रहे ज्यादती की खबर मिली है। ऐसे में उन्होंने कहा- अगर देश में हमारी सरकार बनती है तो हम MSP को कानून के दायरे में लाएंगे। जैसा कि स्वामीनाथन कमेटी में सिफारिश की गई हैं।

दोस्तों, देश के दो खास व्यक्तित्व की कही बातें बहुत महत्वपूर्ण हैं लेकिन यहां राहुल गांधी जी की कही बात पर विचार किया जाए तो कहना पड़ेगा, MSP मामला पिछले 19 वर्षो का है। उस बीच उनकी सरकार भी थी। उनकी सरकार ने तब कुछ नहीं किया तो अब वे क्या और कैसे कर सकते हैं...?

इस पर काफी मंथन, सोच-विचार, मिडिया रिपोर्ट और साधारण लोगों की चर्चा सुनने के बाद यह निष्कर्ष निकलकर सामने आया है कि इंसान ठोकर लगने से संभलता है। 

करीब दस साल देश व देशवासियों की दयनीय अवस्था को देखते हुए उनके लिए वे और उनकी पार्टी अब विशेष, नई, जोखिम भरा, कदम उठा ही सकती हैं। क्योंकि यह देश की सबसे पुरानी, नेशनल और बड़ी पार्टी है। देश के प्रति उनका दायित्व बनता है।इसके अलावा आज की तारीख में हम इंटरनेट से जुड़े हैं, पहले से काफी सुविधाएं आज उपलब्ध हैं। 

राहुल गांधी जी की पारिवारिक राजनीतिक समझ, अपने स्वच्छ विचार, उच्च शिक्षित का हमें लाभ मिल ही सकता हैं। 

उनके परिवार ने देश को कई प्रधानमंत्री दिये हैं। उस जमाने में आज की सुविधाएं न रहने के बावजूद, 200 साल गुलाम रहने के बावजूद, जाते-जाते देश में हिन्दू-मुसलमान की आग जाने के बावजूद उन्होंने देश को जमीन से आसमां तक पहुंचाया है। करीब हर क्षेत्र में...। उस जमाने के हिसाब से योगदान दिया और तरक्की की...।

देश के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए। उनके योगदान के चलते हम घर बैठे एक दूसरे से संपर्क बनाए रख पा रहे हैं। चांद तक पहुंच गये हैं। हमारी पीढ़ी को तो बना बनाया सब मिल गया है। जिसकी सुविधाएं घर बैठे ले रहे हैं। 

खैर, इन तमाम बातों का विश्लेषण करने पर भरोसा किया ही जा सकता हैं। और करना भी चाहिए।

दोस्तों, अतः देश की सबसे पुरानी पार्टी किसान भाइयों के हित हेतु कदम उठा ही सकती है...। उनसे स्वामीनाथन रिपोर्ट (MSP) को कानूनी जामा पहनाने की आशा की जा सकती है....।

अंत में यही कहा जा सकता है हरित-क्रांति को बचाने के लिए अनुभवी, इच्छा और शिक्षित वालों पर भरोसा किया जाना चाहिए...।

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