अविवाहिता मां.....

  🙏 दोस्तों,

                    विज्ञान उन्नति के पथ पर अग्रसर है। उसी के साथ दुनिया भी तेजी से आगे बढ़ रहा है।इंसान की सोच भी बदल रही है। इसके फलस्वरूप  कानून के प्रावधान और सामाजिक नियम उसके चपेट में आ रहें हैं।

पश्चिम देशों की बात न कर हम अपने देश की बात करते है....।

हमारे देश भारत में सामाजिक नियमों पर ध्यान रखा जाता हैं। वैसे अनेक पुराने नियम समाप्त हो चुके हैं और कुछ नियमों पर कानूनी मोहर भी लग चूकें हैं। बावजूद उसके आज भी समाज के मुख्य नियमों का ख्याल रखा जाता हैं।

खबरों के मुताबिक चौतरफा उन्नति होने पर भी हमारे देश में कानून व समाज एक अविवाहिता महिला को मां बनने की अनुमति नहीं देता है। बगैर शादी एक महिला मां नहीं बन सकती। अभी तब तो यही प्रवधान है।

बच्चे के हित के लिए बिना विवाह मां बनना हमारे देश में सामान्य नहीं माना जाता। क्योंकि इसका असर उस बच्चे व समाज पर पड़ सकता हैं। इसलिए कानून और समाज दोनों ही अविवाहित महिलाओं को मां बनने की अनुमति नहीं देता है।

विवाह उपरांत एक महिला मां बन सकती है। अगर किसी विवाहित जोड़े में किसी प्रकार की शारीरिक समस्या या और कोई वजह हो तो भी विवाहित महिला, बच्चा गोद लेकर, डोनर द्वारा, सरोगेसी के द्वारा या अन्य किसी चिकित्सा पद्धति से मां बन सकती है। चाहे महिला तलाकशुदा या विधवा हो तब भी वो इस प्रकार से मां बनने की हकदार है। लेकिन एक अविवाहिता महिला को इन पद्धतियों द्वारा मां बनने को सामान्य नहीं माना जाता।

दोस्तों, आप लोगों ने शायद "विक्की डोनर" फिल्म देखी होगी...? जिसमें विवाहिताओं के मां बनने के समाधान को दर्शाया गया है। 

सुनने में आता है पश्चिमी देशों में, अनेक साधारण बच्चे ऐसे हैं जो अपने माता-पिता को जानते तक नहीं हैं लेकिन हमारे देश में ऐसी बात को ग़लत माना जाता है।

दरअसल, खबरों के अनुसार करीब 44 साल की एक अविवाहित महिला मां बनने की इच्छा प्रकट करतीं है। भारत की ये महिला किसी विदेशी कंपनी में कार्यरत है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मांगी है कि वो "सरोगेसी मदर" बनना चाहतीं हैं। शादी नहीं की, न ही करना चाहती है। लेकिन आर्थिक सक्षम, एकल तथा भविष्य को ध्यान में रखते हुए वो शायद  इस उम्र में आकर मां बनना चाहती है। 

परंतु दूसरी ओर बच्चे के भविष्य को ध्यान में रखते हुए, सामाजिक हित को सोचते हुए सुप्रीम कोर्ट 44 साल की अविवाहित महिला की इस इच्छा को रद्द कर देती है। 

दोस्तों, आप महसूस करेंगे दिन-प्रतिदिन रिश्तों की पकड़ ढीली पड़ती जा रही है। अधिकांश क्षेत्र में रिश्तों का महत्व घटता जा रहा है। परिवार छोटा होता जा रहा हैं। लोग अकेले या गिने चुनों के साथ रहना पसंद कर रहे है। 

शादी से परहेज़ कर रहे हैं। सामाजिक व पारिवारिक दायित्व से भागने की कोशिश चल रही हैं। लोग स्वार्थी बनाते जा रहें हैं। 

