जजिया कर---

 🙏 दोस्तों

                        जजिया एक उर्दू शब्द है। और इसका हिन्दी अर्थ 'दंड' है। अर्थात सरलतम भाषा में इसे 'कर' या 'Tex' कहा जा सकता है।

मिडिया रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान कर्नाटक राज्य सरकार ने उस राज्य के करीब 40-50 हजार पुजारियों को मदद करने की सोची है और इसी उद्देश्य से सरकार ने विधानसभा में विधेयक पारित कर 'बिल' पास किया है। लेकिन विपक्षी दल व कुछ साधु-संतों ने इसका विरोध करते हुए इसे "जजिया कर" करार दिया है।

जजिया कर का मतलब होता है- गैर धर्म के लोगों से मुस्लिम राज्यों में उनकी संपत्ति का कर वसूल करना। अगर मुस्लिम राज्यों में दूसरे धर्म के लोग रहना चाहते हैं तो उन्हें वहां जजिया कर देकर ही रहना होगा। वरना नहीं रह सकते।

दोस्तों, जहां तक हम जानते हैं भारत व भारत का कोई भी राज्य  शायद ही मुश्किल राज्य है। भारत में सभी धर्मों के लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं, काम करते हैं। राजनीति क्षेत्र में भी ऐसा ही है। फिर यहां "जजिया कर" नाम का इस्तेमाल क्यों?

खबरों के अनुसार कर्नाटक राज्य में सरकार के अधीन (Under) क़रीब 35 हजार या उससे भी अधिक मंदिर आते हैं। इन मंदिरों को तीन भागों में विभक्त किया हुआ हैं। यानी मंदिरों के आमदनी (आय) के हिसाब से इन्हें तीन श्रेणियों में बांटा गया है। जिन मंदिर में सर्वाधिक आय है, उसे प्रथम श्रेणी में रखा गया है, जिन मंदिरों की आय उससे थोड़ी कम है उन्हें द्वितीय श्रेणी में और सामान्य आमदनी वाले मंदिरों को तृतीय श्रेणी में रखा गया हैं।

अब वहां की वर्तमान सरकार ने एक बिल पास कर मंदिरों के आया के प्रतिशत के (हिसाब से) अनुसार  'कर' (Tex) निर्धारित किया है। और उसे सरकार को देने के लिए कहा है। ताकि उस Tex की धन राशि से सरकार उन पुजारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान कर सके, जिनकी आय न्यूनतम हैं, कम है...।

लेकिन विपक्षी दल और साधु-संत इसका घोर विरोध कर रहे हैं... 

*उनका कहना है- शायद दुनिया का भारत एक मात्र देश है जिस देश में अपने ही नागरिकों के आस्था स्थलों पर इस प्रकार का "कर" डाल दिया गया हो।साथ ही इसे मुगल राज्यों के वसूली 'कर' का नाम दे दिया गया है... जजिया कर।

*उनका और भी कहना है- कर्नाटक राज्य मे मंदिरों के अलावा और भी अनेक गैर धर्म के धार्मिक स्थल है। सरकार वहां से जजिया कर नहीं वसूल रही हैं। अगर धार्मिक स्थलों के आय पर Tex लगाना है तो हर जगह लगना चाहिए।

*इसके अलावा विरोधी दल का कहना यह भी है कि- सरकार यह काम सामने खड़े "चुनाव" के लिए कर रही है।

कर्नाटक "मंदिर कर" पर विरोधी दल व साधु-संतों का विरोध इन तीन मुख्य कारणों से सामने आया है...।

ऊपरी तौर पर देखा जाए तो विरोधी तथा साधु-संतों की बातें ठीक लग रही हैं। लेकिन इसकी गहराई में जाकर देखेंगे और सोचेंगे तो उनका कहना अर्थहीन हैं।

कर्नाटक राज्य इन बातों का खंडन करती हुई कह रहीं है.....यह मामला 2003 से अस्तित्व में है। हमने इसे सिर्फ मान्यता दी है। यह प्रावधान नया नहीं है।

दूसरे, सरकार की ओर से यह भी कहा गया है- अन्य धार्मिक संस्थानों की मदद, शिक्षण संस्थानों की स्थापना, पुजारियों के प्रशिक्षण, अनाथालयों की स्थापना व देखरेख जैसे अनेक संबंधित मामलों में करोड़ों की धन राशि लगती हैं तथा पुजारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने हेतु सरकार को कर देने को कहा गया है।

सरकार की ओर से कहा गया है कि कर धन राशि एकत्रित कर राज्य के धार्मिक परिषद (मंदिर प्रबंधन समिति) कोष में रखा जाएगा। जिसका उपयोग विभिन्न कल्याणकारी कार्यों में किया जाएगा। जिसका स्वागत सबों को करना चाहिए।

कर्नाटक सरकार का उद्देश्य भले ही सही हो पर विरोध तो होगा ही कारण कोई भी किसी को हिस्सा नहीं देना चाहता है। चाहे धन हो या सत्ता....।

इसलिए देश में एक श्रेणी धनी है तो दूसरी निर्धन...।

दोस्तों, बड़े दुःख और अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है- आज हर एक मामले में साम्प्रदायिक की गंध आती है। चाहे वो किसी भी विषय से संबंधित क्यों न हो।

हमारे देश में आखिरी बार मुगलों और अंग्रेजों ने हम पर शासन किया था। लेकिन हमें मुगलों से नहीं अंग्रेजों से लड़ना पड़ा था। देश के वीर सेनानियों और क्रांतिकारियों (हिन्दू/मुस्लिम) ने काफी संग्राम कर देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाई थी। दो सौ साल बाद हमें आजादी मिली है। इस आजादी को हमें संजोए रखना है आपसी लड़ाई में फिर कहीं किसी को मौका न मिल जाए।  इस बात का हमें ध्यान रखना होगा। 

दूसरी बात, हमने अंग्रेजों से लड़ाई की लेकिन इन्हें छोड़ इन दिनों मुगलों की चर्चा व तुलना होती रहती है। और अंग्रेजों के नियमों को आजमाया जाता नजर आता हैं।

यह लेख उसी का एक उदाहरण है। हर बात में मुगलों को बीच में लाने का कोई मतलब नहीं होता ऐसा हमारा मानना हैं। 

हम "कर या Tex" की बात कर सकते हैं पर बीच में 'जजिया कर' को लाना या उसके साथ 'मंदिर टेक्स' की तुलना करना कुछ समझ नहीं आता। यह सिर्फ साम्प्रदायिकता को मजबूत करने के अलावा और कुछ नहीं है।

हमें विरोध करना है तो कुछ तथ्यों के साथ करना चाहिए ताकि उन तथ्यों को समझ, उसके समर्थन में अधिकांश लोग बिना दबाव के खड़े मिले। 

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