जासूसी---

  🙏 दोस्तों,

                    क्या आप जानते हैं...जासूसी क्या है? क्यों की जाती है? किस पर और किस तरह से की जाती हैं? 

नहीं ...?

लेख में हम इसी की जानकारी देने की कोशिश करेंगे।

साथियों, जासूसी एक प्रकार का प्रशिक्षण पेशा है। समय के साथ-साथ इसकी काफी मांग बढ़ रही है। हमारे देश में अनेक निजी जासूसी संस्थाएं हैं। जो कई क्षेत्रों में कार्य करती हैं।

आईए जानते है ...

*जासूसी क्या है- किसी व्यक्ति या समूह के गुप्त तरीके से, बिना उनके जानकारी के उसके बारे में सही तथ्यों को इकट्ठा करना जासूसी कहलाता है।

*जासूसी क्यों की जाती है- सही मायने में विश्वास तथा भरोसा जब डगमगाने लगता है। डर घर कर बैठता है। असुरक्षित महसूस करने लगते हैं। संदेह पनपता है या क्षति होने की आशंका नजर आती है तब इस प्रकार के पैशेवरों से संपर्क किया जाता  हैं। यानी व्यक्ति या समूह की सही जानकारी के लिए इस पेशे का सहारा लिया जाता है।

*जासूसी किस पर और किस प्रकार की जाती हैं- वैसे तो जासूसी कई प्रकार के होते हैं। लेकिन  क्षतिग्रस्त न हो या कोई बड़ा नुकसान न उठाना पड़े ऐसे  लोग निजी जासूसी संस्थानों से संपर्क करते हैं। जिसमें पारिवारिक, सामाजिक, अवैध संबंध, ओद्योगिक, कानूनी, राजनीतिक, अंतरराष्ट्रीय आदि क्षेत्रों से संबंधित लोग या समूह आ सकतें हैं।

जासूसी तरीकों की बात की जाएं तो हम कह सकते है- भेष बदलकर, मिडिया के माध्यम या तकनीकी के जरिए इस पेशे को अंजाम दिया जाता हैं।

दोस्तों, सूत्रों के अनुसार जासूसी का सबसे पुराना तरीका "ह्यूमन इंटेलिजेंस" और सबसे नया तरीका "ओपन इंटेलिजेंस" को माना जाता है।

खैर, अब यहां बात करते हैं राजनीति की...। देश के राजनीतिक क्षेत्र में "निजी जासूसों" की वर्तमान मांगें काफी बढ़ी हैं। कारण चुनाव.... 

जी हां दोस्तों, आजाद भारत का 18वां लोकसभा चुनाव नजदीक है। अतः राजनीति क्षेत्र के विभिन्न दल "निजी आंखों" (जासूसों) पर ही विश्वास रखते हैं। इसलिए इसकी मांग काफी ज्यादा बताई जा रही हैं।

       असल में राजनीति क्षेत्र का स्तर या माहौल जो भी कहें पहले से विचित्र हो गया है। इन दिनों दलबदल प्रथा राजनीति में प्रचलित हो गया हैं। पहले की तुलना में अब राजनीतिक लोग- नेता, मंत्री, साधारण उम्मीदवार आए दिन खेमे बदले में लगे रहते हैं। अपना पदभार संभालने से ज्यादा ध्यान पार्टियां बदलने में रुचि ले रही हैं। 

आम जनता की नजरों में मामला काफी तुच्छ लगने लगा हैं।

कोई कभी भी किसी ओर चला जा रहा है। कुछ दिनों बाद वापसी... फिर वही। मतलब न पार्टी ठीक से तय कर पा रही हैं और न ही उम्मीदवार तय कर पा रहे हैं कि उनके लिए कोई सा स्थान सही है? लाभदायक है? विश्वशनीय है? न पार्टियों को उम्मीदवार पर भरोसा और विश्वास है, न ही उम्मीदवार को अपने या बदलाव वाले पार्टी पर विश्वास तथा उम्मीद हैं।            

