ग्रे तलाक---

🙏 दोस्तों,

                    "तलाक" शब्द से हम सभी वाकिफ हैं लेकिन "ग्रे तलाक" की जानकरी बहुतों को नहीं हैं।

दरअसल, कोई उम्रदार पति-पत्नी का जोड़ा जब एक-दूसरे से कानूनी तौर पर अलग होते हैं तो उसे "ग्रे तलाक" कहा जाता है। '

अधिक उम्र में होने वाला तलाक "ग्रे तलाक" के नाम से क्यों जाना जाता हैं...? यह सवाल हमारे मन में आ ही सकता है। तो आईए जान लेते हैं...

असल में 'ग्रे' एक रंग है। जो यहां बालों के रंग से जुड़ा है। हमने देखा है एक उम्र (अधिक) के बाद लोग अक्सर बालों को रंगते हैं। अधिक उम्र में बालों का रंगना और विवाह विच्छेद में आना, इन्हें ही आपस में जोड़कर 'ग्रे तलाक' नाम रखा गया। आमतौर पर 50 साल की उम्र के बाद के तलाक को इस (ग्रे तलाक) क्षेणी में रखा जाता हैं।  


खबरों के अनुसार शोध से पाया गया है कि पिछले कुछ दशकों में 'ग्रे तलाक' की संख्या करीब दोगुनी हो गई हैं। विदेशों में ऐसे तलाकों की संख्या ज्यादा है जबकि इस तुलना में भारत पिछे है। कारण यहां की संस्कृति। फिर भी भारत में भी 'ग्रे तलाक' हो रहे हैं।

लेकिन यहां उच्च शिक्षित, उच्च आय व प्रभावशाली परिवारों में 'ग्रे तलाक' का चलन देखा जा रहा हैं। आम तथा साधारण घर-परिवार वाले इस मामले में पिछे है। 

40 की उम्र से पहले के 'तलाक' या फिर 50 के बाद के 'ग्रे तलाक' के चक्कर से निम्न व मध्यम वर्गीय  परिवार आमतौर पर दूर रहते हैं। और शादी से मिले हर जोखिम को आजिबन ढोते रहने को ही सही मान कर चलते हैं। खासकर महिलाएं...।

यहां हम भारतीय 'ग्रे तलाक' के कुछ कारण तथा इससे जुड़ी कुछ जिन्दगियों की समस्याओं पर चर्चा करेंगे...।

हमारा समाज पुरुष प्रधान है। शादी के बाद अनेक महिलाओं को अपने ससुराल में वहां के नियमोंनुसार चलने के बावजूद पति व उनके घर वालों से दुर्व्यवहार, आर्थिक परेशानी, असम्मान, पीढ़ायों का सामना करना पड़ता हैं। फिर भी वह शादी के पवित्र रिश्ते को भरपूर निभाती रहती हैं। ससुराल के प्रति, पति के प्रति, बच्चों के प्रति और ग्रहस्थ जीवन के प्रति अपनी भूमिकाएं निभाती हैं। 

समाज, बच्चे, विवाह संबंध को ध्यान में रखते हुए दुःख, कष्ट, अपमान को सहते हुए आधी जिंदगी बिता देती हैं। और तब उसे अपने लिए थोड़ा समय मिलता है। क्योंकि ससुराल में लोगों की संख्या कम हो जाती हैं, बच्चे बड़े हो जाने से कुछ जिम्मेदारियां कम हो जाती हैं। कई बच्चे दखल अंदाजी पसंद नहीं करते। कई बच्चे अपना घर बसा लेते हैं। तो ऐसे में थोड़ा समय निकल आता है। 

इस खाली समय में वो पिछे मुडकर देखती है तब अपने को अकेला और आर्थिक शून्यता में पाती हैं। उसे अहसास होता है, पति को उसकी कोई कद्र नहीं। उसका हर सहन और त्याग बेकार गया। 

इस उम्र का खाली समय उसे अपने लिए जीना सिखाती है। उसके स्वाभिमान, आत्मसम्मान से परिचय कराती हैं। जीवन के मूल्यों का बोध करवाती हैं। और तब उसके कदम 'ग्रे तलाक' की ओर बढ़ता है। लेकिन सामान्य परिवार की महिलाएं इन सारी बातों को सोच वहीं रुक जाती हैं जबकि उच्च शिक्षित और प्रभावशाली परिवार की महिलाएं आगे बढ़ जाती हैं। अर्थात ग्रे तलाक को चूनना सही समझती हैं।

पूरी जिंदगी साथ गुजारने के बाद अहसास होता है कि अब अलग हो जाना चाहिए। अब बुढ़ापे में अपने लिए जीना है। सुकून की जिंदगी जीना है।

