अधिकार.....

  🙏 दोस्तों,

                         किसी भी देश के नागरिक या नागरिकत्व का आम मतलब होता है- व्यक्ति वहां के सामाजिक और राजनीतिक अधिकार के अधिकारी हो। देश में रह रहे व्यक्ति को मौलिक व कानूनी अधिकार पर हक हो।

हमारे देश भारत में भी रहने वाले लोग इन अधिकारों से जब यहां रहते हैं तो वे भारत के नागरिक ही कहलाते हैं। लेकिन भारत पिछले कई वर्षों से, कई युगों से पराधिन रहा है। गुलामी के गर्भ में इसकी कई पीढ़ियां समां गई। अंत में काफी संग्राम कर हमारे देश के क्रांतिकारियों और सैनानियों ने देश को आजाद करवाया। 

हम अंग्रेज़ो के अंतिम गुलाम थेे। हमनें उनसे 200 वर्ष बाद आजादी तो ले ली लेकिन जाते-जाते वे ऐसी

आग लगा गये कि, 1947 में देश आजाद तो हुआ मगर देशवासी आज भी यानी 2024 में भी उस लगाई आग से झूलस रहे हैं।

विभाजन और साम्प्रदायिक लड़ाई (हिन्दू-मुसलमान).....।

आजादी के बाद शुरू में इन दोनों मामलों में हमने बहुत कुछ गंवा दिया। आपसी मतभेद की लड़ाई ने हमें एक-दूसरे के सामने खड़ा कर दिया जबकि आजादी के लिए हम एक-दूसरे से पास खड़े थे। एक- दूसरे के साथ थे। इतिहास गवाह है....।

विभाजन के चलते भारत के कई हिस्से हो गये। और साम्प्रदायिकता की लड़ाई के कारण 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने बंगलादेश-भारत की सीमा का पहरा हटा दिया। बंगालदेश में हो रहे भयंकर साम्प्रदायिक तनाव से बचने के लिए अगर कोई भारत में शरण लेना चाहे तो वो शरण ले सकता हैं। सबों के लिए उन्होंने रास्ता खोल दिया। 

खबरों के अनुसार उस समय लाखों की संख्या में विभाजित बंगलादेश से लोग भारत में प्रवेश किए।

वैसे आज तक यह सिलसिला जारी है।

हम साधारण लोगों को नहीं मालूम तत्कालीन प्रधानमंत्री जी ने ऐसा क्यों किया था- राजनिति, मानवता या कोई और कारण के लिए .... लेकिन ऐसा करने से उस समय लोगों को मदद मिली थी। और तब से अब तक वहां से यहां लोगों का आना-जाना बरकरार हैं।


दोस्तों, यहां हम उत्तरी-पूर्व भारत क्षेत्र की बात करेंगे। खासकर पश्चिम बंगाल की.... कारण सबसे ज्यादा की तादाद में बंगलादेश से आए हिन्दू-मुस्लिम, विशेषकर हिन्दूओं का जमावड़ा यहां हैं और  यही से पूरे देश में वे फैलते चले जा रहे हैं। अपने पैर जमाते जा रहे हैं।

बंगलादेश से आए शरणार्थी ने पश्चिम बंगाल के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में कई सरकारी (राज्य/ केन्द्र), गैर सरकारी खाली जगहों पर कब्जा कर रखा हैं। आज भी यह जारी हैं। समय के साथ-साथ शरणार्थियों ने भारत के तमाम अधिकारों पर अधिकार कर लिया। मकान ,दूकान, सरकारी नौकरी, शिक्षा, विभिन्न आईडी कार्ड, वोटर, यहां के सामाजिक रिश्तेदारी, राजनीति में कदम रख नेता-मंत्री का पद वगैरह.... इस तरह की सुविधाएं भारत की ले रखी हैं।

      यही नहीं भारत की सुविधाओं के साथ बंगलादेश की सुविधाएं भी अधिकांशों ने ले रखी है। इसके अलावा सूत्रों से पता चलता है भारत, बंगलादेश के अलावा किसी तीसरे या चौथे देशों की भी कई सुविधाओं का लाभ भी उठा रहे हैं। अर्थात शरणार्थी का लेवल पिछले 34 साल की बंगाल सरकार के माध्यम हटा दिया गया। 

क्योंकि, शायद तत्कालीन यहां के मुख्यमंत्री विभाजित भारत से ताल्लुक रखने वाले थे।

देखा जाए तो साम्प्रदायिक दंगों से उभरने के बाद उन लोगों (शरणार्थियों) ने दोनों देशों को फिर से एक कर दिया। यानी घर-आंगन बना रखा हैं। और भारत के लोग अपने हिस्से की भागीदारी देते हुए तमाम सुविधाओं से अपने ही घर बंचित हो रहें हैं।

ऐसा उत्तर-पूर्वी पड़ोसी राज्यों में भी हैं।

जब किसी देश की सरकारी व गैर-सरकारी तमाम सुविधाएं जिस व्यक्ति और उसके परिवार को मिल रहा हो तो वो उसी देश का नागरिक ही कहलाएगा!

