नमस्कार दोस्तों,
विश्व के विभिन्न देशों के मुद्रा अलग अलग नामों से जाने जाते हैं। वैसे ही हमारे देश भारत की मुद्रा 'रुपया' के नाम से जानी जाती हैं।
आज का लेख भारतीय नोटों यानी मुद्रा की कीमती बातों पर आधारित है। लेख में हम कई पहलुओं पर फोकस डालने की कोशिश करेंगे।
दोस्तों, जैसे कि हमें अपने इतिहास पढ़ने से जानकारी मिलती है कि एक जमाना था जब मुद्रा से कोई सामान ख़रीदा नहीं जाता था। सामानों के आदान-प्रदान से लेन-देन हुआ करता था। क्योंकि तब मुद्रा नहीं हुआ करते थे।
उसके बाद एक और समय आया, तब सिक्कों का प्रचलन शुरू हुआ। उसके बाद रुपया यानी नोट का प्रचलन हुआ।
आज का लेख रुपए पर आधारित है....।
भारत में नोटों का प्रचलन अंग्रेजों ने शुरू किया। ऐसा बताया जाता है कि ब्रिटिश सरकार ने 1861-62 में भारत में नोट शुरू किया था। लेकिन भारत में नोट छापने का निर्णय 1920 में उन्होंने ही लिए। इसकी शुरूआत 1926 में जाकर महाराष्ट्र के एक प्रिंटिंग प्रेस में किया गया।
चूंकि अंग्रेज हमारे देश में 200वर्षो तक राज करते रहे अतः अपने मन मुताबिक वे पहले अपने ही देश (इंग्लैंड) में नोट छापते थे और बाद में भारत के महाराष्ट्र के 'नासिक' में यह काम शुरू किया।
खैर, आजादी के बाद भारत सरकार द्वारा, उस समयकाल की सुविधा अनुसार देश के बहुत सारे काम होने लगे। मुद्रा छापने का कार्य भी उसी में शामिल हैं।
वर्तमान में भारतीय मुद्रा (रुपया) देश के चार जगहों पर छापे जाते हैं। नासिक, सालबेनी, मैसूर और देवास...।यहां के सरकारी प्रिंटिंग प्रेस में ही हर छोटे-बड़े कागज़ (पेपर) के नोट छापे जाते हैं।
लेख में भारतीय नोट छापे जाने की दो-चार महत्वपूर्ण बातें शेयर करना चाहेंगे। वैसे दो बातों में- पहला नोट छापने का काम कब भारत में शुरू हुआ और वर्तमान में कहां-कहां नोट छापे जाते हैं। इसकी जानकारी दी गई।
इसके अलावा नोट छापने में किन-किन चीजों की आवश्यकता होती हैं, नोटों के डिजाइन, किनकी क्षमता से, किसके कहने पर छापे जाते हैं, मशीन कहां से लाई जाती हैं इत्यादि... भी जानेंगे।
नोट छापने के लिए प्रिंटिंग मशीन, पेपर, इंक(स्याही) आदि मुख्य चीजों की जरूरत होती हैं।
मशीन:- सायमंटन और इंटाब्यू ये दो मशीनें मुख्य रूप से नोट छापने में इस्तेमाल किए जाते हैं। ये दोनों मशीनें विदेशी हैं। जो विदेशों से लाई जाती हैं।
नोट छपाई जानकारों के अनुसार पहले पेपर्स (कागज़) रोल को सायमंटन मशीन में डाला (सेट) जाता है और इंटाब्यू मशीन से नोट के हिसाब से पेपर में कलर किये जाते है। फिर स्टेप-बाई-स्टेप पूरी प्रक्रिया से नोट छापे जाते हैं।
कागज़:- आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नोट छापने वाले पेपर मध्य प्रदेश के 'होशंगाबाद' में बनाए जाते हैं। जो विशेष रूप से बनते हैं।
कागज़ के बने नोट दिर्घ काल तक टीके, जल्दी खराब न हो या जल्द फटे नहीं इस ओर ध्यान देते हुए इनके लिए पेपर्स तैयार किये जाते हैं।
नोट छपाई में अच्छा खासा खर्च होता है अतः लम्बे समय तक चले जल्दी खराब न हो इस ओर विशेष ध्यान देते हुए नोट बनाने के कागज बनाएं जाते हैं। इसके लिए इनमें कपास, गैडलिन,एडहेसिव सॉल्यूशन का Use किया जाता हैं। ताकि नोट में चमक बनी रहे और वो मजबूत हो...।
स्याही:- नोट छापने में एक से अधिक स्याही (Ink) की जरूरत होती हैं। ये भी विदेश से मंगवानी पड़ती हैं। संभवतः यह स्वीटजरलैंड से आती है।स्याहियों के नाम हैं- इंटैगलियो इंक
फ्लूरोसेंस इंक
ऑप्टिकल इंक
ये तीन तरह के स्याही नोट पेपर में Use किये जाते हैं। नोट में तस्वीरें छापने के लिए, नोटों के नंबर लिखने के लिए और कोई नकल कर उसे छाप न पाए इस लिए इन इंको (स्याही) का प्रयोग किया जाता हैं।साथ ही बता दें विदेश से मंगवाई स्याहियों के कंपोजिशन (तत्व) को हर बार बदल कर Use किया जाता हैं। ताकि कोई और गैरकानूनी तरीके से इसका फायदा (छपाई) न उठा सके।
दोस्तों, नोट छापने की जगह, प्रिंटिंग प्रेस, सारी सामग्रियां, प्रणाली की जानकारी होने के बावजूद भारतीय नोट छापना आसान नहीं है। क्योंकि इसके डिजाइन और परमिशन की सख्त जरुरत होती हैं। तभी नोट छापे जाते हैं, वरना नहीं...।
तो साथियों नोट छापने का आर्डर तथा डिजाइन भरत सरकार और RBI के सौजन्य से ही संभव है। अर्थात रिजर्व बैंक और हमारी सरकार नोट छापने का काम करती हैं। उसके आर्डर से ही भारतीय मुद्रा रुपया छापने का काम होता हैं...।___________