यह अहसास हर एक के लिए कतई नहीं है। और न ही सिर्फ महिलाओं के लिए हैं बल्कि ऐसा अहसास पुरुष भी करते हैं। वे भी कई हैं जो विवाहित जीवन से पीड़ित हैं। मगर पीढ़ा के मामले में हमारे समाज में महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में कही अधिक है। कारण वे भाव में बहती हैं।

      

दोस्तों, आज तलाक आम बात हो गई है फिर भी हमारे समाज में तलाक को एक 'सामाजिक कलंक' माना जाता है। इसलिए अधिकतर महिलाएं और कुछ पुरुष न चाहते हुए भी इस "शर्त बंधन" (शादी )को बर्दाश्त करते और  निभाते हैं।

"तलाक" या "ग्रे तलाक" जो भी हो अगर पति- पत्नी जोड़े के बच्चे हैं तो उन्हें कई मुसकिलों का सामना करना पड़ता हैं। कई इनसे उभर पाते हैं तो कई बच्चे उभर नहीं पाते। समाज, रिश्तेदारी, पढ़ाई क्षेत्र, कर्म क्षेत्र, विवाह जीवन तथा उनके व्यक्तिगत जीवन में भी परेशानियों के बादल छा जातें हैं। माता-पिता के विवाह-विच्छेद बच्चों की जिंदगी में बुरा असर डालती है। 

छोटे बच्चों को माता-पिता दोनों का साथ चाहिए होता हैं। बड़े बच्चों को हम दो श्रेणियों में रख सकते हैं। कुछ बड़े बच्चे अपने माता-पिता के अलगाव को समझदारी के साथ अपनाते व दूसरों को समझने में सक्षम होते हैं और अपनी जिंदगी आगे बढ़ा ले जाते हैं। पर कुछ बड़े बच्चे होते हैं- शर्म और इज्जत के बोझ तले अपने को दबाएं रखते हैं। हिनता के शिकार हो जाते हैं। जिस कारण आगे बढ़ नहीं पाते और यदि बढ़ाते भी है तो ग़लत राह तय करने  की संभावना ज्यादा होती हैं।

जावानी का 'तलाक' या बुढ़ापे का 'ग्रे तलाक' महिलाओं पर ही भारी पड़ते हुए देखा गया है। आम तौर पर तलाक की पहल महिलाओं की ओर से होता हैं। और इसके बाद अगर भरण-पोषण भी मिले फिर भी देखा गया है कहीं न कहीं उन्हें ही अपने आप से, अपने तलाकशुदा जीवन से संघर्ष करते रहना पड़ता है। उनकी जीवन शैली बदल जाती है। जीवन चुनौती भरा हो जाता है। 

महिलाएं भावात्मक होने के कारण जीवन के मध्य में 'ग्रे तलाक' के बावजूद कई है जो तनावग्रस्त हो जाते हैं।

दोस्तों, एक लंबी शादी शुदा ज़िन्दगी जीने के बाद अगर पिछली ज़िन्दगी कुछ अहसास दिलाता है तो, उनके लिए कुछ ऐसे संस्था है जो जोड़े के लिए काम करती हैं। उनके संपर्क में जाने से बुढ़ापे के 'ग्रे तलाक' से बचा जा सकता है। बचा जा सकता है इस उम्र के नकारात्मक जीवन शैली से, जो सुकून की जिंदगी दे सकते है। 

यहां पुरुषों की अहम भूमिका होती है। शुरुआती तौर पर यानी विवाह के बाद महिलाएं अपनी भूमिका निभाती है तो जीवन के मध्य आकर पुरुषों को अपनी भूमिका निभानी चाहिए।

कोई कुछ भी कह लें लेकिन महिला की शक्ति पुरुष ही होते हैं। उनसे इन्हें बल मिलता है। चाहे सामाजिक हो, आर्थिक या मानसिक...। ऐसे में पुरुषों को शुरू से ही हर रिश्ते को बेलेंस बनाकर चलना चाहिए ताकि 40 के पहले जवानी का 'तलाक' या 50 के बाद 'ग्रे तलाक' की नोबत न आए। 

उम्र के मध्य या बुढ़ापे में जब बच्चे अपने नीजी जिंदगी में व्यस्त हो जाते हैं तो जोड़े को एक दूसरे के साथ, एक दूसरे के पास रहना चाहिए। इस उम्र में स्वास्थ्य एक बहुत बड़ी समस्या है। अतः ग्रे तलाक का न सोच, साथ रहने का सोचना उचित है।

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