आजकल लोग सिर्फ अपनी सुख-सुविधाओं पर ध्यान केन्द्रित करते दिखते हैं। बगल में चाचा-ताऊ, बुजुर्ग माता-पिता, भाई-बहन किस कठिन परिस्थितियों में जीवन यापन कर रहे हैं उससे हमें कोई मतलब नहीं। यहां तक यह भी देखने और सुनने को मिलता हैं- पत्नी तथा बच्चे किस तरह गुज़ारा कर रहे हैं उससे बहुतों को कोई लेना-देना नहीं होता। सब व्यक्ति की इच्छा या मेहरबानी है...।

कई बार हम पर दूसरों का असर पड़ता है, पैसों का खेल भी शामिल हैं तथा मजबूरी और डर भी तमाम कारणों की वजह समझ आता है। इसमें महिलाओं की परिस्थिति काफी गंभीर है।

इन तमाम बातों का असर हमारी नई पीढ़ी पर पढ़ रहा है जिसके फलस्वरूप असामान्य रिश्तों की ओर  आकृष्ट हो रहें हैं। जिनमें लिव इन रिलेशन, समलैंगिक संबंध, विवाह उपरांत संबंध, असामान्य उम्र की शादी, किराया की कोख, बिन शादी के एकल माता-पिता बनने की चाह आदि। इस प्रकार के अनोखे संबंधों का हमें इसी समाज में सामना करना पड़ रहा हैं। 

44 वर्षीय महिला की इच्छा को कोर्ट द्वारा रद्द किए जाने पर अब बात मौलिक अधिकार की आ रही है, भेदभाव की आ रही हैं। महिला द्वारा बताया गया तर्क है- कानून के मुताबिक एक अविवाहित महिला स्वावलंबी बनने के लिए विवाह करके तलाक ले सकती है। लेकिन ....

अगर कोई महिला योग्य है और वह विवाह रिश्ते से  या सेक्स संबंध में अपने को जोड़ना नहीं चाहती, परहेज करती है लेकिन अपने भविष्य तथा अकेलेपन का सोच विशेष कदम उठाना चाहती हो तो, क्या कानून इसकी इजाजत नहीं देगा?

खबरों से जानकारी मिली है कानून के अनुसार आजकल बच्चा अपनी मां के परिचय से परिचित हो सकता है। सिंगल मदर का भी प्रावधान है लेकिन 44साल की महिला को सेरोगेसी मदर की अनुमति नहीं मिल रही है।

दरअसल कानून के अनेकों दांवपेंच हैं जिसमें हम उलझ कर रह जातें हैं। कोर्ट का कहना है एक तो अविवाहित तथा इस उम्र में बच्चे को सरोगेसी से जन्म देकर, पालना बहुत मुश्किल है। उन्हें अपने अकेलेपन की चिंता है, पर कोर्ट को विवाह संबंध और समाज के सुव्यवस्था की फ़िक्र हैं। इंसान अपनी एक जिंदगी में वो सब कुछ नहीं पा सकता जो-जो वह चाहता है। विज्ञान भले ही तरक्की कर रहा हो लेकिन समाज के कुछ दायरे हैं जिसका उल्लंघन कानून नहीं कर सकता।

दोस्तों, कई न्यूज़ रिपोर्ट अनुसार देखा जाता है बलात्कार के दौरान अगर कोई महिला (नाबालिग/बालिग) गर्भवती हो जाती है या किसी महिला के गर्भ में अविकसित या विकृत भ्रूण पल रहा हो, ऐसे में उसे गिराने का फैसला लिया जाए ताकि महिला, पल रहा भ्रूण और समाज का किसी प्रकार अहित न हो जाए, 

उसमें कानून की प्रक्रिया आढ़े आने की वजह से कई बार मामला चुनौती पूर्ण हो जाता है। 

फिर भी देश के कानून का तर्क है- विवाह को बचाएं रखना है। विवाह को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। इसके अलावा समाज के कुछ नियमों का उल्लघंन भी नहीं किया जा सकता है...। 

लेकिन अंत में कोर्ट ने यह भी कहा- 44 साल की अविवाहित महिला के निवेदन पर अन्य चुनौतियों के साथ विचार करने की कोशिश की जा रही हैं...।

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