दोस्तों, भारत की वर्तमान सरकार द्वारा पिछले कुछ सालों से प्रयत्न किया जा रहा है देश में आए शरणार्थियों को यहां की नागरिकता प्रदान की जाएगी। उनको और उनके परिवार को सम्मान के साथ भारत में रहने के कानूनी जामा पहनाये जाएंगे।

उनको वो सारे अधिकार दिए जाएंगे जो स्थानीय भारतीयों को मिलाते हैं।

लेकिन मन में कई सवाल उठते हैं- जब उन्हें (घुसपैठियों) सारी सुविधाएं कानूनी तौर पर, संविधानीक तौर पर पहले से ही मिल रही हो तो वर्तमान सरकार किस प्रकार की और सुविधाएं देना चाहती हैं? और क्यों?

देश में स्थाई तौर पर रहने वाले भारतीय नागरिकों के मन में और भी सवाल शक के साथ पैदा हो रहें हैं...लोग कहना चाह रहे हैं- हर देश का एक बजट होता है। उसमें शरणार्थियों की संख्या क्रमश बढ़ते रहने से देशवासियों को नौकरी, मकान, शिक्षा आदि अनेक मौलिक अधिकारों पर हिस्सा-बटवारा का कष्ट झेलना पड़ेगा। देश का बजट डगमगा सकता है।        सरकार की ओर से पांच-छह समुदायों के शरणार्थियों का जिक्र किया गया है लेकिन जिस धर्मावलंबी के लोगों ने आजादी में हमारे साथ देश को आजाद कराने में हिस्सा लिया था, सरकारी लिस्ट में उनका ज़िक्र नहीं है। ऐसे में एक धर्म को छोड़कर किसी प्रकार का निर्णय लेना देश के अहित की ओर इशारा करता है। देश में आपसी कलह शुरू होने का संदेश देता है। साम्प्रदायिक दंगों की आशंका पैदा करता है।

अगर लिस्ट में मुस्लिम धर्म का जिक्र नहीं किया गया तो "तीन तलाक़" कानून की क्या जरूरत थी?

हम साधारणतः चार धर्मों के भारत में रहने वालों को जानते हैं- हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई ....ये सभी आपस में मिलकर भारत में रहते हैं। बौद्ध धर्म के समुदायों से भी हम ओतप्रोत से जुड़े हैं। पर पारसी ?

         खबरों के अनुसार वहीं दूसरी ओर वर्तमान सरकार की ओर से कहना है हमारे सिद्धांत के अनुसार हम देश से किसी को भी नहीं निकालेंगे। सदियों से जो भारत में रहते आए हैं वे रह सकते हैं। चाहे वो किसी भी समुदाय से जुड़े हों। हम सिर्फ शर्णार्थियों का सम्मान के साथ  पक्की व्यवस्था करना चाहते हैं।

कुछ जानकारों का सरकार की गोल-गोल बातें समझ के परे है.....। उनका सीधे तौर पर सरकार तथा देशवासियों से कहना है-

*सरकार उनके सवालों का जबाब या शर्णार्थियों के प्रति उनके अच्छे सिद्धांत की व्याख्या नहीं दे रही है। बल्कि पुराने गढ्ढों की बात और उस का व्याख्यान कर रही हैं।

*कागजी मुश्किलों के चलते 2019 में अनेक भारतीय हिन्दूओं को सालों बंदी बनकर रहना पड़ा था। बंदीगृह में कोई बीमार पड़ा तो कईयों की मृत्यु हो गई थी।

*जानकारों का कहना है चूंकि एक समुदाय का जिक्र नागरिक संसोधन में नहीं है यानी यह धर्म आधारित है। 

*जिन पड़ोसी देशों का जिक्र हुआ हैं वहां करीब ढाई-तीन करोड़ अल्पसंख्यक रहते हैं। ऐसे में अगर वे सब भारत जाए या भिजवा दिये जाए तो यह देशवासियों के लिए नुकसानदायक होगा।

*शर्णार्थियों की पक्की व्यवस्था के चक्कर में घुसपैठियों का डर, खौफ खत्म हो जाएगा। और तब भारत की 'एक सौ चालीस करोड़" की आबादी नहीं रहेगी।

*कुछ जानकारों के मुताबिक हमारे देश में घुसपैठ आ रहें हैं और लाखों उद्योगपति देश छोड़ चले जा रहे हैं। ऐसे आने जाने की प्रक्रिया बंद करने से देश के निचले स्तरिय क्षेत्र से दशा सुधरेगी।

*उदाहरण के तौर पर हम कैनेडा जैसे देशों का दो-एक जीक्र कर सकते हैं। जिन्होंने भी खुले दिल से बग़ैर-धर्म- आधारित नागरिकता दी थी। बाद में अपने देश की दशा देख संभलने की कोशिश कर रहे हैं।

*ऐसे में कई जानकार तामिल हिन्दूओं और रोहिंग्या की ध्यान दिला रहे हैं।

खैर दोस्तों, हर देश की सरकार को मानवता के साथ अपने देशवासियों का ध्यान रखना चाहिए। 

राजनीति क्षेत्र के लोग राजनीति करेंगे यह स्वाभाविक है लेकिन इस चक्कर में कहीं घर वाले मुसिबत न पड़े इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। तभी तो सब टीके रहेंगे ....।

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