जीन थेरेपी----

 🙏 दोस्तों,

                चिकित्सा विभाग के खबरों के अनुसार मानव शिशु शरीर के वंशानुगत (DNA) अस्वस्थ को "जीन थेरेपी" द्वारा स्वस्थ किया जाता है। अर्थात ये थेरेपी एक ऐसी तकनीकी है जिससे दोषपूर्ण डीएनए के स्त्रोत का इलाज किया जा सकता है। 

मेडिकल शब्दों में इस रोग को "स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी" (एसएमए) कहा जाता है। बच्चों को ये रोग उनके माता-पिता से मिलाते हैं। इस बीमारी से पीड़ित होने वाले विकार का पता बचपन में ही डाक्टरों को पता चल जाता हैं।

चिकित्सा विभाग के विशेषज्ञों का मानना है, इस बीमारी से पीड़ित बच्चे का इलाज जीन थेरेपी से करना संभव है। लेकिन इसका इलाज विश्व का अत्यधिक महंगा इलाज है। 

यह शरीर के कौशिका और उत्तक संबंधित एक दुर्लभ विकार है।

चिकित्सा जगत के अनुसार स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी से पीड़ित रोगी के शरीर के मांस पेशियों की बढ़त नहीं हो पाती है। कमजोर पड़ने लगते है। शुरू से ही इस बीमारी से पीड़ित के हाथ-पैर प्रभावित हो जाते है, सांस लेने में दिक्कत, चूसने ((फीडिंग), निगलने में परेशानी, अपने आप उठने -बैठने में अस्मर्थ जैसी और भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं। माता के गर्भ में या जन्म लेने के शुरू से छः महीने तक के बीच डाक्टरों को पता चल जाता हैं।             सांस लेने में दिक्कत के कारण बच्चों की मौत तक हो जाती हैं। और अगर जीवित रह जाते हैं तो एक प्रकार से विकलांग की परिस्थिति में जीने को मजबूर रहते हैं। विशेष तकनीकी की सहायता दी जाती है। उम्र बढ़ने के साथ दिक्कतें और भी बढ़ती हैं।

हाल ही के एक रिपोर्ट के अनुसार ऐसा एक केस सामने आया है। हालांकि ये बीमारी बहुत ही दुर्लभ और लाइलाज है फिर भी चिकित्सा जगत बहुत आगे बढ़ गया है। विज्ञान ने काफी उन्नति की है इस कारण इस रोग का इलाज संभव है।

कोलकाता के एक नामी सरकारी अस्पताल में पहली बार 18 माह के एक शिशु को "जीन थेरेपी" से जीवनदान मिला है। राज्य के सरकारी अस्पताल में पहली बार जीन थेरेपी के माध्यम इस तरह का इलाज पहली बार हुआ। बच्चा इसी बीमारी से ग्रसीत था। केवल 6 माह की उम्र में बच्चा इस बीमारी से ग्रसीत पाया गया। तब से उस अस्पताल के डाक्टर उसे जीन थेरेपी देने की कोशिश में थे। करीब डेढ़ साल से उसका इलाज चल रहा था। 

सूत्रों के अनुसार यह  विश्व का सबसे महंगा इलाज है। पर बच्चे का निःशुल्क इलाज हुआ।

राज्य के सरकारी अस्पताल के प्रोफेसर के नेतृत्व में ग्लोबल मैनेज्ड एक्सेस प्रोग्राम में यह महंगी दवा प्रदान की गई। जिससे बच्चे को जीन थेरेपी का इलाज किया गया।

बताया जाता है करीब 17.5 करोड़ की यह दवा डोज है। इस महंगी दवा ने बच्चे को पुनः जीवन दिया। रकम मामूली नहीं है। कई बार सुनने में आता है चंद क़र्ज़ के रुपए न चूका पाने के लिए जान ले ली जाती है। वहीं दूसरी ओर 18 माह के जीवन (एक जीवन) को बचाने के लिए ग्लोबल स्तर (स्वास्थ्य) प्रोग्राम से 17.5करोड़ प्रदान किया गया।

खबरों के अनुसार पूरे भारत में अब तक करीब 45 बच्चों को जीन थेरेपी का लाभ मिला हैं। वे इस इलाज से अपनी स्वाभाविक जीवन जी रहे हैं। 

दोस्तों, विश्व में या यूं कह लें ग्लोबल के तहत या हमारे देश में भी कह सकते है कई ऐसी सुविधाएं सहायता के रूप में, निःशुल्क व्यवस्था उपलब्ध हैं जो साधारण से साधारण लोगों की सहायता कर सकता है। सिर्फ चिकित्सा जगत की ही बात नहीं और भी जीवन जीने के क्षेत्र है, जहां सहायता की जरूरत पड़ती है जो प्राप्त हो सकते हैं। लेकिन जानकारी का अभाव है। हम जानते नहीं हैं कहा जाने से, किनसे मिलने से, किनके जरिए हमें सहायता मिल सकती हैं...?

इसलिए विभिन्न स्तरीय जानकारी की अति आवश्यकता होती हैं ....।

18माह के पिता इतनी महंगी दवा की व्यवस्था नहीं कर पाते, पर डाक्टरों व अस्पताल के प्रोफेसर के नेतृत्व में यह संभव हो पाया। और बच्चे को जीवन मिला...।

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