यही कारण है कि अधिकतर पार्टियां इन दिनों निजी जासूसी संस्थानों से जुड़ी हुई हैं।

राजनीति पार्टियां अपने उम्मीदवारों की जांच के लिए पेशेवर जासूसों का इस्तेमाल कर रही हैं। कहीं उम्मीदवार नये या पुराने दलों के बीच सामंजस्य स्थापित तो नहीं कर रहे? कहीं मिलीभगत तो नहीं है? वगैरह... वगैरह...। 

ऐसे में पार्टियों को बड़ा नुकसान न उठाना पड़े।

पार्टियां निजी जासूसी संस्थानों के माध्यम नजर रखना चाहती हैं- उम्मीदवारों की कमजोरियां , गतिविधियां, लोकप्रियता, खामियां आदि। और इसके लिए वे उन्हें कोई भी किमत देने को तैयार रहते हैं।

देश की पार्टियों को RTI से ज्यादा निजी जासूसी संस्थानों पर भरोसा हैं क्योंकि उनके जरिए कम जानकारी मिल सकती हैं और निजी संस्थाएं मानव व तकनीकी दोनों तरह से अधिक, सटीक और गुप्त जानकारियां एकत्रित कर सकती हैं।

खबरों के अनुसार इसी वजह से चुनावी मौसम में पेशेवर जासूसों की व्यस्तता काफी बढ़ गई हैं। कई निजी संस्थानों की ओर से कहा जा रहा हैं- यह एक प्रकार से स्थापित कार्य बनता जा रहा हैं।

पार्टियां सिर्फ अपने उम्मीदवारों, प्रतिद्वंद्वियों, खेमा बदलू, सहयोगियों पर ही नजर रखने या गुप्ता जानकारियां इकट्ठा करने तक ही पेशेवर जासूसों के संपर्क में नहीं हैं। बल्कि चुनावी अभियान के दौरान गुप्त क्षमताधिकारियों, आपराधिक रिकॉर्ड, अवैध संबंधों, भ्रष्टाचार में लिप्त, घोटालों, गलत सूचना प्रचार आदि अनेक मामलों के लिए भी इनकी सेवा ले रहे हैं।

यही नहीं बताया जा रहा है "पोलिंग बूथों" पर भी जासूसी का पहरा लगा दिया गया है।

दोस्तों, इस क्षेत्र के जानकारों से पता चला है जासूसी का कार्य लोकसभा चुनाव घोषणा के बहुत पहले से शुरू हो गया है।

यानी देश का लोकसभा चुनाव पूरी तरह से जासूसों के देखरेख में है। ताकि कोई बड़ा नुकसान उठाना न पड़े।

एक बात जान लेना जरूरी है, ख़बरों के अनुसार निजी जासूसी संस्थानों से जुड़े रहने को रोकने के लिए किसी प्रकार का कोई कानून नहीं है। अतः अपनी-अपनी उत्सुकता व सुरक्षा के लिए इस तरह की ऐजेंसियों के सम्पर्क में रह सकते हैं। अपनी बुद्धि और प्रतिभाओं से ये अपना काम सुचारू ढंग से करते हैं।

अंत में हम अपनी ओर से एक बात कहना चाहेंगे,  पार्टियां अपनी सत्ता सुरक्षा (चुनाव) हेतु निजी जासूसी संस्थानों की भरपूर सेवा लेती है या ले रही हैं। खास तौर पर इन दिनों...मगर, खबरों से तो यही पता चलता है कि देश के पुलवामा जैसे "बॉम्ब ब्लास्ट" के गंभीर मामले में शायद इसका उपयोग नहीं करती। तभी तो वीरों के हादसों के कारणों  का तथ्य देशवासियों के सामने नहीं आया...। सत्ता की सुरक्षा के साथ देश की सुरक्षा में  भी निजी जासूसी संस्थानों के उपयोग के बारे में सोचा जाए तो शायद तथ्य जुगाड़ हो सकते हैं।

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